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Shivraj Anand

Romance

3  

Shivraj Anand

Romance

बेवफा अपनों के लिए

बेवफा अपनों के लिए

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बेवफा ! अपनों के लिए।..

   ओ ' धन्य ' जिसने आंख बन्द होते हुए भी दुनिया के हसीन नजारों को देख लिया था।

सात सुरों के संगीत को अपने सांसो में बसा लिया था पर उसके असल जिंदगी का अंजाम क्या हुआ? जो नम्रता के साथ प्यार - वयार के चक्कर में था भूल गया था कि ऐसे रेत का महल बनाने से क्या फायदा जो खुद -ब- खुद टूट के बिखर जाये। उसे एहसास ही नहीं था कि एक दिन  नम्रता उससे दूर..दूर दुनिया में गुम हो जायेगी। आखिर ऐसा क्या हुआ उसके  साथ?

      हैलो, नम्रता कैसी हो।..?

               धन्य ने तार के सहारे पूछा। पढ़ाई के सिलसिले में नम्रता शहर गयी हुई थी।

     मैं बिल्कुल ठीक हूं धन्य। मेरी पढ़ाई जैसे ही पूरी होगी मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगी...जवाब देती हुई नम्रता बोली।

 'तो कब आ रही हो नम्रता?  तुम बिन मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता ...धन्य ने कहा।

   मैं क्या करूं धन्य...तुमसे दूर तो जाना मैं भी नहीं  चाहती थी पर... नम्रता बोली।

 मैं सच कह रहा हूं नम्रता हर पल हर घड़ी मुझे तेरी ही याद आती है और मैं उन यादों से बेहाल हो जाता हूं।

 हां, नम्रता तेरे जाने के बाद मेरी जिन्दगी वीरान सी लगती है। एक पल भी सुकून नहीं मिलता...सिर्फ और सिर्फ बेचैनी। कुछ ऐसे ही बेताबी के आलम में धन्य ने कहा।

   बचपन में दोनों ही एक साथ एक ही स्कूल में पढ़ाई किये थे तब से दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे और धन्य भी नम्रता को अपना मानने लगा।धन्य नम्रता के बिना अपने आप को एकान्त महसूस करने लगा। अब तुम आ भी जाओ नम्रता....तेरे आने से मेरे उजड़े जिन्दगी में फिर से बहार आ जायेगी...अब और मुझसे रहा जाता...बेताबी के आलम में धन्य ने कहा।

      असल बात धन्य और नम्रता कक्षा 6 वी से एक ही विद्यालय में पढ़ते थे। दोनों की गहरी दोस्ती हो गई। किसी पार्टी या समारोह में साथ -साथ आने -जाने लगे। जब ये सारी बात नम्रता के पिता को मालूम हुआ कि मेरी तीन -पांच में आगे है अगर उसे दो -चार लगा दूँगा तो कहीं नौ दो ग्यारह ना हो जाए।इस लिए उन्होंने मतंग पुर के राज निहित के लड़के से नम्रता की शादी तय कर दी। धन्य नम्रता को लेकर न जाने कितने सपने संजोता। उन दोनों का तार के सहारे ही बात होती थी । फिर से एक दिन धन्य तार के सहारे पूछा कि जब तुम मुझसे इतना बेइंतहा प्यार करती हो तो क्यों नहीं मेरे पास आ जाती....और हमारे बीच के दूरियों को मिटा देती। तुम फिक्र मत करो धन्य मेरी पढ़ाई जैसे ही पूरी होगी मैं आ जाऊँगी... क्या करूं मुझे भी यहां एक पल अच्छा नहीं लगता है फिर भी दिल के जख्मों को सी सी कर जी रही हूं... नम्रता बोली।


     धन्य ' अमीर खान की तरह स्मार्ट था। वह हाथ में चूड़ा और टी- शर्ट आदि पहनने का शौकीन था। हर रोज सुबह  और शाम आईने के साथ काटता।एक दिन हँसी -खुशी के साथ मस्त माहौल में बैठकर नम्रता के साथ गुजारे पलों को याद कर रहा था कि वे भी कोई दिन थे जब हम पहली बार किसी पार्टी में मिले थे लाल सूट पहने मुझे नम्रता भा गई थी। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं ही नम्रता का सच्चा प्रेमी हूं। तभी अचानक फोन की घंटी बजी....फोन था नम्रता का। धन्य ने फोन उठाया ..बोला कैसे नम्रता? आ रही हो न ? मैं बस तुम्हारा ही इंतजार कर रहा हूं। क्या तुम बिना बताए आकर के मुझे सरप्राइज देना चाहती हो, मैं सब जानता हूं। धन्य और कुछ कहता इससे पहले की फोन कट चुकी थी फिर फोन की घंटी बजी।.. इधर से धन्य फोन उठाते ही पहले जैसा दोहराया ....बोला -क्या हुआ नम्रता सब ठीक तो है? मगर उधर से जवाब सुनते ही धन्य सन्न रह गया वही गिर पड़ा।   मानो उसके चमकती जिंदगी में अंधेरा छा गया हो। ये तूने क्या किया नम्रता? तुम तो कहती थी हमारे प्यार के रंग कभी नहीं छूटेगा ...हमारे रिश्ते अटूट है कभी नहीं टूटेगा.... क्या तेरा वो वादा....वो इरादा सिर्फ झूठे प्यार का सौदा था? ऐ दुनिया वालों इस दुनिया में अब प्रेम ,प्रेम नहीं रहा ...इक धोखा बन गया है। जिसे अपना समझो वही पराया हो जाता है। उन्होंने तो बड़ी आसानी से कह दिया ' आई हैट यू '... एक पल के लिए भी नहीं सोचा कि हमारे  ऐसा कहने से उनके नाजुक दिल पर क्या गुजरेगी? अब हम किसके लिए इस जहां में जीयें ? तूने क्यों कि बेवफाई नम्रता? किसके लिए ?"अपनों के लिए "खैर अब इन बातों से हमें क्या लेना -देना ? लेना देना है तो अपने सार्थक सांसो से....जो जीवन जीने की कला सीखा सके।



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