बीज
बीज
डॉक्टर द्वारा माँ के कैन्सरग्रस्त होने और उनकी संभावित बची हुई आयु जानकर वह टूट सा गया था। पूरे एक सप्ताह तक अस्पताल की दौड़ धूप के बाद उस रात घर पर पत्नी से बतियाते हुए वह बोला –"सीमा, तुमने हर अच्छे बुरे वक्त में मेरा साथ दिया है। अब यूं तुम्हारे नौकरी छोड़ देने से हमारी आर्थिक परिस्थिति डगमगा जायेगी।"
"बुरे दिनों में जरूरत के वक्त पर नौकरी करने का फैसला मेरा अपना था। अब परिस्थितियाँ बदल चुकी है। इस वक्त मेरी घर पर ज्यादा जरूरत है।"
"सीमा, तुम समझने की कोशिश करो। अभी घर की लोन पूरी होने में ५ साल बाकी है। कम से कम तब तक तो नौकरी मत छोड़ो। वैसे भी अभी माँ की बीमारी में बहुत ज्यादा खर्च हो रहा है।" उसने उसे समझाने की कोशिश की।
"इसलिए ही तो नौकरी छोड़ रही हूं ताकि उनकी जिन्दगी के बचे हुए दिनों में उनकी ज़रूरतों का ध्यान रख सकूँ।" नौकरी छोड़ने का कारण बताते हुए उसने कहा।
"हकीक़त को स्वीकार करों सीमा। माँ वैसे भी साल – दो –साल से ज्यादा नहीं जीने वाली। उनकी देखभाल के लिए हम नर्स रख लेंगे।" उसने समाधान सुझाते हुए कहा।
"मनोज, यह मत भूलो हमारे आज के कर्म ही भविष्य का फल है। आज अगर माँ की अवगणना कर मैं रूपये कमाने में व्यस्त रही तो संभव है जरूरत के समय कल हमारे अपने बच्चों के पास हमारी जरूरत के लिए समय न हो।" सीमा के तर्क के आगे मनोज अनुत्तरित था।