Neelam Sharma

Drama

2.5  

Neelam Sharma

Drama

कसमसाती कश्मकश

कसमसाती कश्मकश

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बस यूँ ही, काव्या-सुनो सागर ! तुम मेरे नहीं हो न?जानती हूं! मानती भी हूँ।

कल झाँक लिया मैंने 

तुम्हारे चंचल चित में।

तुम्हारी आँखों में,

जिनमें मुझसे मिलन की चाह 

तो पूरी शिद्दत से थी, पर मैं नहीं थी।

पता है यही कारण था जो हर बार 

मिलने से डर लगता था।

हाँ पढ़ लेती हूँ मैं आँखों को,

मन को।पर तुम्हारी ग़लती नहीं है, 

तुम्हारी प्रजाति के सभी लोग ऐसे ही होते हैं, और मेरी प्रजाति यानी स्त्री रिश्तों की भीड़ में भी बिल्कुल तन्हा ! हाँ, वास्तविकता यही है अकेली थी, हूँ और रहूँगी पर रिश्तों के कुंभ में। अब तुम भी जुड़ गए।आदत नहीं है मेरी किसी से कुछ भी माँगने की।पर मन में शुरू से ये इच्छा रही कि मेरे अपने मेरे मन को पढ़ें और बिना माँगे मेरी चाहत पूरी करें। पर तुम तो जानते भी थे न ! खैर अब स्वीकार कर चुकी हूँ कि स्त्री जीवन का यही शाश्वत सत्य है। तुम ओढ़ कर मत बैठ जाना मेरी इन बातों को और चिंता मत करो मैं हर परिस्थिति में खुद को खुश रख सकती हूँ।


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