Kapil Sharma

Abstract Children Stories Drama

4  

Kapil Sharma

Abstract Children Stories Drama

भावुक मानवता

भावुक मानवता

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'एक समय था जो हमने या तो किताबों में पड़ा या फिर बुजुर्गों ने अपने अनुभव से बताया , समय था उस दौर का जब इंसान निस्वार्थ हुआ करता था उसके लिए उसके सिध्दांत एवं आदर्श ही सर्वोपरि हुआ करते थे। एक बचन के लिए अपना सर्वस्य न्योछावर कर दिया करते थे , अनेकों ऐसे उदाहरण हमने सुने और उनको अपने दैनिक जीवन मे ग्रहण किये या फिर एक कहानी मात्र समझकर उसी जगह छोड़ दिये । ठीक हम सबकी ही तरह रोहित नाम का लड़का भी अपने मित्रों के साथ बचपन में इन किस्से कहानीयों को अपने गाँव में बनी चौपाल पर बैठकर बुजुर्गों से सुना करता था ; और वह उन बातों को याद भी रखता था परंतु उसके मित्र उस चौपाल को ही टाइम पास कहा करते थे , रोहित में एक कमी तो थी कि वह भावुक बहुत जल्द हो जाया करता । यह उसके साथ हो रहे लाड प्यार का भी परिणाम हो सकता था , क्योंकि वह अपने परिवार के पाँच भाईयों मे सबसे छोटा जो था। तो सारा काम भी वह अपनी माँ से ही कराता था जैसे कपड़े धोना , या स्कूल में दिया गया गृह कार्य ही क्यों न हो उसकी माँ जो की स्वयं स्नातक थीं रोहित को अपना काम स्वयं करने के लिए प्रेरित करतीं रहतीं थीं। परंतु ममता में दवाव नही होता न।

तो सोचा की समय के साथ सीख जायेगा , अब रोहित चौथी पास कर पांचवी कक्षा में प्रवेश कर चुका था , उस एक दिन की बात है रोहित रोज की तरह अपने विद्यालय जा रहा था उसकी नजर उस बालक पर गई जो गली - गली जाकर गुब्बारे बेचता था और आज वही बालक कपड़े धो रहा था गाँव के हैंड पंप पर साथ में उसकी माँ भी अपने घर पानी का घडा सिर पर रखे जा रही थी और उस गुब्बारे बेचने बाले बालक से कह रही थी कि अपने कपड़े धोकर सीधे घर आना , अब रोहित निकल चुका था अपने स्कूल की तरफ आज वह उत्सुक था क्योंकि उसके कानों एक नया शब्द आया था किसी अपरिचित द्वारा वह शब्द था मानवता तो स्कूल जाकर सबसे पहले उसका अपने गुरुजी से प्रश्न था की यह मानवता क्या होती है? तब गुरुजी ने उसको मानवता का अर्थ बताया और एक नया अध्याय स्वावलंबन भी पड़ाया ! फिर क्या था रोहित सब कुछ समझ चुका था कि उसकी माँ उसको क्यों कहती थीं की अपना काम स्वयं करना सीखो तभी तुम दूसरों की सेवा करने लायक बनोगे , और मानव धर्म को तभी सफलता पूर्वक निभा सकोगे फिर क्या था रोहित अगले दिन से ही अपने कार्य स्वयं करने लगा लेकिन मानवता तो अभी भी उसके जीवन के अनुभव में शामिल होने के लिए अपनी राह देख रही थी रोहित की माँ आज बहुत खुश थीं , रोहित ने माँ से पूछा माँ मानवता क्या होती है माँ ने कहा बेटा मानव को जो मानव बनाये वही मानवता है बरना मानव और अन्य जीव जंतु में कोई फर्क नही रह जाता , किसी के दुख मे उसकी मदद करना उसके दर्द को अपना समझ कर उसका साथ देना ही मानवता है। लेकिन याद रखना मानवता में दिखाबा नही होता जहाँ मानवता हो वहाँ अपना कैमरा बंद ही रखना उचित है। रोहित सब कुछ समझ चुका था अब उसको उस गुब्बारे बेचने बाले लड़के की याद आई क्योंकि उसको रोहित ने एक ही दिन अपने स्कूल में देखा था लेकिन उसके बाद नहीं। रोहित अब उस बालक से मिलने जा पहुंचा! उसी हैंड पंप बाली गली में जहाँ उस बालक का घर था रोहित ने उसके स्कूल न जाने और गुब्बारे बेचने का कारण पूछा तो पाया की बालक घर में सबसे बड़ा था उसकी माँ के बाद और उस एक दिन ही मास्टर जी का यूनिफॉर्म और किताब एवं फीस के साथ आने का फरमान उसको गुब्बारे विक्रेता बना गया। कहते है मजबूरी कुछ न कुछ तो बना ही देती है कोई बिखर जाता है तो कोई निखर जाता है। लेकिन रोहित अब समझदार हो चुका था वह जानता था की उसकी एक भावुकता जो उसकी मजबूरी हुआ करती थी गाँव की चौपाल पर , इस बालक के सपनो को कमजोर भी कर सकती है तो रोहित ने बिना भावुक हुए ही अपनी जमा पूंजी का कुछ हिस्सा अपने साइकिल लेने के सपने का विध्वंस करते हुए उस बालक के सपने के लिए देना चाहा परंतु बालक स्वाभिमानी था उसने उस मदद को लेने से इंकार कर दिया लेकिन रोहित की मानवता को मन ही मन दुआ देते हुए । 



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