भूतनी

भूतनी

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अक्सर कुछ अजीब सा महसूस होने लगता है तो दिल भी जाने कैसे-कैसे सवाल करने लगता है - जिन्दगी इतनी उबड़-खाबड़ क्यों होती है ? सीधी सरल क्यों नहीं होती ? क्यों इतना मुश्किल फंडा है जिन्दगी का, ? वगैरह वगैरह, ऐसे ही इन सवालों में उलझी मैं खिड़की के पास पड़ी चेयर पर बैठ गई और बाहर की तरफ देखने लगी । बारिश भी बड़े मूड में बरस रही थी लेकिन मन बड़ा उदास था एक तरह से मानो उचट ही गया था ,, करूं भी तो क्या करूं, कुछ समझ में भी नहीं आ रहा था ! बस फिर यूं ही कमरे में इधर-उधर नजर दौड़ाई बिना किसी मक़सद के, सामने बिस्तर पर पड़ी किताब - ' जीवात्मा जगत के नियम ' पर नज़र पड़ी तो मैं एकदम सोच में पड़ गई क्या इस किताब में है मेरे सवालों के जवाब ? फिर सोचा जीवात्माओं का जिन्दगी से क्या संबंध ? इनका तो जिन्दगी से नाता ही टूट चुका है, फिर भला कैसे ? कुछ देर यूं ही ऊहापोह भरी परेशानी के आलम में डूबी रही और फिर जैसे भीतर ही भीतर कोई कहने लगा- क्यों नहीं अगर जीवात्माएं नहीं होगी तो भला हम भी कहां होंगे ! तुम्हारे भीतर आत्मा है तभी तो तुम हो ! इतने में डोरबॅल बजी, दरवाजा खोला सामने समीर खड़ा था मैं उसको देखती हुई दरवाजे के बीचों-बीच खड़ी थी उसे न भीतर आने को कहा और ना ही कुछ पूछा बल्कि आश्चर्य से देखती रही, फिर समीर ही बोला -अरे अंदर तो आने दे क्या पहचाना नहीं मुझे तुमने ?

हां-हा, आओ आओ बैठो पर कहां थे तुम, वो भी इतने सालों बाद आज इस तरह ? दस साल तक बिना बताए गायब कहां रहे और क्यों रहे ?

सब अभी एक साथ पूछ लोगी ? अरे भाई भूखा हूं, पहले खाना खिलाओ फिर वो तुम्हारी चस्का चाय पिलाओ फिर सोचूंगा समझी मॅडम 

फिर सोचूंगा का क्या मतलब ? खाना तैयार है और सब तुम्हारी पसंद का है !

मेरी पसंद का ? वो किस खुशी में ? मैंने तो तुम्हें बताया नहीं था कि मैं आने वाला हूं ! लगता है मेरी याद कुछ ज्यादा ही आतीं हैं, है ना ? 

 हां हां क्यों नहीं, मुझे तो जैसे कोई काम ही नहीं है तुम्हें याद करने के अलावा ! बात करते-करते खाना परोसकर थाली सामने रखी तो वो उदास हो गया, चुपचाप कभी थाली को कभी मुझे देख रहा था, ऐसे में दस मिनट गुजार दिये तो मैंने कहा - क्या बात है तुम्हें तो जोरों की भूख लगी थी और अब सामने रखी बेचारी थाली तरस रही है, तुम छू भी नही रहे हो, समथिंग इज रोंग विद यू ?

 यस बट, ,,, तुम्हें क्या पड़ी है ? 

 क्यों, ऐसा क्यों कह रहे हो ?

 यह तो तुम्हें मुझसे बेहतर पता है ! तुम खुद सोचो,

 ओहो तुम भी ना, कोई कारण नहीं फिर भी, अरे यार, अब मैं किसी की पत्नी हूं और  

 और क्या, ? यह तो मुझे भी पता है कुछ नया बताओ ।

 समीर प्लीज, , तुम सब अच्छी तरह से जानते हो - तुमने किस तरह, किन हालात में मंझधार में छोड़ दिया था मुझे, अब तुम मेरे लिए केवल मेरे क्लासमेट हो जिससे मेरा कोई खास वास्ता नहीं था कहते-कहते रो पड़ी, आगे कुछ बोल ही नहीं पाई । थोड़ी देर तक वातावरण में सिसकियां गूंजती रही, फिर समीर ही बोला - तो ये सब क्यों ? नहीं पल्लवी नहीं, ऐसा नहीं है हम दोनों के बीच अभी भी 'कुछ ' है वरना न मैं दस साल बाद लौट कर आता और ना ही तुम इस तरह कलपती ! मैं यहां से गया तो जरूर था लेकिन तुमसे दूर कभी नहीं रह पाया, तुम हर पल मेरे साथ रही, आज भी हो, तुम्हारे सिवा न कोई था, न है, न ही होगा !

 फिर क्या कारण था मैं तो पापा के विरोध के बाद भी तुमसे ही शादी करने को तैयार थी फिर भी तुम, ओह, ! तब पापा ने कहा था - देखा, मैं क्यों नहीं चाहता था तुम इससे शादी करो अरे यह तो भरोसे के लायक था ही नहीं, अच्छा हुआ पहले ही भाग गया, तुम्हारी लाइफ बर्बाद होने से बच गई वरना, ,, 

ओह अंकल ने इतना बड़ा झूठ बोला जबकि उन्होंने ही अपनी जिन्दगी का वास्ता देकर तुमसे दूर जाने को कहा था कि अपने दोस्त को ज़बान दी थी जब तुम बहुत छोटी थी इसलिए अपनी कसम दी थी कि मैं उनको वादाखिलाफी से बचालूं वरना आत्महत्या के सिवा और कोई चारा नहीं और उनकी बात मानने का वादा करके हमेशा के लिए तुमसे दूर चला गया, नहीं चाहता था हमारे प्यार की जिन्दगी की इमारत उनकी मौत पर खड़ी हो लेकिन अंकल ओह, ,,, इतना बड़ा छल हमें अलग करने के लिए !

क्या, यह तुम कह रहे हो ? तुम्हें झूठ बोलते हुए ज़रा भी शर्म नहीं आती ? 

आती है तभी तो उनका मान रखते हुए अपनी जिन्दगी से दूर चला गया था !

तो तुमने मुझे क्यों नहीं बताया ?

यह भी अंकल की हिदायत थी कि तुम्हें कुछ न बताऊं वरना बहुत मुश्किल हो जाएगा !

ओह, पापा ने मुझसे धोखा किया अपनी बात मनवाने के लिए वही अपनी जिन्दगी का वास्ता देकर अजय से शादी करवा दी वह सांसद का बेटा है कोई उनके दोस्त का बेटा नहीं ! इसलिए अपने फायदे के लिए मुझे बलि का बकरा बनाया ! पापा को चुनाव लड़ने के लिए टिकिट चाहिए था सो उनको मिल गया आज सब समझ में आ रहा है ये सब, ओह, पापा आपने अच्छा नहीं किया !

 ओके, जो गुज़र गया सो गुज़र गया तुम्हारी मेरिड लाइफ कैसी है ?

 वो ठीक चल रही है, अजय बहुत अच्छे हैं राजनैतिक परिवार से होकर भी राजनीति से कोसों दूर है और इसीलिए तुम्हारे बिना रह पाई लेकिन तुम्हें भूल नहीं पाई ! अजय की अच्छाई और तुम्हारा प्यार मेरे जीवन की थाथी है ! मेरे बारे में तो तुमने सब जान लिया, अपने बारे में बताओ !

 मेरे बारे में क्या बताऊं जहां से चला था वहीं पर खड़ा हूं, तुमसे कभी अलग हो ही नहीं पाया हर सांस तुम रही, रहती हो किसी और के लिए जगह ही नहीं बची, ,,, भला किसी और से कैसे जुड़ता ! 

फिर इतने लंबे अरसे तक कहां और कैसे रहें ? 

बहुत लंबी कहानी है  लेकिन तुम यह क्यों जानना चाहती हो ? तुम्हारे तो किसी काम का नहीं ये सब और ना ही मतलब का !

 ऐसा क्यों कहते हो ? मैं भी तो तुम्हारी यादों में तड़पी हूं तुम्हें क्या और कैसे बताऊं कि मेरे साथ क्या-क्या गुजरा है ! तुम्हारे आने से पहले इन्हीं सवालों में उलझी हुई थी , जाने क्या है जो मुझे कुरेदता रहता है हरदम ! मैं अजय के साथ भी न्याय नहीं कर पाती हूं, मैंने हमारे बारे में अजय को भी बता दिया अभी दो दिन पहले तबसे वे चुप हैं, कुछ भी नहीं कहा, न गुस्सा किया ! मैंने पूछा तो भरी भरी आंखों से एकटक मुझे देखते रहे ।

 तुम्हें बताना नहीं चाहिए था, कोई भी मर्द बर्ताश्त नहीं कर पाएगा, तुमने बहुत ही गलत किया !

 अरे, मैं झूठ के बोझ तले दब रही थी यार, सो उनकी अच्छाई देखते हुए बता दिया फिर मुझे यह भी लगा कि इतना सीधा सरल इंसान, नहीं, उनके साथ ऐसा नहीं होना चाहिए, बस बता दिया ! पर अब तुम क्यों आये हो ?

 आखिरी बार तुमसे मिलने !

आखिरी बार, मतलब ?

हमेशा के लिए मैं जर्मनी जा रहा हूं।

यार तेरे बिना जीने की बहुत कोशिश की लेकिन मैं हार गया !

 जर्मनी में क्या बदल जाएगा इससे अच्छा है तुम शादी कर लो।

 उसे क्या दूंगा ? इतने में डोरबेल बजी, समीर ने कहा- तुम बैठो मैं खोलता हूं सामने एक अनजान और खूबसूरत लड़की खड़ी थी , दोनों की आंखों में ऐसा क्या था जो एक-दूसरे में खो गए पांच मिनट तक लगभग वही स्थिति रही तो मैंने आवाज दी- अरे क्या हुआ भूत देख लिया ?

भूतनी, जाने कौन सी रो में समीर बोल गया ! सुनकर मेरे और रूपा के मुंह से एक साथ निकला - क्या, ! रूपा की आवाज सुनकर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ ! दरवाजे पर आकर मैंने रूपा को अंदर आने को कहा - अरे आ ना आज तो सरप्राइज पे सरप्राइज मिल रहे हैं, अरे आ अंदर तो आ कहते हुए मैंने देखा - समीर अभी तक वहीं दरवाजे के बीचों-बीच खड़ा था और रूपा की तरफ एकटक देखे जा रहा था मैंने दो बार आराम से पुकारा लेकिन कोई असर ही नहीं तो तीसरी बार जोर से कहा सुनकर एकदम हड़बड़ा गया हां और जब भान हुआ तो हट गया ! मैं और रूपा सोफे पर बैठ गई, समीर सामने वाली कुर्सी पर ।

 हां, तो बता इतने सालों बाद इतनी बार फोन किया पर तुमने कभी उठाया भी नहीं, क्यों ?

 क्यो का क्या जवाब दूं ?

 क्यों जवाब नहीं दे सकती तुम भी दस साल बाद मिली हो फिर भी ?

 तुम भी से क्या मतलब ? मेरे आने की, मिलने की खुशी नहीं है ? खुद ने भी तो कभी खोज खबर नहीं ली और  

अरे मेरी मां लेती कहां से, तुमने अपना पता ठिकाना दिया था कभी जो तुम्हारी खबर लेती ! फोन भी कितनी बार ट्राई किया तो किसी और की आवाज सुनाई देती थी पर तेरे पास तो मेरा फोन और पता था ना, तू ही संपर्क कर लेती ! जो मेरे दिल के करीब थे वहीं दूर रहे बिना बताए अबतक और अब,  

कितने थे तुम्हारे दिल के करीब ? जीजाजी तो तुम्हारे पास ही है, आप ही बताइए जीजाजी !

 ये अजय नहीं समीर है यह भी तुम्हारी तरह मुझसे दूर रहा, बस, तुम्हारी ही तरह गायब रहा !

ओओओ सौरी वो समीर तुम्हारा हीरो ?

हां, सरप्राइज के चक्कर में में परिचय कराना भी भूल गई अब तक तो जान ही गए होओगे एक-दूसरे को फिर भी, समीर, ये रूपा और रूपा, ये समीर, तुम दोनो ने मुझे बहुत तकलीफ़ दी है ! खैर छोड़, बता शादी की ?

तुम्हें याद है रजत ?

 हां हां याद है जो तुम पर मरता था मगर तुम घास तक नहीं डालती थी क्यों क्या हुआ उसका ? 

वो इतना पीछे पड़ा हुआ था कि पूछो ही मत, हर तरह से दिल जीतने की कोशिश की, मैं भी पता नहीं कब उससे प्यार करने लगी उसका उद्देश्य था मुझे तोड़कर शर्त जीतना, सो जीत गया यार, वो तो शादीशुदा था , उसने मुझसे शादी भी की, शादी के बाद पता लगा, यह उसने खुद ही बताया था, , फिर भी मुझे मज़ाक लगा था लेकिन एक दिन सच में उसकी बीवी से मुलाकात हो गई, सोचो - मुझपर क्या गुजरी होगी ! बस तबसे मैंने उसे छोड़ दिया ! आज आखिरी बार तुमसे मिलने आई थी !

 क्यों, तू भी आखिरी बार क्यों ?

 मम्मी पापा भी नहीं रहे, कार एक्सीडेंट में एक साल पहले हमेशा के लिए मुझे अकेला कर गए, मेरा तो कोई भाई बहन भी नहीं, तुझे तो मालूम ही है, कंपनी मुझे जर्मनी भेज रही है हमेशा के लिए मैं जा रही हूं मेरी रिक्वेस्ट पर कंपनी मुझे भेजने को तैयार हो गई वैसे किसी और को भेज रही थी ।

 वाह, क्या कोइंसीडेंस है समीरा भी हमेशा के लिए जर्मनी जा रहा है ! देखो, तुम दोनों मेरे दिल में रहते हो मैं तुम दोनों को खुद से भी अधिक जानती हूं, हां, तुम दोनों एक-दूसरे को नहीं जानते पर मुझपर भरोसा करो, तुम दोनों एक-दूसरे के लाइफ़ पार्टनर बहुत अच्छे बनोगे कारण एक-दूसरे के दर्द को बखूबी समझ सकते हो माना कि प्यार न कर पाएं लेकिन दोस्त बहुत अच्छे बनोगे, ,, ,,, ऐसा मैं सोचती हूं, मेरी खातिर तुम दोनों शादी कर लो ! जबतक यहां हो मेरे साथ रहो अजय आ जाते हैं तो तुम लोगों का सामान हम सब जाकर ले आएंगे ! तभी डोरबॅल बजी अजय होंगे कहते-कहते मैंने दरवाजा खोला, अजय ही थे ! दुआ सलाम हुई और उन्होंनने कहा - मैं गलती नहीं कर रहा हूं तो आप समीर और, और आप रूपा !

 बिल्कुल सही पर आपने पहचान कैसे ?

 जी जनाब, अपनी श्रीमतीजी की बदौलत, काॅलेज के ग्रुप फोटो में आप दोनों हैैं और तो और कई बार आप दोनों के बारे में ज्ञ बात करती रही है !

 अच्छा-अच्छा समीर ने कहा और फिर बोला - यार चाय तो पिला पहले, बाद में सब करती रहना, बातें करते-करते मैंने चाय नाश्ता तैयार किया और चाय नाश्ते के दौरान इन दोनों के बारे में अजय को सब बता दिया अजय भी मुझसे सहमत थे सो उन्होंने भी कहा कि पल्लवी ठीक कह रही है इसके प्रपोजल पर विचार कीजिएगा जल्दबाजी नहीं है आखिर जिन्दगी का सवाल है पर मेरी एक गुजारिश है आप दोनों से सबकी निगाहें अजय क चेहरे पर टिक गई आप जर्मनी बेशक जाइए मगर हमेशा के लिए नहीं ! आज मुझे भी वो दोस्त मिले हैं जो मेरी पल्लवी के जिगरी दोस्त हैं, मैं कभी नहीं चाहूंगा कि हमेशा के लिए मुझसे दूर हो जाए । एक इच्छा है गर आप दोनों माने !

 जो, बिल्कुल, कहिए ।

 जर्मनी जाने से पहले आप दोनों एक सूत्र में बंध जाएंगे मुझे अच्छा लगेगा इसलिए कि मेरी पल्लवी ऐसा दिल से चाहती है ! अजय की बात उनको अपने दिल की बात लगी, दोनों को कहीं दिल में कुछ तो महसूस हुआ था फिर दोनों की नज़रें मिली कुछ देर यूं ही देखने लगे कि अचानक बिना किसी भूमिका के समीर ने कहा - भूतनी, मुझसे शादी करोगी ?

अजय - पल्लवी ठठाकर हंस पड़े और रूपा झेंप गई !


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