भोजन का कोई मजहब नहीं होता

भोजन का कोई मजहब नहीं होता

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साक्षी ने ऑफिस से आकर जल्दी से अपना बैग रखा और फ्रिज में सब्ज़ियाँ देखने लगी। फ्रिज में एक भी सब्ज़ी नहीं थी। सुबह उसने सोचा था, ऑफ़िस से आते समय सब्ज़ी लेते हुए आ जायेगी पर अचानक से आयी तेज़ बारिश की वजह से साक्षी किसी तरह बचती-बचती घर आयी, ऐसे में सब्ज़ी की कैसे याद रहती, पर रचित आने वाला था और उसे आते ही कुछ खाने को चाहिए।

साक्षी ने जल्दी से मोबाइल उठाया और ऑनलाइन दो पिज़्ज़ा बुक करवा दिए। साक्षी ने एक पैन में चाय बनानी रख दी, इतने में रचित आ गया। साक्षी ने उससे फ्रेश होने के लिए कहा। साक्षी और रचित अभी चाय पी कर हटे ही थे, इतने में साक्षी के फोन पर डिलीवरी बॉय असलम का मैसेज आ गया की वह दो मिनट में ऊपर आ रहा है। साक्षी ने रचित से कहा की "मैं प्लेट्स लाती हूँ, तुम असलम नाम का डिलीवरी बॉय आएगा...उसे पेमेंट कर देना और पिज़्ज़ा ले लेना।" रचित ने साक्षी के फोन से डिलीवरी करने वाले फ़ूड जॉइंट के नंबर पर कॉल कर के पिज़्ज़ा लेने से मना कर दिया की "हम किसी मुस्लिम के हाथ से पिज़्ज़ा नहीं लेंगे।" इतने में डोर बैल बजी, रचित ने दरवाज़ा खोला और असलम को पिज़्ज़ा वापिस ले जाने को कहा। तब तक असलम के पास भी उसके फ़ूड जॉइंट से कॉल आ गया। वह बिना कुछ कहे पिज़्ज़ा वापिस ले गया।


साक्षी को बहुत गुस्सा आया उसने रचित से कहा "इतने पढ़े- लिखे होने के बावजूद तुम्हारी सोच कितनी छोटी है।" साक्षी को पता था अभी रचित कुछ समझने के लिए तैयार नहीं होगा, इसलिए वो रचित से यह कह कर की "मुझे कुछ नहीं खाना, तुम्हें खाना है तो फ्रिज में ब्रेड बटर है खा लो। मैं  सोने जा रही हूँ।" अगले दिन साक्षी अपने फॅमिली डॉक्टर से मिल कर कुछ बात कर के घर आयी। एक दिन ऑफ़िस से आते ही साक्षी बेहोश हो गयी, रचित जल्दी से उसे डॉक्टर के पास उठा कर लेकर गया। डॉक्टर ने कहा बी.पी. लो होने की वजह से और खून की कमी की वजह से इन्हें चक्कर आ गए इन्हें जल्दी से दो बोतल खून की चढ़ानी पड़ेगी। साक्षी जब तक होश में आ चुकी थी। उसने डॉक्टर से खून चढ़वाने से साफ़ मना कर दिया, यह कहते हुए की "पता नहीं किस का खून होगा, अगर किसी दूसरे धर्म के इंसान का खून हुआ तो मेरा तो धर्म भ्रष्ट हो जायेगा।" रचित ने उसे डांटते हुए कहा "यह कैसी बात कर रही हो, मेरा खून तुमसे मैच नहीं करता। हमारे अपने सभी दूसरे शहरों में रहते हैं। खून चढ़वाने में भी यह क्या हिन्दू-मुस्लिम लगा रखा है, तुमने। खून की बॉटल पर किसी का नाम थोड़ी लिखा होता है।"


साक्षी ने ताली बजाते हुए कहा..."वाह रचित, उस दिन तो तुमने उस पिज़्ज़ा बॉय के हाथ से पिज़्ज़ा तक लेने से मना  कर दिया क्योंकि को मुसलमान था।आज तुम मुझे किसी का भी खून चढ़वा दोगे। अरे जब बनाने वाले ने हम सबको बनाने में कोई भेद-भाव नहीं किया, तो तुम अपने मन में क्या बैर पाल कर बैठ गए। तुम्हें पता है क्या, हमारी बिल्डिंग मुसलमान मज़दूरों के हाथों बनी है या हिन्दू या किसी और धर्म के मज़दूर के हाथ। तुम होटल में खाना खाने जाते हो तो तुम क्या उनकी रसोई में जा कर देखते हो की यह खाना किसने बनाया है। जो सब्ज़ी हमारे घर में आती है, उसका पता होता है...क्या तुम्हें की वो हिन्दू के खेत से आयी है या मुस्लिम के खेत से ? डॉक्टर साहब के हॉस्पिटल में भी ज़्यादातर नर्स अलग-अलग धर्मों की हैं। तुम तो पहले ढूँढना की उनमें से हिन्दू कौन है। अगर कोई हिन्दू नर्स नहीं मिली तो, हम क्या करेंगे? अरे ! यह सब हमारे मन के वहम हैं....ना ही किसी भी धर्म के सारे लोग अच्छे हैं और ना ही सभी बुरे। यह तो चंद लोग देश में अशांति फैलाने के लिए धर्म का नाम खराब करते हैं। विश्व में वैसे ही इतनी अशांति फैली हुई है, कम से कम अपने देश में फालतू की बातों से अशांति मत फैलाओ...."

तभी डॉक्टर उन दोनों के पास आये और रचित से बोले "साक्षी बिलकुल ठीक है, वो सिर्फ तुम्हें समझाना चाहती थी की सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए, इसलिए कल वो मेरे पास आयी थी और मुझे यह सब करने को कह गयी थी। अब रचित को भी बात समझ आ चुकी थी। उसने उन दोनों से अपनी ग़लती के लिए माफ़ी मांगी



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