पवन और बुढ़िया

पवन और बुढ़िया

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पवन एक होशियार और होनहार लड़का था। ग्रेजुएशन करके इंदौर में एक छोटी-सी नौकरी करता था। इंदौर रेलवे स्टेशन के पास की छोटी सी बस्ती में किराए पर रहता था। अभी अभी छह महीने हुए थे। पवन हर रोज सुबह रेल की पटरी के समांतर मोर्निग वोक के लिए जाता था। एक दिन चलते चलते बहुत आगे निकल गया।तब उसने देखा कि एक ओर से ट्रेन आ रही थी और तभी एक लड़की रेल की पटरी पर जा रही थी। ट्रेन को देखकर लड़की चिल्लाई 'बचाओ'। पवन लड़की को बचाने के लिए जैसे ही जा रहा था तब पीछे से आवाज आई।

"बाबुजी आगे मत जाना, ख़तरा है।" पवन ने मुड़ कर देखा कि एक बुढ़िया उसे रोकने के लिए आवाज दे रही थी। पवन थोड़ा सा रुक गया और रेल की पटरी की ओर देखा। ट्रेन जा चुकी थी और लड़की का कोई नामोनिशान नहीं था। वह आश्चर्यचकित हो गया। पवन धीरे-धीरे बुढ़िया के पास आया। बुढ़िया बोली, "बेटा, तुमने जो देखा वो छलावा था। एक साल पहले वह लड़की इस जगह पर रेल के नीचे कटकर मर गई थी और तब से हर रोज सुबह इस समय वह दिखाई देती है और बचाने के लिए चिल्लाती है। जो बचाने के लिए जाता था, उसे मैं रोक लेती थी और जो नहीं रुकता ,वह जान गंवा बैठता था।"

पवन, "लेकिन आप बचाने के लिए क्यूँ यहां रहते हो ?"

बुढ़िया बोली, बेटा, आज से १५ साल पहले मेरा भी एक घर था। मैं अपने बेटे के साथ रहती थी। मेरे लड़के की सगाई भी हो गई थी लेकिन एक रिश्तेदार ने धोखाधड़ी करके मेरा घर हड़प लिया। हम रास्ते पर आ गए और मेरे लड़के की सगाई टूट गई। धीरे धीरे मेरा लड़का अंदर से टूट गया और एक दिन उसने आत्महत्या कर ली। किसी के घर का चिराग बुझ ना जाए इसलिए मैं हर रोज सुबह यहां आती हूँ।"

पवन यह सुनकर कर बुढ़िया को शुक्रिया कहा और अपने घर चलने के लिए कहा लेकिन बुढ़िया ने मानी। आज भी वह बुढ़िया हर रोज सुबह रेल की पटरी के पास आती है और....मेरी हसरतों को पूरा न कर सकूँ तो क्या ? दूसरों की खुशियों में खुशी देख लूँ, मेरा चिराग बुझ गया तो क्या ? दूसरे के चिराग को मैं खुशी दे दूँ। मैं तो एक बुढ़िया हूँ, आज मैं हूं, पर कल बुझ भी जाऊँ !


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