बिना पते की पत्रिका
बिना पते की पत्रिका
बिना पते की पत्रिका
आज से बहुत साल पहले की बात है।
एक शहर की पोस्ट आफिस में शहर की चिठ्ठियां पोस्ट मेन shorting कर रहे थे।
तब शादी की एक आमंत्रण पत्रिका एक डाकिये के हाथ में आई।
वह पता देख रहा था लेकिन उसमें सिर्फ नाम और शहर का नाम ही था।
वह सोच में पड़ गया।
और आखिर में दूसरे डाकिये को दिखाता रहा।
लेकिन बहुत सारे डाकिये को नाम के आधार पर उसका पता मालूम नहीं हो रहा था।
आखिर में उस वक्त एक डाकिया आया
उसने देखा
और फिर बोला
मैं यह आमंत्रण पत्रिका पहुंचा दूंगा।
कितने दिनों से यहां थी?
दूसरे डाकिये बोले दो दिन से आई थी।
और शादी अब पांच दिन बाद है और वो भी इंदौर में
अब क्या किया जाए
जो डाकिया बोला था पहुंचा दूंगा
वह बोला
हमें आज ही यह पत्रिका देनी चाहिए।
उसे मालूम हो गया था कि पता नजदिकी एरिया का है।
और जिसका नाम लिखा था उसकी चिठ्ठियां हर महीने पांच या छह आती है और मेरे इलाके में वह मकान आता है।
एक घंटे में पत्रिका पहुंचा दी।
यह बात उस समय की है जब मोबाइल नहीं था।
और पोस्ट से ही समाचार मिला करता था।
करीबन चालीस साल हो गए उस बात की
और वह इन्सान समयसर पत्रिका मिलने पर खुश हो गया।
लेकिन उसे कौन डाकिया था पता नहीं था फिर भी मन ही मन थे क्यूं कह दिया।
और शादी से एक दिन पहले इंदौर पहुंच गया।
बिना पते की पत्रिका
एक सच्चे डाकिये की वजह से ठीक समय पर पहुंच गई।
और बता दूं कि वह आमंत्रण पत्रिका मेरे नाम की ही थी।
उस छोटे से शहर में मेरी पहली जोब थी और जोब शुरू किये तीन साल ही हुए थे।
शहर का नाम गोधरा।
Thank u postman
- Kaushik Dave
