सब्ज़ीवाली

सब्ज़ीवाली

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"सब्ज़ी ले लो सब्ज़ी, हरी-हरी ताज़ी सब्ज़ी" बाज़ार के एक कोने से यह स्वर आ रहा था। भीड़-भाड़ भरे इस बाज़ार में बड़ी-छोटी दुकानों के साथ-साथ कुछ लोग अपनी फल-सब्ज़ी वह अन्य वस्तुओं की टोकरी लगाकर बैठे हैं। इन्हीं लोगों के बीच शांति भी अपनी सब्ज़ी की टोकरी लगाकर आने-जाने वालों का ध्यान अपनी सब्ज़ी की ओर आकर्षित कर रही है।

शांति : सब्ज़ी ले लो, हरी-हरी ताज़ी सब्ज़ी ले लो, बाबूजी देखो ताज़ी सब्ज़ी है, खेतों से सीधे यहीं ला रही हूं ( उस व्यक्ति के आगे बढ़ने पर पुनः वही वाक्य दोहराती जाती है, तभी एक शराबी रुकता है और उससे पूछता है : ऐ... मू.....मूली कैसी दी (अपने अनियंत्रित शरीर को संभालते हुए)

शांति : बाबूजी दस रूपये की दो गड़बड़ी।

शराबी : और पालक ?

शांति : बारह रुपए की दो गड्डी।

शरीर (शांति के थोड़ा नज़दीक आकर, सांसों से मदिरा की गंध छोड़ते हुए) आठ रुपए की दो... दो-दो ... गड्डिया देगी (हिचकी लेते हुए)

शांति न कहते हुए उससे छुटकारा पाने की आस में नज़रें झुका लेती है और शराबी लड़खड़ाता हुआ चला जाता है।

बेचारी शांति, न जाने कैसे-कैसे लोगों का प्रतिदिन सामना करती है। बेचारी, करें भी तो क्या करें ? अभी उसके घर पर बैठे-बैठे खाने की आयु थी, परन्तु संपूर्ण परिवार का दायित्व अब उसके कांधों पर आ गया था, यद्यपि वह 30 वर्ष के आस-पास की होगी परन्तु दुर्भाग्य ने उसके चेहरे पर झुर्रियां, दुबली-पतली काया , बालों में हल्की सफेदी में पिरोकर उसको अपनी उम्र से कहीं आगे पहुंचा दिया।

अभी कुछ ही दिन पहले की तो बात है जब वह अपने पति-बच्चों और सास-ससुर के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रही थी। उसके दो बच्चे हैं। बड़ा लड़का लगभग 10 वर्ष और छोटी लड़की लगभग 7-8 वर्ष की होगी। पति का अच्छा धंधा-पानी चल रहा था। बहुत सुखमय थे वे दिन, किन्तु एक दिन शांति का पति ( न जाने क्यों, कभी न शराब पीने वाला, पीकर आ गया )

रामू : अरे.... शांति... पानी लाओ।

शांति ( आश्चर्य से उसे देखती है, पानी लाकर उसके समक्ष रख देती है और रसोई में चली जाती है। उसके लिए खाना परोसकर लाती है तो देखती है कि रामू सो गया है। वह उसे अच्छे से बिस्तर पर लिटाकर चली जाती है, तभी उसकी सास उसे पुकारती है

लक्ष्मी : बहू ! रामू आया कि नही ?

शांति : आ गये हैं मांजी, ज़रा थके थके इसलिए सो गये हैं।

लक्ष्मी : अच्छा- अच्छा बेटा तू भी खाकर सो जाना।

शांति : जी मां जी। (परन्तु शांति बेचारी को कहां भूख, कहां प्यास, कहां नींद, आज पहली बार उसका पति शराब पीकर आया, फिर उसने सोच कि किसी दोस्त ने पीने के लिए विवश कर दिया होगा, यही सोच-सोचकर न जाने कब उसकी आंख लग गई।

फिर तो यह रोज़ की बात होने लगी, पहले तो रामू पीकर आता और सो जाता, अब अपने मां-बाप से झगड़ा भी करने लगा, पत्नी को भला-बुरा कहता और बच्चों को मारने भी लगा, उसका धंधा भी ठप हो गया, घर में खाने के लाले पड़ने लगे। विवश होकर शांति को सब्ज़ी बेचकर अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

'ऐ सब्ज़ीवाली ! दो गड्डी पालक देना' शांति के कानो में किसी का स्वर सुनाई पड़ा, वह चौंककर उसे मूली देने लगी।

ग्राहक : अरे बहरी है क्या, पालक मांगी और मूली दे रही है।

शांति : क्षमा कीजिए बाबूजी, मेरा ध्यान कहीं और था।

ग्राहक : ऐसे ही कहीं और ध्यान लगाए बैठी रही तो सब्ज़ी ख़ाक़ बेचेगी।

और वह पैसे देकर चला गया।

दिन ढल चुका था, चारों ओर अंधियारा छाने लगा था। सभी दुकानदार अपना सामान समेटने लगे थे। शांति भी अपनी डलिया में बची हुई सब्ज़ियां व्यवस्थित करने लगी, तभी किसी का स्वर सुनाई दिया : मांजी आपके पास कितनी सब्ज़ी बची है ?

शांति : बेटा ! क्षमा कीजिए, बाबूजी छः गड़बड़ी पालक और १० गड़बड़ी मूली। आपको कितना चाहिए ?

युवक : मां जी आप मुझे सब दे दीजिए और क्षमा मांगने की कोई आवश्यकता नहीं है मैं आपके बेटे जैसा ही तो हूं। आप इन सबकी कुल क़ीमत बताइए

शांति : 36 रुपए की पालक रुपए की मूली, कुल मिलाकर रुपए हुए।

युवक : ये लिजिए।

और युवक सब्ज़ी की कीमत चुकाकर चला जाता है

शांति के मुख पर प्रसन्नता साफ झलक रही थी, क्यों न हो आज उसकी सारी सब्ज़ी जो बिक गई थी और दूसरी ख़ुशी उस युवक के वो मीठे बोल ने उसकी ख़ुशी को दोगुना कर दिया था। हमें सोचना चाहिए कि हमारे अच्छे और बुरे बोल-वचन का दूसरे पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसलिए हमें बेमन ही सही, पर मीठा बोल देना चाहिए, क्या पता इसमें किसी की बहुत बड़ी ख़ुशी छुपी हो। हालांकि शांति प्रतिदिन अधिकांश ऐसे लोगों से मिलती है जो उससे अच्छी तरह बात भी करना गवारा नही करते हैं और कभी-कभी तो जैसी डलिया घर से लेकर चलती है वैसे ही उसे वापस लाती है, बिना कुछ कमाए।

घर पहुंच कर उसकी सारी प्रसन्नता छूमंतर हो जाती है, पति शराब पीकर एक तरफ पड़ा है, बच्चे डरे-सहमे से और बेचारे बूढ़े सास-ससुर एक कोने में दुबक कर बैठे हैं और अपने पर ग्लानी अनुभव कर रहे हैं कि उन्होंने ऐसे बेटे को जन्म दिया।

शांति : मां जी; बाबूजी, आप ठीक तो हैं न ?

हरीश(ससुर) : बेटा हम ठीक हैं, तू जाकर आराम कर ले।

ही........च , रामू हिचकी लेता है तो जैसे सभी की सांसें रुक सी जाती हैं।

शांति अपने बच्चों को सहलाती हुई उन्हें बिस्किट देती है और अपने ससुर को उसकी तंबाकू भरकर देती है।

लक्ष्मी : बेटी, जा तू हाथ-पैर धो ले, मुझे सब्ज़ी दे दे, मैं तेरे आने तक साफ़ कर देती हूं।

शांति : मां जी, आप आराम करो, मैं कर लूंगी।

लक्ष्मी : अब कहां आराम की सुध है (गहरी सांस लेते हुए) रामू ने तो जीना हराम कर दिया है। तू जा, मैं कर लूंगी।


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