Harish Bhatt

Abstract

3.5  

Harish Bhatt

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बंद अक्ल खुली मंद-मंद

बंद अक्ल खुली मंद-मंद

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दिमाग में उलझन सी रहती है।मन बैचेन रहता है।क्योंकि लिखे बगैर रहा भी नहीं जाता और लिखना भी नहीं आता।आखिर क्या लिखूं? पता नहीं मेरी सोच को क्या हो गया है।छोटे मुंह बड़ी बातें करते-करते न जाने क्या हो गया कि छोटी सी बात लिखने के लिए भी शब्द नहीं मिल रहे है।मेरे कुछ दोस्त कहते है कि तुम उपन्यास क्यों नहीं लिखते।तब मुझे लगता है कि लोगों की उम्मीदों का आकाश कितना विशाल होता है और उम्मीदों को पूरा करने वाले की जमीन कितनी छोटी।इस बात को सिर्फ वही जान सकता है, जिस पर उम्मीदों को पूरा करने की जिम्मेदारी होती है।सबको दूसरों से बहुत उम्मीदें होती है।मैं जानता हूं कि पढऩे और सिखने की कोई उम्र नहीं होती।पर कभी-कभी मन में यह सवाल उठ ही जाता है कि आखिर अब पढक़र क्या करूंगा।जब पढऩे का वक्त था, तब पढ़ा नहीं।क्योंकि उस समय अक्ल बंद थी, जो समय के साथ-साथ अब जाकर मंद-मंद खुली, तो पता चला कि थोड़ी बहुत अक्ल आ गई है, लेकिन अब क्या किया जा सकता है।मेरा पढ़ने का वक्त तो गुजर गया और गुजरा वक्त कभी लौट कर नहीं आता।अब पुरानी बातें समझ में आती है कि माता-पिता और अध्यापक कभी गलत नहीं कहते थे।वह उम्र ही ऐसी थी कि अपनी सोच और अपने कामों के अलावा कुछ अच्छा नहीं लगता था.लेकिन अब अपनी जिम्मेदारी निभाने का समय चल रहा है।ऐसे में लगता है कि इस समय जो अपने पास है उसी में बेहतर करने का प्रयास तो किया ही जा सकता है।अपने शिक्षण काल में अक्ल बंद होने के कारण अच्छे से पढ़ाई-लिखाई नहीं कर पाया तो क्या अब मंद-मंद अक्ल में ही अपने काम को पूरी लगन और ईमानदारी से तो कर ही सकता हूं।वैसे भी मुझको उम्मीदों के आकाश से कुछ लेनादेना नहीं है, लेकिन यथार्थ के धरातल पर अपने कदमों को मजबूती से तो रखना ही है।हर इंसान की जिंदगी में उसके आयु वर्ग का अपना महत्व होता है और जिसने इस महत्व को नहीं जाना, वह नाकामयाब साबित हो सकता है।लेकिन ऐसा भी नहीं होता।बाल्यकाल में शिक्षा व अच्छे संस्कार ग्रहण करके युवावस्था में अपनी शिक्षा व संस्कारों के सहारे जीवनयापन करने का सफल प्रयास किया जा सकता है।बचपन की गलतियों को युवावस्था में सुधारा जा सकता है, लेकिन युवावस्था की गलतियों को वृद्घावस्था में नहीं सुधारा जा सकता।जानता हूं कि मेरा गुजरा वक्त अब नहीं लौट सकता।समय बहुत कम है और मंजिल बहुत दूर, इसलिए दूसरों की गलतियों से ही सिखने का प्रयास रहता है क्योंकि मेरे पास तो अब गलतियां करने का भी समय नहीं है।अब बहुतों की उम्मीदों के साथसाथ अपने सपनों को भी पूरा करने का दबाव रहता है।दबाव में बेहतर काम किया जा सकता है, उनकी अपेक्षा जो बगैर दबाव के ही लडख़ड़ा जाते है।अभी तो मन को शांत रखने की कोशिश थी, इसलिए अपनी बातों को आपसे शेयर कर रहा हूं।आगे कोशिश रहेगी कुछ अच्छा लिखने की, ताकि पढ़ते समय आपको भी अच्छा लगे.


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