भूतों की हकीकत
भूतों की हकीकत
'भूत'। यह शब्द किसी किसी के रोम- रोम को थर्रा देती है तो कोई कोई इसे ध्यान तक नहीं देते। मैं तो भूत सुनते ही मेरा दिमाग खाली हो जाता है, दिल एक और बार अच्छे से उस शब्द को सुनने के लिए धड़कना बंद सी कर देता है, हाथों में रक्त का प्रवाह बंद सी हो जाती है पैरों में कड़ियां लग जाती है। उस भयानक स्थितियों से न जाने मैं कितनी बार गुजरी हूं जब हमारी स्कूल में कुछ दोस्त अक्सर भूतों की कहानियों की पूरी पुस्तकालय का मेला लगा देते थे। हम सब एक एक कहानी को बारीकी से सुनते थे और उसमें कई आलोचनाएं भी होती थी। मैं कहानियों को बड़ी चाव से सुनती और आलोचना में भी भाग लेती,पर मुझे क्या पता होता कि जैसी भूत की आकार के बारे में मैं सुनी हूं वही मेरे सपनों में आकर मेरी आधी रात और दूसरे की पूरी दिन खा जाएगा। कोई कोई कहते हैं कि भूत से डर छुड़वाना है तो भूतों की फिल्में देखो पर जनाब जब डर छुटी ही नहीं है तो भूतों की फिल्में देखकर मरमरा जाने का प्रस्ताव कैसे मंजूर होगी! वैसे भी भूतों की आबादी आजकल इंसानों से ज्यादा बढ़ती जा रही है।
पर क्या आपने कभी सोचा है कि, भूत होते कौन है? क्या आपने कभी उनके चारों और होने का महसूस किया है। हां, हमने भूतों को देखा हुआ है बस पहचान नहीं पाते।
'निर्भया' जैसे लड़कियोंं के साथ जबरदस्ती करने वाले वो पांच लोगोंं की याद की जाए तो मैं उन्हें भूतोंं का पद देने से जरा सा भी पीछे नहीं हटूंगी। उनको दूसरों की नहीं सही उनको अपने परिवार वालों की भी फिक्र नहीं हुई की वह ऐसा करने पर उनके परिवार को इस बहुरूपी समाज से न जाने कितने अपमान सहने होंगे। निर्भया, हाथरस की नाबालिका और उनके जैसे कई कन्याओं के साथ यह अन्याय होता हैं।कुछ वही पर जान गवा देतिं हैं तो कुछ समाज से लड़ते-लड़ते जीवन की सारी सुखों का बलिदान दे देते हैं। क्या इन लोगों को यह अपरिवर्तनीय अपराध करते समय एक बार भी अपनी पत्नी, अपनी बेटी, अपनी अम्मी या अपनी बहनों की याद नहीं आता ? क्या एक बार भी उनका आत्मविश्वास और अंतरात्मा डगमगाता नहीं? क्या सच में एक बार भी इनका दिल इन्हें धिक्कार के एक शब्द तक नहीं कहता!! क्या एक बार भी इन्हें यह महसूस नहीं होता कि वह लड़कियां भी उनकी बेटी या बहन जैसी है वह भी उसी धरती मां की संतान है। शायद नहीं क्योंकि उनमें एहसास करने की शक्ति होती तो ऐसा अपराध करने कि सोचने से पहले ही उनकी प्राण निकल जाते। मूर्ख या राक्षस का स्थान तो इन्हें दिया नहीं जा सकता क्योंकि, कंस जैसा मूर्ख जो लोभ में अंधे होते हैं उन्हें तो कुछ दिखता ही नहीं और रावण जैसा राक्षस तो सीता मैया को एक बार हाथ तक नहीं लगाया था।
वो सास ससुर जो बहु को बेटी नहीं नौकरानी मानते हैं, जो पोती को गौरव नहीं कलंकिनी मानते है,सिर्फ इसलिए की बहु ने मनचाही दहेज नहींं दिया और साथ-साथ घर में बेटी को जन्म दिया जो उनके अनुसार चाहे कितनी भी उन्नति कर ले पर कभी न कभी पराई घर तो जाएगी ही। उसी भ्रम में अंधे होकर वह अपनी बहू और पोतियों की कदर तक नहीं करते। कुछ तो उन्हें अग्नि परीक्षा देकर ही खत्म कर डालने की सोचते हैं पर उन्हें इस भ्रम के अंधेरे में यह नहीं दिखता कि वही सास भी कभी बहू थी और उनके साथ यह बर्ताव न हुआ था और वह ससुर भी एक मां के बेटे हैं और वह मां ना होती तो उनका अस्तित्व ही ना होता। भारत में हर घंटे बारह महिलाओं की मौत सिर्फ दहेज के कारण होती है।क्या आपको नहीं लगता कि यह भूत आजकल कुछ ज्यादा ही उपद्रव मचाने लगे हैं!
हमारी देश की सबसे सम्माननीय पद है सिविल सर्विस जिस में विख्यात अभय पाठक रह चुके हैं और उन्होंने अपने फॉरेस्ट्री सर्विस को ऐसी तरीके से निभाया कि खाली उनके लिए ही नहीं उनकी और तीन पुरुष तक के लिए धन का प्रबंध हो गया है जबकि हमें यह पता नहीं कि हम और आप अगले मिनट में जिंदा भी रहेंगे या नहीं।अभय पाठक और उनके बेटे आकाश पाठक के तरह कितने उच्च पद पर रह चुके व्यक्ति करोड़ों जनता से पैसे लेकर उनकी नौकरी के साथ-साथ उनके पैसे भी खाते हैं। इन्हीं को ही तो भूत कहते हैं जिनको खाने की भूख नहीं होती बल्कि नौकरी और पैसों की भूख होती है!
'परी' जैसी मासूम बच्चों का अपहरण कर उनके अंगों को बेचकर लाखों कमाने वालों को यह नहीं दिखता कि बच्चों में भगवान बसते हैं और जब वे बच्चे थे तो उनके साथ ऐसा बर्ताव नहीं हुआ। तो उनका भी कर्तव्य है कि इसी को वह भी स्वीकार करें। एक मां का अपने छोटे से बच्चे से बिछड़ने का दर्द उसको जन्म देने के कष्ट से भी अधिक दर्दनाक होता है।एक पिता का उसके औलाद से बिछड़ने की वह पीड़ा वह भले ही जाहिर न कर सके पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह अब सिर्फ एक जिंदा लाश है जो समाज की कुकर्मों में फस कर रह गया है। शायद ही भूत से कोई और भी निम्न स्थान ऐसे बच्चों का अपहरण करने वालों को दिया जा सके।
फिर आते हैं सबसे चतुर भूत,जो न जाने कहां से हिंदू-मुस्लिम,जैन,बुद्धिस्म और क्रिस्टियन जैसे धर्मों का आविष्कार से लेकर उन्हें भी ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र जैसे जातियों का नामों का निर्माण करके फिर खुद ही उन में उलझ गए और जब निकलने का रास्ता ना दिखा तो वही झगड़ते रहें और दूसरों को भी भटका दिए। हिंदू-मुस्लिम,जैन,बुद्धिस्म और क्रिस्टियन यह असल में धर्म नहीं एक-एक प्रकार की सोच है जो एक ही उद्देश्य रखते हैं,लोगों को सरलता से जीवन जीना सिखाना। कहां लिखा है कि राम रहीम के नहीं हो सकते और रहीम सिर्फ अल्लाह को ही पूजा कर सकते हैं।
जाति प्रथा के अनुसार मैं एक ब्राह्मण घर में जन्म लेने के कारण मैं भी एक ब्राह्मण हूं, ऐसा पूरी दुनिया कहती है पर मैं नहीं। मुझे कभी इस बात का गर्व नहीं हुआ कि मैं ब्राह्मण हूं ,सबसे ऊंची जात से जिसने इस युग में अपना रूप दानव स्वरूप बना दिया है। सारथी बाबा,आसाराम बापू और राधे मां जैसे कई माताओं और बाबाओं की वजह से सारी लोग आज इसी जाति प्रथा में उलझ कर रह गए हैं। असल में ब्राह्मण जाति भगवान तक के मंजिल का एक वाधा है। अगर आप भी एक बार गौर से सोचे तो क्या वह इंसान या वह जात जो अपने को भगवान का अवतार कहते हैं, खुद को उनका भक्त कहते हैं और भगवान का हर एक आदेश मानते हैं कभी भी भगवान की नीतियों के खिलाफ जाकर समाज में ऐसी असमानता का निर्माण करेंगे!!! गौर से सोचें। कोई माने या ना माने यह तो ऐसे भूत हैं जो लोगों को ही भूतिया बना देते हैं!!
यही सब ही तो भूत होते हैं जो हमारे चारों और होते हैं बस हम उन्हें पहचान नहीं पाते।...
- अपर्णा