बसंती बाई
बसंती बाई
बसंती बाई का नाम कोई अबूझा नहीं था...।
कोई अनजान पहेली नहीं थी...।
वह अपने इलाके के जानी-मानी खुद्दार औरत की हस्ती थी...।
आज उसकी उम्र पैंसठ वर्ष की है...लेकिन इन पैंसठ वर्षों की जिंदगी में उसने बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं...।
आज उसके पास अपना पति नहीं है..। उसके पास अपना घर भी नहीं है .. यदि कुछ है तो तो अपने जने हुए चार लड़के... जिनके असीम पूरी जिम्मेदारी उसके कंधों पर है..। उसकी अपने शिक्षा पाँचवीं कक्षा तक ही हुई है।
आज वह विधवा औरत का जीवन जी रही है।
लेकिन एक मजबूत इरादों वाली दृढ़ निश्चय वाली बेमिसाल पहचान है....।
कई घरों का चौका बर्तन करके अपने जीवन का गुजारा कर रही है.... लेकिन आज उसे घर से निकलने में काफी देर हो गई..। सूरज चढ़ता चला आ रहा था और वह तेज कदमों में भागते हुए बारी-बारी हर घर को निपटा रही थी। आज उसे इन घरों में काम करते हुए दस साल पूरे हो रहे थे ..अपने विश्वास के व्यवहार से कोई भी मकान मालिक उसे उसके काम से निकालना नहीं चाह रहा था..।
इन्हें घरों के चौका बर्तन से उसने अपने बच्चों को धीरे-धीरे पढ़ाया और छोटे मोटे व्यवसाय में लगाया।
आज बच्चे भी जवान हो गए ..
बसंती बाई अपने कोई शौक पूरा ना करके अपनी कमाई के थोड़े थोड़े पैसे बचा कर उन लड़कों का शादी ब्याह भी कर दिया...।
लेकिन आज उसे कोई लड़के अपने साथ रखने को तैयार नहीं थे...
कभी-कभी वह अपनी किस्मत को कोसती तो कभी-कभी अपने अतीत में खो जाती..।
आज भी उसे याद है ...सास ससुर के राज में कभी किसी ने उसके पैरों की एड़ी भी ना देखी थी..।
एक इज्जतदार ठाकुर के घर में ब्याही हुई गोरी चिट्टी जेवर से लदी हुई सुंदर बहू के रूप में जानी जाती थी...।
लेकिन कहते हैं ना जब किस्मत धोखा देती है तो कोई भी चीज नहीं टिकती..
कुछ ऐसा ही खुद बसंती बाई के साथ भी हुआ पति शराबी नालायक होने के कारण उसकी कोई कदर ना की और किसी दूसरे से दिल लगा कर हमेशा के लिए घर से चला गया...।
उसका पति केवल शादी के चार साल तक ही उसके साथ रहा...। सास ससुर के स्वर्गवास हो जाने के बाद बसंती बाई बिल्कुल अकेली हो गई। धीरे-धीरे पटीदारों ने उसे घर से बेदखल कर दिया। अब वह अकेली असहाय और उसके पास अपने चार बच्चे इसके अलावा उसके पास कुछ भी नहीं था । धीरे-धीरे उसने एक- एक घर में चौका बर्तन का काम करना शुरू कर दिया। हर घर में वह बसंती बाई के नाम से जानी जाती थी। हर मकान मालिक आने वाले त्यौहार पर बसंती बाई को साड़ी उपहार पैसा देते थे। जिससे उसका उसी में गुजारा चलता रहता था।
कैसे-कैसे करके उसने जीवन को कितनी मुसीबतों के साथ यहाँ तक जिया । लेकिन आज उसके अपने लड़के उसे अपने पास रखने को तैयार नहीं थे...।
लेकिन अभी भी उसने अपने जीवन में हार न मानी थी। धीरे-धीरे उसने अपने काम को और बढ़ाया और बसंती बाई सिलाई कढ़ाई में बहुत निपुण थी। उसने धीरे-धीरे सभी औरतों को इकट्ठा किया और उन्हें सिलाई सिखाने का भी काम शुरू कर दिया..।
कहते हैं ना औरत होना इतना आसान नहीं होता .. आधे से ज्यादा ख्वाब दिल में दफन करने पड़ते हैं।
जीवन की चुनौती से ना घबराते हुए व जीवन के पथ पर आगे बढ़ चली।
आज उसके पास धीरे-धीरे पचास औरतें सिलाई सीखने आने लगी और उसका यह काम बहुत तेजी से चल पड़ा।
अब बसंती भाई एक समय चौका बर्तन करती और दूसरे समय सब औरतों को सिलाई सिखाती । यह सिलाई सिखाने का काम उसने निशुल्क किया था । इससे सभी औरतों के दिल में बसंती बाई के प्रति बहुत इज्जत होने लगी थी...।
क्योंकि बसंती बाई का यह मानना था और कभी-कभी वह अपने विचारों को इन्हीं औरतों के साथ व्यक्त करती थी कि मनुष्य को अपने जीवन में कुछ पुण्य कार्य करके ही जाने चाहिए । कभी निस्वार्थ जीवन भी जीना चाहिए और उसका यह उद्देश्य इस काम में सबको बड़ी स्पष्टता से दिख रहा था।
बसंती बाई सभी औरतों की बहुत इज्जत करती थी और बसंती बाई के प्रति भी सबके दिलों में बहुत आदर भाव था।
शायद सच ही कहते हैं औरतों में दिमाग नहीं होता इसीलिए वह सारे रिश्ते दिल से निभाती है। रिश्ता चाहे जैसा भी हो। वह हर रिश्ते को निस्वार्थ भाव से निभाना जानती है।
स्त्री को दिए जाने वाले उपहार में सबसे बेहतरीन चीज है उसका सम्मान करना।
बसंती बाई को आज भी याद है। जब उसने जन्म लिया तब उसके मां-बाप का स्वर्गवास हो गया। जब वह पति के घर आई तो भी उसने कई दुखों का सामना किया। आज जब उम्र के इस पड़ाव में बेटों की बारी आई है। उन्होंने भी उसे अपने साथ रखने से इनकार कर दिया..।
लेकिन आज बसंती बाई अपने पूरे मोहल्ले में या यूं कह लें.. इस मोहल्ले के पूरे एक बड़े से प्रांगण के घर की स्त्री रूपी आत्मा थी... कहते हैं औरत का अपना घर नहीं होता लेकिन सच बात यह होती है ..औरत के बिना कोई घर नहीं होता । ठीक उसी तरह बसंती बाई के बिना यहाँ पर कोई भी एक पल भी रहना नहीं चाहता ।
स्त्री कभी किसी के हाथों का खिलौना नहीं होती...
परमात्मा के बाद यदि कोई पूज्यनीय है तो केवल स्त्री ही है ..जो मौत की गोद में जाकर भी जिंदगी को जन्म देती है..।
आज बसंती बाई ने इन औरतों के अंधेरे जीवन में आशा का नया दीप जलाकर उनके जीवन की दिशा को बहुत सुंदर सुनहरा प्रकाश प्रदान किया है..।
आज वह अपनी ही नहीं अनगिनत औरतों के जीवन की भी नायिका है।
... और नायिका बनकर उसने अपने जीवन में बखूबी बहुत अच्छी अदाकारी की। परमात्मा भी यदि ऊपर से अपने बनाए रंगमंच पर बसंती बाई को देखता होगा तो वह भी गर्व करता होगा। बसंती बाई रूपी नायिका सबके जीवन की आज आदर्श बन गई ।
वह किसी भी रुप में अपने जीवन को जीने के लिए मोहताज नहीं थी..।
