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Shivraj Anand

Others

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Shivraj Anand

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जगत का जंजाल -संसृति

जगत का जंजाल -संसृति

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     (मनुष्यों को अपने हृदय की सु बुद्धि से दीपशिखा जलाने चाहिए। उन्हें इक दूसरे के मध्य भेदभाव डालकर मौज मस्ती नहीं करनी चाहिए। मौज मस्ती दो पल की भूल है उनके कुबुद्धि का फल शूल है) 

   इस प्रकृति के 'विशद -अंक 'में कलिकाल की संसृति का "श्री गणेश" होता है जहां सुख आने पर आनंद सुखित हो जाती है वही दुख आने पर सुप्त- व्यथा जागृत होती है उसी प्रकृति के विशद अंक मे एक छोटा-सा गांव है -दामन पुर । जो चारों ओर नदी यों से घिरा हुआ है। कहीं - कहीं खुले मैदान हैं तो किसानों की चांद तोड़ने जैसी काम भी है। लोग अपनी - अपनी संस्कृति से जुड़ ने का प्रयत्न कर रहे है। वहीं पथ के किनारे आम्र - पीपल के द्रुत लगे हुए हैं जिससे शीतल समीर बह रहा है और प्यारे अभिन्न निमग्न हो रहे हैं। वहां के अधिकांश ग्रामीण अल्प ज्ञ है । वे किसी को ठेस लगाकर नहीं, अपितु खून -पसीना बहाकर अपना जीविका चलाते है । वे अपने काम के आगे भगवान को स्मरण करना भूल जाते है परेशानी सहन कर सकते है किन्तु पराजित नहीं।

   उसी गांव में दानिक राम और भोजराम नामक दो भाई निवास करते है। वे भाई तो दोनों एक है परन्तु स्वभाव एक नहीं पराई चीजों पर आंखें गड़ना बड़े भाई दानिक राम का पेशा है लालच ने उन्हें अंधा बना दिया है मानो कुबेर का धन पाकर भी सन्तोष नहीं और बगैर सन्तोष के लालच का नाश कहां? हां छोटे भाई भोजराम शील - स्वभाव के है। उन्हें दुनिया की लालच नहीं है सिर्फ दो वक्त की रोटी पर भरोसा है वे लक्ष्मण के चरण चिन्ह पर चलने वाले हैं। उनके भीतर बड़े भाई के प्रति सेवा व समर्पण के भाव है । तभी तो वे दानिक राम के हर उड़ती तीर को झेलते रहे पर उन्हें क्या जो राम न होकर एक प्रपं ची ठहरे..।

   असल मे दानिक राम अपने आप को छोटे भाई भोजराम की अपेक्षा ज्यादा समृद्ध और सम्पन्न समझते है परन्तु उससे ज्यादा उनका अहंकार है। वे नित्य रामायण का पाठ भी करते है तब भी त्रिशूल के उस महान सिद्धांत को भूल ही जाते है जिसमें लिखा है-सत वचन बोलना चाहिए। सत्य कर्म और सत्य विचार से रहना चाहिए। हां वे इस सिद्धांत को पढ़ते जरूर है किन्तु अपने । हकीकत कि दुनिया में नहीं उतार सकते। वे दुनिया के श्रेष्ठ ग्रंथों में एक 'श्रीराम चरित्र मानस 'मे यह भी पढ़ते है कि "भाई की भुजा भाई ही होता है। " फिर उसी भाई वैमनस्यता किसलिए? तू- तू, मैं - मैं क्यों ?

   माना कि दानिक राम के पास वैभव -वस्ती विपुल है पर प्रलय की अपेक्षा जीवन तो वि थु र ही है फिर ऐसा अहंकार क्यों मानो प्रलय के बाद भी जीवन का नाश नहीं होगा। दानिक राम के अहंकार रुपी दीमक ने छोटे भाई के प्रेम- भाव रुपी मखमल को चट् लिया है जो यह समझ नहीं पा रहे हैं कि छोटे भाई भोजराम के झोपड़ी में अपनों का प्यार और दूसरों का आदर भी है। वे गुरूर के आंखों से संसार को देखते है कि मेरे पास क्या नहीं है? सबकुछ तो है और उसके पास टूटी -फुटी झोपड़ी जिसमें भी खाने -पीने की तेरह -बाईस। वह तो भूख के मार से मारा -मारा फिरता है। शायद बड़े भाई दानिक राम को संसार की वास्तविकता का ठीक -ठीक बोध नहीं है कि इस संसार में राजाओं का राज हो या धनवानों का धन सब क्षणिक होता है। फिर गर्व किसलिए? 

     वे आधी खोपड़ी के जाहिल व्यक्ति हैं जो साधारण से जिन्दगी को लेकर ऊंच -नीच के कार्य करते हैं कभी किसी कि जिल्लत करते हैं तो कभी किसी पर इल्जाम लगाते हैं किन्तु जब इन कर्मों के परिणाम समीप आते हैं तो वे चल नहीं सकते या जैसे -जैसे उनके जीवन की अंतिम घडी यां आने लगती हैं उनकी जीवन के हर कर्म बोलने लगती हैं।  

    दानिक राम के दो पुत्र हैं कार्तिकेश्वर व अचिन्त कुमार । कार्तिकेश्वर एक शराबी है जबकि अचिन्त कुमार सिविल कोर्ट दामन पुर का मशहूर वकील है उसकी नीति अलग सी है -'वह सत्य का घोर विरोधी है। 'उनकी पत्नी अपाहिज है वह पति- प्रपंच के आगे परेशान है तब भी तन -मन -धन से पति के चरणों में प्रेम करती है। वह एक धर्म- पत्नी होने के नाते यह जानती है कि दान और तीर्थ से बढ़कर भी पति की सेवा है। एक दिन अनायास कार्तिकेश्वर शराब के नशे मे मदमस्त होकर अपने काका भोजराम को मारने दौड़ा .. अब भोजराम क्या करते? वे भागते -भागते पुलिस थाने जा पहुंचे। पुलिस आरक्षक ने देखते ही भोजराम को सलाम किया। क्योंकि वे गांधी टोपी व कुर्ता पहने हुए थे। तत्पश्चात पुलिस ने कार्तिकेश्वर को दो हाथ लगाते हुए कारावास में डाल दिया। मानों दानिक राम के पहाड़ से अहंकार को एक सबक मिल गया हो। लेकिन फूंक से पहाड़ कहां उड़ने वाला?

    ( कुछ दिनों बाद ) जब वह जेल खाना से बाहर आया तो पुन: वही बर्ताव करने लगा...आखिर कब तक? एक दिन दानिक राम के आंखों से गुरुर का चश्मा उतर गया। अब उनके पास गुरुर के चश्मे को पहनने के लिए आंखें नहीं रही । अचानक वकील अचिन्त कुमार दुनिया से चल बसा! उन्हें जिस धन -दौलत गर्व था उसी धन -दौलत ने उनका साथ छोड़ दिया। फिर पैसा -पैसा किसलिए? क्या पैसों से यमराज ने वकील अचिन्त कुमार का जान बख्शा? नहीं न। वे कल के कुकर्मों से आने वाले कल को खो दिए।

   जगत के जंजाल में आकर दानिकराम अपने पुत्र वकील अचिन्त कुमार को बांध लिए थे किन्तु अपने अहंकार को नहीं। इस जगत के 'जंजाल' में आकर अहंकार को नहीं, अपितु उस राम -नाम को भज ना चाहिए जिनका नाम 'अनइच्छित ही अपवर्ग निसेही है। 'फिर अहंकार किसलिए? मायाजाल और मोहनी में फंसने के लिए ।

 प्रकृति के विशद अंक में कलिकाल की संसृति (भव, जन्म - मरण )का जय श्रीराम होता है।


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