बिलखते अहसास
बिलखते अहसास
मालिनी अध्यापिका है, बहुत मेहनती भी है और बच्चों के स्तर को समझकर ही उन्हें कुछ सिखाने के लिए प्रयासरत रहती है। हमेशा अपने स्कूल के कार्य में व्यस्त रहने वाली मालिनी के भावों से तनाव स्पष्ट दिख रहा था तभी अंग्रेजी की अध्यापिका शिखा वहां आई और तनाव का कारण पूछा।
मालिनी अध्यापिका ने कहा- डू यू नो द वेल्यू ऑफ द इंगलिश ?
शीखा- व्हाट डू यू मीन ? व्हाट हैपनड्, वाई आर यू आस्किंग द क्वेशचन एंड लुकिंग अपसेट ?
मालिनी- कल ही की बात है। मैं पुस्तकालय में बैठी पुस्तिकाएं जांच रही थी। धीमी-धीमी बातचीत के पश्चात सहसा ही मेरे कानों में एक वाक्य गूंजा- "अरे सुनो ! तुम्हें पता है इंग्लिश के आगे हिंदी की वेल्यु क्या है ?
मेरा ध्यान एकाएक उस आवाज़ की ओर गया किन्तु मैं उस ओर देखकर उन विद्यार्थियों को कोंशियस नहीं करना चाहती थी, मगर यह सोचकर कि वाह ! आज हमारे बच्चे हिंदी के बारे में कुछ अच्छा सोचने जा रहे हैं, उस के महत्व को समझते हैं, इसलिए शांति से उनकी बातें और मातृभाषा हिंदी के प्रति उनके भाव जानने के लिए उत्सुक एवं भीतर ही भीतर खुशी व गर्व महसूस कर रही थी।
तभी दूसरा छात्र बोल उठा क्या ? पहले छात्र का उत्तर मेरी कल्पना और सोच से बिल्कुल परे था। वह बोला तुम्हें यह जानकर हैरानी होगी कि बाज़ार में इंग्लिश की यू लाइक का मूल्य 500 रु और हिंदी की यू लाइक का मूल्य केवल 185 रुपए है, अरे हाँ यार पता है कहकर सब हँसने लगे।
उन बच्चों की उस समय क्या सोच हिंदी के प्रति रही वो तो मुझे नहीं पता किंतु मेरे मस्तिष्क में हिंदी की हालत उस मां की तरह चित्रित होने लगी जिसे बड़े होने पर बच्चे वृद्ध आश्रम में छोड़ आते हैं, उस पत्नी के रूप में मुझे हिंदी दिखने लगी जिसे पति केवल घर परिवार संभालने के लिए ब्याह कर लाता है और स्वयं किसी फैशनेबल स्त्री के साथ रंगरेलियां मनाते हुए जीवन बिताता है। उस समय मुझे "घर की मुर्गी दाल बराबर।" उक्ति हमारी हिंदी की दशा पर फिट बैठती नज़र आई।
क्या मनोदशा होती होगी उस बूढ़ी मां की जिसको बोझ समझकर संतान वृद्ध आश्रम छोड़ आती है, कितना बिलखती होगी वो स्त्री जिसके पति के पास उसे छोड़कर बाकी सब के लिए समय है। वास्तव में वही सब तो झेल रही है हमारी हिंदी। जिसे सहज समझकर आज की पीढ़ी आपस में बात करते समय तो प्रयोग में लाती है लेकिन गर्व महसूस अंग्रेजी भाषा बोलने में करती है।