बेटी का जादू
बेटी का जादू


बात उन दिनों की है जब मेरी बेटी के. जी. कक्षा में पढ़ती थी।
उसके विद्यालय की प्रधानाध्यापिका जो कि कन्नडा भाषी थी और हिंदी बहुत कम जानती थी, उन्होंने मुझे उनकी बेटी "मेरी" जो कि चौथी कक्षा की छात्रा थी को हिंदी पढ़ाने की विनती की। जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार किया।
शुरू-शुरू में मेरी के साथ काफी मेहनत करनी पड़ी। जब मैं उसे पढ़ाती थी तो मेरी बेटी भी स्वयं से मेरे पास आकर बैठ जाती थी। उसी समय पढ़ाया हुआ जब मैं मेरी से वापस पूछती थी तो इससे पहले कि 'मेरी' उत्तर दे, मेरी बेटी बोल देती थी जिसे देखकर व सुनकर मेरी बहुत प्रभावित होने लगी।
कुछ ही दिनों में मुझे 'मेरी' में हिंदी के प्रति रुचि दिखाई देने लगी। प्रधानाध्यापिका से जब अगली मुलाकात हुई तो वे कहने लगीं , "आपने मेरी बेटी पर जादू कर दिया है। परीक्षा में वह हिंदी में अब बहुत अच्छा कर रही है।"
मैंने मन-ही-मन में कहा यह मेरा नहीं मेरी बेटी का जादू है।