ये मेरी रचना नही है न जाने किसने पोस्ट की ?
ये मेरी रचना नही है न जाने किसने पोस्ट की ?




राखी हर साल अपने साथ फिर से वो बचपन की यादें सँजोने का मौका देती है कि आओ जीलो वही जिंदगी फिर से, जिम्मेदारियां तो मरते दम तक पीछा नही छोड़ने वाली, पर हाँ ये दिन निकल गया तो साल भर का इंतजार कराएगा।राखी का नाम सुनते ही बस बचपन की यादें फिर से घरौंदा बनाने लगती है। पर पहले की बात कुछ और थी जब राखी के आने से कई दिनों पहले घर में त्यौहार जैसा महसूस होने लग जाता था, भाई बहन अपनी अपनी तैयारियों में व्यस्त हो जाते थे, यहाँ तक कि सबसे सुंदर राखी बनाने या खरीदने की होड़ लग जाती थी, और दुनियां भर के रिश्तों में भाई बहन के रिश्तों को सहेज ही लेते थे, और ऐसा नहीं है कि चचेरे ,ममेरे भाई बहनों के प्यार में कोई अंतर नजर आता हो।
राखी हर साल अपने साथ फिर से वो बचपन की यादें सँजोने का मौका देती है कि आओ जीलो वही जिंदगी फिर से, जिम्मेदारियां तो मरते दम तक पीछा नही छोड़ने वाली, पर हाँ ये दिन निकल गया तो साल भर का इंतजार कराएगा। फिर से वही नोकझोंक वही मिठाईयों की लड़ाई, वही गुल्लक में पैसे जमा करना और इंतजार किसी खास मौके का
।
और फिर तोहफों का सिलसिला पूरा होता था, मम्मी पापा जो बहन के नेग के लिए रुपये देते थे उसमें मिला कर उसकी पसंद का कोई तोहफ़ा खरीदने की शुरुआत हो जाती थी, नेग न्यौछावर और भाई बहनों की नोकझोंक सब में अपना अलग ही मजा था।
अब सब कुछ वैसा नहीं है ऐसा नही है कि भाई बहन के प्यार में अंतर आया है, त्यौहार भी वही है पर उल्लास कही खो गया है, वो शैतानियां कही जिम्मेदारियो में सिमट गई है, के बार दूरी की मजबूरी होती है तो कई बार एकल परिवार में रंग अपना जलवा नही बिखेर पाते।
फिर ये सावन लेकर आया है रंग बिरंगी राखियों का मेला, आइये मिलकर इस त्यौहार की खुशियों को सँजोले फिर से जीले वो दिन।