बंदिशो की बेडियाँ

बंदिशो की बेडियाँ

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 राम प्रसाद और साधना जी की दो बहुएँँ थी। रामप्रसाद सरल स्वभाव के थे। पर उनकी पत्नी साधना के अपने नियम कानून थे। साधना को अपनी बहू को काम करवाना अच्छे से आता था। दोनों की कोई अपनी मर्जी नहींं थी। जिस समय जो कह दिया वह पत्थर की लकीर हो जाता था।

 दोनों बहुएँ घबराहट में कुछ नहींं कह पाती थी। मंजु.. साधना जी ने आवाज दी, जी मम्मी जी, आज गेहूँ साफ होगे याद है ना ! जी मम्मी जी कर लेगे शाम को। नहीं दोपहर को करना। वो मम्मी जी दोपहर को आज रूही को पढ़ाना था मुझे कल टेस्ट है रात को जल्दी सो जाती है। मंजु ने धीरे से कहा। देखो बहू ! शाम को बहूत काम है चाय शाम की, रात के खाने की तैयारी।

 दोपहर को ही करना। मंजु मन मसोस कर रह गयी और जल्दी से काम करने लगी ताकी थोडा भी समय मिले तो रूही को समझा दूँ। दीदी, आप रूही को पढा लिजिए बाकी मै कर लूंगी मीनु ने कहा जो मंजु की देवरानी थी। दोनों एक दुसरे की परेशानी समझती थी। नहीं, मिलकर जल्दी करेगे त़ो हो जायेगा मंजु कहते हुए तेजी से काम करने लगी। छोटे बेटे ने अगले दिन मीनु से पूछा पिक्चर चलोगी ? मम्मी से पूछ लेना मीनु ने खुशी से उछलते हुए कहा।मम्मी, मीनु को बाजार से कुछ काम था तो सोचा वो भी कर लेगें पिक्चर भी देख आयेगे। छोटे बेटे सोहम ने पूछा

ऐसा क्या काम है ?क्यूँ मीनु ? कडकती आवाज मे साधना ने पूछा। जी पा्रलर जाना था। ओहो !अभी तो गयी थी, कुछ दिन पहले। फैशन ही खत्म नहीं होते तुम्हारे। हो आओ ! पर पिक्चर विक्चर नहीं, आज बहूत काम है। कोफ्ते बनाने को बोल रहे है तुम्हारे पापा। 

बडी बहू मंजु ने कहा मै बना लुगी मम्मी जी। मीनु को जाने दिजिये। तुम चुप रहो आज नहीं, तो नहीं शाम को पडोस के गर्ग जी आ सकते है। छोटा बेटा भी माँ के सामने नहीं बोल पाया। मीनु उदास हो गयी। जानती थी दोनों बेटो की आवाज नहीं निकलती माँ, पिता के सामने।

अगले दिन गाँव से सास रहने आ गयी। अब तो साधना जी के सिर पर पल्लु आ गया। सासु जी के पैर दबाती तेल लगाकर, कभी सिर की मालिश करती। सासु जी की एक दमदार आवाज में साधना जी वही होती। 

और मंजु और मीनु मुहँ मे पल्लु दबाए खुब हँसती। देखो जीजी अब आया ऊँट पहाड के नीचे। हमे बहूत परेशान करती थी अब कैसी हमारी तरह कठपुतली बन गयी हमारी सासु माँ ?

उधर साधना अपनी बहूओ से बुराई करती अपनी सास की।

 ना जाने.क्या हो गया अम्मा जी को गाँव से आके ? पहले तो कभी इतना रौब नहीं दिखाती थी,सरल स्वभाव की थी जब मै जाती थी एक हफ्ते रहने पता नहीं चला कभी गुस्सा आता है। इस बार देखो फिरकी की तरह मुझे नचा रही है !ना जाने कब जायेगी ?

और राम प्रसाद जी से सारी रात बुराई करती साधना।अम्मा जी ने तो एक मिनट बैठने नहीं दिया बहूओ की हाथ से बना भाता नहीं। मुझे ही कहती है् तू बना। बताओ जी, जब से दोनों बहुएँ आई तब से मैने कहाँ रसोई मे कदम रखा है ? ठीक तो कह रही है अम्मा। तु स्वादिष्ट बताती है इसलिए तुझसे बनवा रही है। ओहो ! जी दोनों बहुएँ भी बहूत अच्छा बनाती है। पर उनकी तारीफ कर दी तो सिर पर चढ जायेगी। 

कब को, कह रही है जाने को गाँव ?अरे पगला गयी है। आये हुए चार दिन नहीं हुए। जाने का पूछू ?

साधना मुँह बनाकर उठ गयी। पहले तो ऐसा व्यवहार नहीं करती थी। अब तो बदल ही गयी अम्मा जी।

अम्मा जी बहूओ को खूब दुलार करती। पोतो को कहती जाओ घूमा आओ बहूओ को। मै साधना मिलकर कर लेगें। साधना जी को अंदर अंदर दिल मे खूब गुस्सा भरा था। पर कुछ नहीं बोल पाई। माँ के खिलाफ एक शब्द साधना जी के बरदाश्त नहीं थे रामप्रसाद जी को।

मंजु और मीनु की खुशी का ठिकाना नहीं था।सासु माँ को एसे बहू बने देखकर। साधना झुंझलाहट मे सारा गुस्सा मंजु और मीनु पर निकालती।  

 एक दिन सुबह से ही साधना जी को अम्मा जी ने साग बनाने, फिर तेल मालिश, और फिर कुछ साडी पकडा दी फाल लगा देना शाम तक इन पर। और मुझे तेरी बहूओ के हाथ का काम नहीं पसंद तुझे ही करना है। 

साधना जी जोर से बोली इंसान हूँ मै भी थकती हूँ, कठपुतली बना कर रख दिया ये कर, वो कर। क्या बोली ? अम्मा जी साधना  बडबडाहट सुन कर तुरंत बोली।घर के सभी इक्टठा हो गये तेज आवाज सुनकर अम्मा की। 

और जो तुने दो साल से दोनों बहूओ को कठपुतली बनाया। मशीन की तरह उनसे काम लेती है। वो दोनों नहीं थकती होगीं क्या ?

बहू जब तु आई गाँव ब्याह करके हाथो हाथो पर रखा मैने।एक साल के भीतर ही तुने राम प्रसाद के साथ जाने को कहा बम्बई मै तुरंत मान गयी। तब तक शादी के साल भर के त्योहार भी नहीं हुए थे। सोचा बेटे का ध्यान रखना भी जरूरी है खाना घर का मिलेगा। तू कभी नहीं आई फिर गाँव रहने साल मे एक बार आती वो भी रामप्रसाद के साथ एक हफ्ता रहकर लौट जाती। मुझे आराम का कभी नहीं सोचा। बम्बई मै गाँव से नहीं आना चाहती थी। यहाँ का जीवन खाना पीना अलग है हमसे।फोन पर रामप्रसाद बताता.था दोनों बहुएँ प्रेम से रहती है जिठानी, देवरानी नहीं बहन बहन जैसी पर साधना को रौब बढता जा रहा है। मै कभी कुछ कह ही नहीं पाया साधना को। अम्मा क्या करू ? खुशहाल घर बेकार कर रखा है। हिटलर की तरह रखती है बहूओ को। 

तब सोचा की एक बार तुझे अपने तरिके से समझाया जाए एक हफ्ता नहीं हुआ तु मेरे आने से परेशान। सोच जिन्हे तुने दो साल से कठपुतलियों की तरह नचाया है। बंदिशें इतनी की परेशान हो जाये। उनकी अपनी जिंदगी नहीं रही थी।क्या वो तेरा रहना चाहती होगीं ? एक औरत ही औरत का दुख समझती है। तु मास्टरनी बन गयी इनकी।बंदिशें देकर।

साधना, बहू बेटो पति के सामने ये सब सुनकर नजरे झुकाऐ खडी रही। आगे बढकर अम्मा के पैर मे बैठ गयी अम्मा जी माफ कर दो मुझे। मैने बहूओ को बेटियाँ बनाने के बजाए बहू समझा, कठपुतलियाँ बना दिया एक तरह से। आज मेरी आँखे खोल दी आपने। आज से दोनों मेरी बेटियाँ बनकर रहेगी। मंजु, मीनु तुम दोनों से मै नजरे नहीं मिला पा रही। अपने किये पर शर्मिंदा हूँ।दोनों बहुएँ गले लग गयी। 

चलो भाई !अब सब ठीक हो गया अब साधना के हाथ से बनी चाय पिओगी अम्मा। बहुओं की तुम्हें भाती नहीं। रामप्रसाद बोले। अम्मा मुस्कुराई अरे ! ये तो इस सास को सबक के लिए करना पडा। साधना तू बैठ बहूत ज्यादा कठिन परीक्षा हो गई तेरी।ये अब कठपुतलियाँ नहीं, अब बेटियाँ बनकर ये दोनों चाय के साथ गर्म गर्म पकौडे भी बनायेगी। साधना शर्माती हुई,अम्मा जी के पास जा बैठी। सब हँसने लगे। मंजु मीनु मुस्कुराती हुई अम्मा जी के पास आकर गले लग गयी। आज अम्मा जी ने उन दोनों के ऊपर से बंदिशों की बेड़ियाँ हटा दी थी।


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