बराबरी का साथ

बराबरी का साथ

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रोमा और विनेश छह महीने पहले मिले थे। दोनो के परिवारों ने बातचीत के बाद उनकी मुलाकात एक रेस्टोरेंट में निश्चित करवाई थी। रोमा एक एक्सपोर्ट कंपनी में जॉब में थी और विनेश एक सॉफ्टवेयर कंपनी में कार्यरत था। दोनों मध्यमवर्गीय परिवार से थे और बहुत मेहनतकश थे। एक दूसरे को बातचीत के बाद पसंद किया और रिश्ता पक्का हो गया।

शादी में अभी कुछ समय था। जब भी दोनों मिलते रोमा बिल के पैसे देने की ज़िद करती मगर विनेश कभी उसे पैसे देने न देता। तीन मुलाक़ातों के बाद चौथी बार आज एक फाइव स्टार के कॉफ़ी शॉप में मिले तो इस बार रोमा ने ज़िद पकड़ ली कि बिल तो मैं ही चुकाऊंगी। विनेश झुंझला गया। "माना तुम कमाती हो मगर क्या ऐसे जतलाना ज़रूरी है?"

रोमा भी तुनक गयी। "इसमें क्या जतलाना हो गया? अभी हमारी शादी नहीं हुई और मुझे इस तरह हर बार तुम्हारे पैसे खर्च हों, अच्छा नहीं लगता। अगर कभी मैं बिल भर दूं तो इसमें इतनी क्या बड़ी बात है? सिर्फ सोच का फर्क है। अगर तुम अपने दोस्त के साथ आते तो क्या उसे कभी बिल भरने नहीं देते? मैं समझती हूँ कि शायद मेरा ख्याल रखना तुम अपना फ़र्ज़ समझते हो मगर मेरा आत्मसम्मान मेरे और मेरी खुशी का हिस्सा है, इसमें क्या हर्ज है?"

विनेश ने उसका चेहरा पढ़ने की कोशिश की। चेहरे पर गुस्से से पसीने की बूंदें छलक आयी थीं। क्या गलत कह रही है वो? एक शिक्षित लड़की है और अगर अपना खर्च खुद उठाना चाहे तो मेरा अहम क्यों आहत हो रहा है?

"देखो विनेश, ये बात हमें खुल कर कर लेनी चाहिए। मैं तुम्हें पसंद करती हूँ और तुम्हारा सम्मान भी करती हूँ मगर मैंने भी बहुत परिश्रम कर पढ़ाई की है और नौकरी पायी है। मेरा अस्तित्व सिर्फ किसी की पत्नी हो कर रह जाये, इसमें मैं कभी खुश नहीं रहूँगी। हम दोनों हर सफर और संघर्ष में बराबरी से एक दूसरे का साथ निभाएं चाहे वो घर की ज़िम्मेदारियाँ हों या व्यक्तिगत लक्ष्य। तुम अपने हर लक्ष्य को पाओ मैं इसमें तुम्हारा पूरा भावनात्मक साथ दूंगी। मगर तुमसे भी यही उम्मीद करूंगी। सपनों को मारकर त्याग की मूर्ति बन जीना मैं सही नहीं मानती चाहे वो स्त्री हो या पुरुष। प्लीज सोच समझ कर मुझे उत्तर देना तुम इससे सहमत हो या नहीं।"

विनेश रोमा का गर्व से चमकता चेहरा देख हैरान था। बेहिचक पूरी ईमानदारी से उसने अपनी बात को रख दिया था।

"तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूँ रोमा। शायद ये सदियों से चली आ रही सोच है जो ये स्वीकार नहीं कर पाती कि एक स्त्री एक परिपूर्ण व्यक्तित्व है, उसे बैसाखियों की ज़रूरत नहीं। पूरी तरह निश्चिंत रहो, तुम्हारे सपने मेरे सपने, ये वादा है मेरा। मैं अपने आप को तुम जैसी समझदार और स्वाभिमानी पत्नी पाकर सौभग्यशाली समझूंगा। और ये मेरा बटुआ और मैं अब तुम्हारे हवाले। चाहे कहीं से भी बिल भरो अब ये तुम्हारी समस्या है।"

दोनों ने हंसते हुए एक दूसरे का हाथ थाम लिया।


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