भूली बिसरी यादें, संस्मरण-3
भूली बिसरी यादें, संस्मरण-3
पिताजी लड़कियों की शिक्षा को लेकर बहुत उत्साहित रहते थे शिक्षा दिमाग की खिड़कियां खोलती है, शिक्षा से समाज में आपका रुतबा बनती है, शिक्षा आपको आजीविका देती है, लड़कियां दो-दो घरों का गहना है, लड़की पढ़ जाती है तो सारा समाज में बदलाव आता है। जब लड़की पढ़ जाती है, उसमें आत्मविश्वास आ जाता है अपनी रक्षा स्वयं कर सकती है। लड़की आत्म निर्भर व स्वावलंबी बन जाती है।
उनकी आयु सत्तर वर्ष की रही होगी। जब भी मैं उनसे मिलने जाती तो उन्होंने कहना, मेरे जाने के उपरांत तुम्हें एक ट्रस्ट
बनाना है जो गरीब लड़कियों की शिक्षा के लिए काम करेगा।
मैंने उनके कहे अनुसार उनकी मृत्यु के उपरांत एक ट्रस्ट की स्थापना की। यह रजिस्टर्ड संस्था है और लड़कियों को मैरिट कम पावर्टी के आधार पर स्कॉलरशिप देती है।लड़कियों को क्लास में फर्स्ट तथा सैकिंड पोजीशन लेने वालों को प्राइज़िज़ भी देती है। यह संस्था नालागढ़ तथा समीपवर्ती इलाके के स्कूलों में प्रतियोगिता करवाती है। गरीब और ज़रुरतमन्द लड़कियों की शादी के समय भी मदद करती है। लड़कियों को और किसी और किस्म की भी मदद चाहिए कोई सलाह मशवरा चाहिए तो यह संस्था सहर्ष करती है।
यद्धपि वे स्वयं बहुत पढ़े लिखे नहीं थे पर वे अपने लक्ष्य में बिल्कुल स्पष्ट थे कि उन्हें लड़कियों के लिए कुछ करना है।
नमन करती हूँ ऐसे पिता को।