बिट्टी की शादी

बिट्टी की शादी

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शादी तो मैं गांव से ही करूँगी, बिट्टी चाहे तू लाख जतन कर ले, तेरी शादी गाँव से ही होगी।

बिट्टी तु समझती क्यों नहीं ? तेरी दोनों बहनों की शादी, तेरे भाई की शादी, सब गांव के उस पुस्तैनी मकान से हुई है।

लेकिन माँ मेरे सारे दोस्त वहां कैसे जाएंगे ?

क्यों नहीं जाएंगे ? वहाँ कमी किसी बात की है ?

हाँ परिवेश जरूर देहात का है। मगर मेरी भी सुन लो, तेरी शादी वहीं से करूँगी।

और इस प्रकार बिट्टी अर्थात" वनिता तिवारी" अपनी शादी के लिए अपने परिवार के संग गांव को चली।

सावन मास की सुबह थी, बादल बरस कर छँट चुके थे, निकली चटक धूप से आकाश चमक रहा था। सड़क मार्ग से गाड़ियों का काफिला गांव की ओर चल पड़ा।

रास्ते भर सब गाते-गुनगुनाते जा रहे थे। बिट्टी का मन अभी भी खिन्न था। चुपचाप बैठे बाहर की ओर निहार रही थी। कहाँ तो लोग ' डेस्टीनेशन वेडिंग' के लिए जाते हैं, और एक मैं हूँ, जिसे गांव जाना पर रहा है ! जैसे- जैसे उबड़-खाबड़ रास्तों के बीच गाड़ी आगे बढ़ते गई, एक अजीब सा सुहावना प्रभाव बिट्टी महसूस करती गई।

वृक्षों की हरियाली, खेतों में गजब का रौनक और आसमान की लालिमा देखकर वह भी मुग्ध होती चली गई।

गाँव पहुंच कर देखा "धनिया" ने एक दिन पहले ही घर लीप पोत कर रखा है।

माँ तो पहुंचते साथ ही नहा-धोकर कुल देवता के मंदिर में पूजा अर्चना करने चल दी, ताकि विवाह सफलता पूर्वक निपट जाये।

बिट्टी अपनी मौसेरी बहनों के साथ गांव घूमने निकल पड़ी। साथ में धनिया भी थी, माँ ने धनिया को साथ लगा दिया था। धनिया यहाँ तो नेटवर्क का काफी प्राब्लम है ! देखो अपलोड कितनी मुश्किल से हो रहा है ! धनिया सुनकर मुस्कुरा दी।

धनिया तुम ये फेसबुक,व्टासअप वगैरह करती हो ?

धनिया हँस पड़ी----।

नहीं दीदी।

अच्छा धनिया तेरा हसबेंड मतलब तेरा ''आदमी" कहाँ रहता है?

जीऽऽऽ शर्म से धनिया सर झुकाये चलती रही।

अरे बाबा शरमा मत ! मैंने ऐसा क्या पूछ लिया ?

जी गुजरात में, टैक्सी चलाते हैं।

यहाँ गांव में कब आते हैं ?

परब में। कहकर धनिया फिर शरमा गई और अपनी बड़ी- बड़ी आँखें नीचे कर ली।

वाह क्या पोज़़ है ! कहकर बिट्टी के मोबाइल का फ्लैश चमक उठा।

तेरे पास मोबाइल है ?

नहीं दीदी।

तो अपने "उनसे " बातें कैसे करती हो ?

जी, कोने वाले दुकानदार के पास जरूरी काॅल आ जाता है, मुस्कराते हुए धनिया ने कहा।

अच्छा धनिया तुम पढ़ी लिखी हो ?

आठवीं कक्षा तक पढ़ी हूँ। फिर बाबू जी बीमार पड़ गये। मेरी पढाई छूट गई। मैं माँ के साथ खेती के कामों में लग गई। अब तो मेरी माँ भी चल बसी है। दो भाई है, बड़ा भाई पांच साल पहले गांव छोड़ कर कहीं भाग गया और छोटा पी के सारा दिन नशे में धुत रहता है, कभी-कभी बीमार पिता से घर आकर पैसे के लिए झगड़ा करता है।

दीदी छोड़िए न ये सब बातें। आपकी कल शादी है, चलिए घर चलकर आराम कीजिए। धूप में यह सुंदर सा मुखड़ा कुम्हला जाएगा।

अरे वाह धनिया तू तो बड़ी- बड़ी बातें करना भी जानती है !

धनिया हँस पड़ी---' सफेद मोती समान उसके दाँत चमक उठे थे।

घर लौट कर सब पसर गये।धनिया ने सबको बुला-बुलाकर खाना खिलाया, साफ सफाई कर अपने घर चली गई।

इन चंद घंटों में धनिया बिट्टी को प्यारी लगने लगी थी। उसके अपनत्व भरे व्यवहार ने बिट्टी का मन मोह लिया था।

धनिया तू घर मत जा, मेरी शादी तक यहाँ रह जा।

एक मनमोहक मुस्कुराहट के साथ धनिया बोली- "दीदी चाहती तो मैं भी यही थी, मगर बाबू जी को खाना भी खिलाना है।

धनिया के जाने के बाद बिट्टी उसके बारे में सोचती हुई गहरी सोच में डूब गई- ---।

घर बाहर इतने ढेरों काम, बीमार की सेवा, फिर भी हमेशा खुश रहती है।

आज कितने दिनों बाद बिट्टी अपना मोबाइल छोड़, माँ के पास जा बैठी ! और अपना सर उनकी गोद में रख दिया।

बिट्टी का लाड़ देख माँ की आँखों में आँसू आ गए।

जा बिटिया जा,जा के गाने बजाने में बैठ।

मैं भी आती हूँ।बिट्टी का सर सहलाते हुए माँ ने कहा।

आज वनिता का विवाह है। सुबह से ही मेहमानों का आना शुरु हो गया है। शहर से बिट्टी को सजाने के लिए ब्यूटी पार्लर की एक टीम भी आ गई थी।

एक कमरे में बिट्टी तैयार हो रही थी। कुछ देर बाद अपना काम निपटा कर धनिया भी आकर कमरे के एक कोने मे बैठी थी।

दीदी तुम तो बहुत सुंदर हो। फिल्म की हिरोईन की तरह ! तुम अगर न भी सजो तो चलेगा।

अच्छा धनिया तुम बातें बनाने में इतनी माहिर हो ! तुम एक फोन क्यों नहीं ले लेती हो ?

अपने "उनसे" बातें करने के लिए ----!

दीदी ! मोबाइल लेने लायक पैसे भी तो होने चाहिए।

अच्छा धनिया तू नहीं सजेगी मेरी शादी में ?

हाँ दीदी, क्यों नहीं ? ये देखो----- कहकर सफेद बेली के फुलों का गजरा बिट्टी को दिखाने लगी।

ओ माई गाॅड ! सो ब्यूटीफूल ! मैं भी लगाऊँगी !

लो दीदी मैं तुम्हारे लिए भी लायी हूँ।

थैंक्स धनिया !

प्लीज आप मेरे बालों में ये गजरा जरूर लगा देना--।

ब्यूटीशियन कभी बिट्टी को और कभी धनिया को देखने लगी ! धूमधाम से बिट्टी की शादी हो गई। विदाई के समय दूर एक कोने में धनिया खड़ी थी। जाते-जाते कार में बैठी बिट्टी सोच रही थी, माँ ने ठीक ही किया, गाँव में उसकी शादी अनुठी रही। उसे अपने अंदर एक नई ऊर्जा का अनुभव हो रहा था। धनिया को याद कर वह मुस्कुरा पड़ी। सप्ताह भर बाद जब वह ससुराल से लौटी, माँ कुलदेवता की पूजा के लिए गांव जाने वाली थी। जिद कर अपने पति संग वह भी गाँव गयी।

धनिया सुनते ही दौड़ कर मिलने चली आई। बिट्टी अपने बैग से एक सुंदर सा मोबाइल फोन धनिया को देती हुई बोली, अपने "उनसे" बातें करना। अपनी दीदी का यह तोह्फा रख लो ! इस बार धनिया के बड़ी- बड़ी आखों में आंसू थे।

बिट्टी बोली, चल पगली हँस दे ! और दोनों हँस पड़ीं।


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