बेटे की ज़िद
बेटे की ज़िद
"पापा! मुझे टोर्च लेना है।" मासूम सोनू ने अपने पिता से ज़िद किया।
अपने बेटे की ख्वाहिश पूरी करने की ज़द हर पिता को होती है। बिजेता जी इस मामले में काफी संजीदा थेI बाजार जाकर एक सुन्दर-सा टोर्च ले आयेI सोनू अपने बस्ती के गलियों में उछलता-फुदकता खेलने लगा। बस्ती में हीं एक जीतू नाम का बदमास लड़का रहता था और उसकी उम्र कुछेक 15 वर्ष थी। सोनू के हाथ में चमचमाता टोर्च देखकर उसके पीछे चल पड़ा।
कुछ दूर पर एक सुनसान मोड़ आया और वहीं पर जीतू ने सोनू से झपट्टा मारकर टोर्च छीन लिया और पलक झपकते हीं रफूचक्कर हो गया। सोनू रोता-बिलखता घर पहुँचा।
माँ अपने बेटे को रोते देखकर पूछने लगी क्या हुआ तो जवाब मिला कि किसी ने उसका नया टोर्च छीन लिया।
दुलार-पुचकार कर उसे चुप कराया।
सोनू धीरे-धीरे अपने जिद का आदी बन चुका था। और उसके पिता उसके हर जिद को पूरा करना अपना दायित्व समझते।
सोनू के और भाई-बहन हुए और उनमे मोनू सबसे सीधा था और हर परिस्थिति में चुप रहकर खुश रहता।
बच्चों की परवरिश पर विजेता जी अपना सारी कमाई लुटा देते और धनार्जन से ज्यादा बच्चों का ध्यान रखते थे।
सोनू की उम्र 27 वर्ष हो चुकी थी और उसके लिए लड़की देखने की कवायद शुरू हुयी। एक गरीब परिवार से लड़की का रिश्ता आया। लड़की अपने मामा के यहाँ रहती थी और उसके मामा कम पैसे में हीं उसकी शादी कर देना चाहते थे पर अचानक ही यह रिश्ता नहीं जुड़ सका।
इधर सोनू अपने शादी का पहला रिश्ता ना होने से खीझ चुका था और उसने ज़िद किया कि उसे इस बार शादी करनी ही है। बेटे के जिद के आगे विजेता जी मजबूर थे और किसी तरह शहर से दूर एक गाँव में एक लड़की के यहाँ जाकर रिश्ता पक्का कर आये।
इस जिद से सोनू की शादी तो हो गयी पर यह विजेता जी के लिए भारी साबित हुआ।
बहु भी जिद्दी निकली और उसने मायके जाने की ज़िद ठान ली। मोनू ने भी शांति से सबको समझाया पर सोनू ने एक न सुनी। जब बात मारपीट तक आ गयी तो विजेता जे ने मायूस भाव से पैसे और जेवरात देकर बेटे को ससुराल विदा कर दिया।
विजेता जी आज घर के बाहर खाट में लेटकर सितारों से पूछ रहे थे कि उनका प्यार उनके बेटे को नागवार गुजरा या फिर बेटे की जिद का यह विकराल दुष्प्रभाव था।
