संघर्ष बनाम संकल्प
संघर्ष बनाम संकल्प
घर घर काम करने वाली लक्ष्मी की सुमुखी व चंचल बेटी सरस्वती बचपन से ही अपने सपनों को पूरा करने का सपना देखती थी। केवल नाम से ही नहीं बल्कि आसपास के ज्ञान को बटोरना, कंठ में मधुरता लिए और सौम्य स्वभाव वाले सरस्वती ऐसा प्रतीत होता था मानो स्वयं सरस्वती का ही रूप है। वैसे भी कहते हैं ना कि बच्चों में भगवान बसते हैं और हमारे देश में तो बेटियों को देवी के रूप में पूजा जाता है। उसकी माँ एक सिंगल पैरंट थी। उनके के पास कोई अधिक धन नहीं था, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी।
नंदी सरस्वती का पहला सपना था कि वह उच्च शिक्षा प्राप्त करेगी, लेकिन उसके पास पढ़ाई के लिए साधन नहीं थे। उसने अपनी माँ के साथ घरों में काम करते समय भी पढ़ाई की और रातों-रात पढ़ने का समय निकाला।
उसकी माँ उसके सपनों का समर्थन करती और उसे मार्गदर्शन करती रहीं। सरस्वती का संघर्ष बढ़ता गया, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी।
वह कहते हैं ना हीरे को जोहरी खोज ही लेता है ।तो उसी प्रकार (मालिनी के यहाँ सरस्वती की माँ लक्ष्मी काम करती थी) मालिनी लक्ष्मी के साथ काम करने आए सरस्वती की क्रियाओं को हमेशा नोट करती थी। उसकी भाव भंगिमाओं को, उसकी नई- नई चीजों के बारे में जानने की जिज्ञासा को वह बहुत बारीकी से समझ रही थी।
मालिनी के मार्गदर्शन में सरस्वती ने एक दिन शहर में चल रहे शिक्षा कार्यक्रम में भाग लिया, जहाँ उसकी पढ़ाई और मेहनत की कहानी सुनी गई। वहाँ के समर्थकों ने उसकी मदद की और उसे एक छात्रवृत्ति प्रदान की, जिससे उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी।
सरस्वती ने अपने प्रयासों और संघर्षों से कभी हार नहीं मानी, और उसने उच्च शिक्षा प्राप्त की। उसने अपने अद्भुत संघर्षों के बावजूद एक सफल वकील बनने का सपना पूरा किया और गरीब लोगों की मदद करने लगी और एक सफल उदाहरण व अनुभव के रूप में उसने अपने आपको प्रस्तुत किया और सीख दी कि बचपन के संघर्षों का सामना करने वाले लोग अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं, अगर वे मेहनत, समर्पण, और सही दिशा में प्रयास करें।