बोझ

बोझ

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"कितनी बार कहा कि मायके का मोह छोड़ कर अपनी घर-गृहस्थी पर ध्यान दो, पर तुमने मेरा कहा कब माना?" घबराकर जागी नेहा सर्द रात में पसीने से तर-बतर थी।

"ये क्या कर दिया मैंने? मायके के स्नेह में ऐसी खोई रही कि पति की अनदेखी कर बैठी, क्या पता था कि वही मेरे लिए सपना बन जाएँगे। उफ! अब इस अकेलेपन के दर्द को लेकर कहाँ जाऊं? अपनी ही जिद पर अमल करने का पछतावा आजीवन रहेगा।" बड़बड़ाती नेहा आँसुओं में डूब गई जब दिवंगत पति ने सपने में आकर फिर से समझाने की कोशिश की।

गत वर्ष अपनी जिद से पति को अकेला छोड़ मायके आ गई थी। पड़ोसी ने अगली सुबह ही सुचित किया कि दूध का पैकेट व अखबार बाहर पड़ा है। अविलंब लौटी। दरवाजा तोड़ने के बाद जो नजारा दिखा उसने दर्द के सिवा कुछ नहीं दिया। पति का हार्ट अटैक से निधन हुआ था। उसे भी कहाँ पता था कि दिल-दिमाग से मजबूत इंसान ऐसे दिल के दौरे का शिकार बन जाएँगे। कल तक तो भले-चंगे थे।

अकेलेपन व अवसाद में डूबी नेहा, इस संपूर्ण दुर्घटना की जिम्मेदारी मायके वालों पर डाल कर स्वयं को मुक्त महसूस करने लगी थी जबकि पति की ना सुनना उसकी अपनी गलती थी। भाई के अनुरोध पर ही अनायास कार्यक्रम बनाया था तो उसी को पति की मौत का जिम्मेवार बना दिया। अपने स्नेही भाई को भी भावनात्मक बोझ तले दबा दिया। वह अपनी ही गलतियों के कारण ना इधर की रही ना उधर की। इन्हीं सोच की कशमकश में सुबह हो गई। पोते ने मुस्कुराते हुए गले में बाँहे डाल गुड माॅरनिंग किया तो अंदर की पीड़ा कम हुई।

"अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा। इन बच्चों पर अपना संपूर्ण स्नेह लुटाओ। उनमें अच्छे संस्कार भरो। इसके बाद ही मैं आत्मिक शांति पाऊँगा।" फिर से उनके उपस्थिति के अहसास ने उसे उर्जा से भर दिया था। अब आँँखों के सामने उद्देश्य दिखने लगा था। बेकार की बातों में उलझने की बजाय वह करेगी जो अब तक ना किया। अगली पीढ़ी को सुयोग्य बनाने पर ध्यान देगी। यही उसकी अपने पति के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।



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