Neelam Sharma

Others

2.5  

Neelam Sharma

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मेरा दार्शनिक चिंतन

मेरा दार्शनिक चिंतन

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"प्यार अंधा होता है- परंतु दिव्य दृष्टि के साथ!"

माने कि इ जो प्यार नाम की चिड़िया होत है, उ धृतराष्ट्र है और जोन प्यार मा सुहावने सपने आते हैं, सुंदर ,इंद्रधनुषी कल्पनाएं उभरती हुई प्रेमी युगल को इंद्रलोक का भ्रमण कराती हैं। चाँद तारों के मन में प्रेमियों से भयभीत रहने और "सन्नाटे को चीरती सनसनी" जैसे भाव उत्पन्न करती हैं। ऊ ससुर दिव्य दृष्टि वाला सिनेमा होत है। बोले तो फुल! सौ टका प्रेमी प्रजाति के ओवर फ्लो मतलब की ऊपर वाले माले में ज़बरदस्त कैमीकल लोचा।

हालांकि प्यार सबसे कम समय खाता है और सबसे ज्यादा समस्याएँ पैदा करता है। जिसका जीवंत उदाहरण बोले तो लाइव टेलीकास्ट बसंत बहार में अंधे प्यार में वेलेंटाइन त्योहार में प्रत्येक वर्ष प्रत्यक्ष रूप में होता है। चूंकि प्यार नाम की बीमारी का कोई इलाज नहीं है सिवाय ज्यादा, और ज्यादा प्यार के बोले तो पर्याय का अय्यार रूपी तोता इतना मीठा बोलता है कि सिवाय वो तोता पालने के कोई चारा ही नहीं रहता और इसकी वैज्ञानिकता तथा विशेषता यह है कि प्यार 50% वह है जैसा आप सोचते हैं, और 50% वह है जो अन्य सोचते हैं। मतलब कुल मिलाकर गधा, घोड़ा, साँप, बिच्छू, मगरमच्छ कुछ भी पालें पर प्यार रूपी तोता न पालें क्योंकि यह तोता आपके फाख्ते उड़ाकर फाकाकशी तक करवा देता है।

वैसे आभासी दुनिया क्या और अच्छी खासी दुनिया क्या? इन तोतों की जमात बढ़ती जा रही है। पहले लोग सठियाते थे अब चलिसाते हैं। समय की गति से तीव्र इनके भाव बदलते हैं कोई रोज़ रब बदलता है तो कोई शब।

खैर शादीशुदा हो जाने का मतलब यह थोड़े न होता है कि प्रत्येक संसारिक मोह त्याग दो, जोगी बन जाओ। एक ही खूंटे से ताउम्र बंधे रहो। है ? रात-दिन एक ही प्राणी की पूजा करते रहो। बाबा बोशो कहते हैं न जी न, ऐसी अनरोमांटिक जिंदगी कतई न जियो,अरे रुको पत्नियों -आप पर भी यही नियम है वो भेदभाव। जी सही न ही बीवी को ऐसी अनरोमांटिक ज़िंदगी जीनी है। आप सभी अपना वसंत मनाने के लिए आज़ाद हैं। दिलों में बस गुंजाईश रहनी चाहिए।"

एक तजुर्बादार ने मुझे कहा-"सच बताउं, वसंत, डेट, रोमांस, वेलेंटाइन, फ्लर्ट का असली आनंद शादी के बाद ही आता है। हमारे जमाने में तो सारे बसंत, रोमांस और वेलेंटाइन पत्रों में ही मन जाया करते थे। जब तक उधर से हां का जवाब आता था, उधर प्रेमी युगल की दूसरी जगह शादी भी पक्की हो जाती थी। पर सच्चा प्यार तभी होता था, और आज के प्रेमी तो टैक्नीकल हैं।

ऐसी अवस्था में किसी खास प्रकार के अनुभव की जरूरत नहीं रहती। अब तो लव गुरु बोशो बाबा का चिट्ठाश्रम और ज्ञान गूगल और व्हाट्सएप्प पर क्या मिलने लगा है, रोमांस की दुनिया ही बदल गई है। बड़ी खुशनसीब है डिजिटल समय में रोमांस करने वाली हमारी युवा पीढ़ी। पर उस रोमांस और वसंत का अपना ही आनंद था।

अरे! भाई साहब वैसे चलिसाने का भी अलग ही आनंद है। कहते हैं चालीस में तो बंदर भी गुलाटी मारना नहीं छोड़ता तो हम तो वानर राज का डैवलप्ड फीचर हैं वैसे हरकतों से हम अनकलचर्ड क्रीचर्स हैं।क्या नीलम शर्मा ! अब इतना तो चलता है। तुम या कोई भी इंसान संत तो है नहीं कि चौबीस घंटे संतई ही करते फिरें। वैसे प्रेरणा दायक संतों की भी संख्या कमतर नहीं है फिर चाहे रामरहीम हो या आशा राम सभी सकारात्मक ऊर्जा देते हैं। अरे, कभी तो मन में मधुमास की हिलोरें और दिल में उमंगें जगेंगी ही न! संत गुरु भी पता नहीं किसको पर कहकर गये हैं कि मन में पल रहीं इच्छाओं को मारना सबसे बड़ा पाप है बच्चा! अतः बड़े बूढ़ों के विचारों का सम्मान करते हुए हमें प्रेम बढ़ाना चाहिए।

वैलेंटाइन डे हो या वसंत रोमांस तो अब भी वही है पर मनाने का स्टाइल बदल गया है और बदले भी क्यूँ न भाई गैर वैवाहिक रिश्ते भी सर्टिफाइड जो हो गये हैं। तो भी कूल! चिल मार यार और चलिसा तो गये ही हो तो बस कर लो प्यार। भेंट और डेट को प्राथमिकता दो। बिना डेटिंग किए ऐसा लगता है मानो न वसंत सेलिब्रेट किया न वेलेंटाइन!

अब हमारी प्रजाति भी अपडेटेड है। बोले तो कवि और साहित्यकार होने का भ्रम पाले हुए बुद्धिजीवियों में यह उमंग सुनामी की लहरों सी हिलोरें मारती पाई जाती। आभासी दुनिया यानि लेखकों का कुंभ मेला और मेले में किसी का दिल मैला तो किसी का अकेला सभी अपने अपने लाजिक्स के साथ बसंत को लेकर बड़े सेंसेटिव होते हैं। सभी समूहों की कलम प्रेम पराग को स्याही बनाकर कभी सरस्वती पूजन के बहाने कवि गोष्ठी से लेकर साहित्यिक विमर्श के छोटे-बड़े आयोजन कर डालते हैं। 

इतना ही नहीं होटल रैस्टोरेंट सिनेमा, चित्रक आदि बसंत पर केंद्रित आयोजन करते हैं। सभी से बसंत का नाता बड़ा गहरा जो है। सभी पर मदन देव तीर छोड़ते से नजर आते हैं।

फिल्मी गीतों से बसंत के मौसम में दिल वेलेंटाइन-डे टाइप का हो ही जाता है। सही पूछो तो भारत विश्व गुरु है का आभास इस दिन हर दिशा और दशा में हो ही जाता है।सभी अपना कर्तव्य पालन पूरी निष्ठा से करते नजर आते हैं। शिव सैना ,हिंदू संघ,बजरंग दल वालों को भी हमारे युवाओं को संस्कार सिखाने के अवसर और पिंक ब्रिगेड को नारी स्वांतत्र्य के झंडे गाड़ने के स्टेटमेंट देने के मौके मिल जाते हैं। हमारे बड़े-बुजुर्गों को भी जमाने को कोसने, ये उन दिनों की बात है कहकर किस्से सुनाने और हम कलमवीरों को नैतिक लेखन के विषय मिल जाते हैं। देखा! मैंने तो लिख भी दिया।



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