बनघुसरा के बहुगुणा - स्व0 राम प्रताप यादव
बनघुसरा के बहुगुणा - स्व0 राम प्रताप यादव
---विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष---
बिसुही नदी की गोद में बसा गांव बनघुसरा अयोध्या जनपद मुख्यालय से लगभग 36 किलोमीटर दूर तारून - हैदरगंज मार्ग के पूरब तरफ बसा है। यह गांव " यथानामे तथा गुणे" को चरितार्थ करता है। तारून - हैदरगंज मार्ग से जब इस गांव में प्रवेश करते हैं तो जून की गर्मी में भी शरीर में सिहरन पैदा हो जाती है। इस सिहरन की जड़ में स्व० राम प्रताप यादव का परिश्रम और पेड़ों के प्रति दीवानगी थी।
बनघुसरा गांव में बिसुही नदी के किनारे से जाने वाले सम्पर्क मार्ग पर लगभग 800 मीटर की दूरी पर सड़क के बायीं ओर स्थित उनके विभिन्न स्वाद वाले आमों की बाग तथा दाहिनी ओर लगभग बीस बीघे के जंगल में उनके पोषित ढाख, आम, महुआ, नीम, बरगद, आंछि, करवन, कटार, कठूमर के पेड़ आज जवान हो चुके हैं। स्व0 राम प्रताप यादव ने इस जंगल में अनगिनत पेड़ लगाये। पेड़ लगाना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था। वे प्रात: उठकर जंगल में चले जाते। वहीं नदी किनारे दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर पेड़ लगाते या लगाये हुए पेड़ों के बचाव के लिए बाड़ बनाते।
उन्होंने हजारों की संख्या में पेड़ लगाये। लेकिन पहले के समय में इस गांव में पशुपालन ज्यादा होने और इसी जंगल में चरागाह होने के कारण कई पेड़ों को पशु खा जाते थे। अगली सुबह देखने पर वे या तो पेड़ की बाड़ को ठीक करते या ज्यादा खराब हालत में होने पर नया पेड़ लगा देते। उनके लगाये हुए पेड़ों में फल आने शुरू हो गये हैं जिसका लाभ गांव के लोग उठा रहे हैं।
पेड़ों के प्रति उनकी दीवानगी देखते ही बनती थी। गर्मियों के मौसम में उन्हें जहां कहीं भी अलग तरह का आम दिखाई पडता, उसकी गुठली जरूर मांग लेते। उसे लाकर अपने खेत में लगा देते। उन्होंने अपने एक बीघे खेत को नर्सरी बना रखा था। पेड़ों को न लगा पाने के कारण उस खेत में एकदम नजदीक नजदीक पेड़ बड़े हो गए हैं। वे कहते थे कि पेड़ लगाना सबसे बड़ा पुण्य का काम है। एक पेड़ लगाने पर कई मंदिर बनवाने या तीर्थ यात्रा करने से ज्यादा पुण्य मिलता है। एक पेड़ लगाने से इंसान को छाया, हवा और खाने को फल मिलता है तथा पक्षियों को आश्रय और भोजन मिलता है।
आसपास के गांव के लोग उन्हें "साधू यादव" के नाम से जानते हैं। 25 जून 2018 को लगभग सौ बर्ष की आयु उनका देहांत हो गया। वह अपने जीवन में साम्यवाद और हनुमान जी से काफी प्रभावित थे। उनके ऊपर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व० राजबली यादव के विचारों का व्यापक प्रभाव था। जीवन भर जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ते रहे। अपने जीवन के लगभग दस साल अयोध्या में साधु वेष में हनुमान जी की सेवा में भी गुजारे।
पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में स्व० राम प्रताप यादव का बहुत ही सराहनीय योगदान रहा। वह जंगल के पास से होकर बहने वाली बिसुही नदी में मछली मारने वाले लोगों को भी गर्मियों में पानी उलीचने से मना करते थे। लगभग आधा किलोमीटर के दायरे में उनके खौफ से कोई नदी का पानी नहीं उलीच सकता था। जीवन के अंतिम दिनों में भी पेड़ों के प्रति लगाव बना रहा। मृत्यु से कुछ दिन पहले भी आम की चार गुठली लेकर आए थे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि मृत्यु उनका इंतजार कर रही है। आम के वह चार बीज अपनी बारी का इंतजार ही करते रहे और उनका पालनहार उन्हें छोड़कर अपने पालनहार के पास पहुंच गया। यदि स्व० राम प्रताप यादव को "बनघुसरा का बहुगुणा" कहा जाय तो अतिशयोक्ति न होगी।
आज आवश्यकता इस बात की है कि यदि हमें अपनी भावी पीढ़ी को बचाना है तो स्व० राम प्रताप यादव की तरह पेड़ों का रोपनहार और पालनहार बनना होगा। अपने हिस्से के समय में से समय निकालकर खाली पड़ी जमीन में पेड़ लगाने और पोषण करने होंगे।
