भय
भय
स्कूल में गणतंत्र दिवस की तैयारियाँ चल रही थी। रानू पहली कक्षा में पढ़ती थी, गणतंत्र दिवस के लिये वह एक देशभक्ति कविता तैयार की थी।अपनी कक्षा में गुरुजी के सामने वह अपनी कविता सुनाई तब बच्चों ने खूब तालियाँ बजाई और सभी ने उसकी ख़ूब तारीफ की।
गणतंत्र दिवस का उत्सव हाई स्कूल में मनाया जाता था।रानू सुबह जल्दी उठकर नहा धो ली और यूनिफॉर्म पहनकर तैयार हो गई।वह समय पर स्कूल पहुँच गई, अपने स्कूल में झंडा फहराने के बाद प्राथमिक शाला के बच्चे प्रभात फेरी के लिए गाँव की गलियों में गए। ग्राम भ्रमण करते करते वे लोग हाई स्कूल पहुँच गए।उस दिन रानू को सुबह से ही बहुत डर लग रहा था। हाई स्कूल में पहुँचने के बाद उसका डर और बढ़ने लगा। वह सोचने लगी कि मंच में जाकर कैसे कविता बोलेगी। उस स्कूल में बहुत सारे बड़े बच्चे शिक्षक और ग्रामवासी गणतंत्र दिवस के उत्सव में शामिल होने आए थे। इतने सारे लोगो को देखकर वह भीतर ही भीतर डर रही थी ।इससे पहले वह कभी मंच में भी नहीं गई थी। वहाँ झंडारोहण के बाद गणतंत्र दिवस का मंचीय कार्यक्रम शुरू हुआ।
कुछ देर के बाद कविता वाचन के लिए रानू का नाम मंच से पुकारा गया, पर वह अपने जगह में चुपचाप बैठी ही रही। शिक्षक के द्वारा दो, तीन बार नाम पुकारने और उनकी सहेलियों के कहने पर वह खड़ी तो हो गई मगर बहुत धीरे धीरे मंच की ओर जाने लगी।रानू के गुरुजी उसके मन की बात भाँप लिए और उसके डरने का कारण भी समझ गए। वे उसके पास जाकर उसका हौसला बढ़ाये। उसका हाथ पकड़कर उसे मंच तक ले गए और मंच के पास ही खड़े रहे ताकि रानू को डर न लगे।
पहले तो रानू के हाथ पैर काँपने लगे फिर अपने गुरुजी को देखकर उसका डर कम होने लगा और उसने बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति दी। उसकी कविता सुनकर सभी लोग ख़ूब ताली बजाए। उस दिन से रानू का आत्मविश्वास बढ़ गया और मंच का बोलने का भय भी खत्म हो गया। अब वह हर कार्यक्रम में खुशी खुशी भाग लेती और बिना डरे प्रस्तुति देती।
इस तरह अपने गुरुजी के कारण वह बड़ी होकर प्रखर प्रवक्ता बनी।
