सेठ भोलुमल

सेठ भोलुमल

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सेठ भोलुमल एक अनाज व्यापारी थे और बड़े कंजूस थेI खाने की चीजें भी बड़े कन्जुसियत से लिया करते थेI उनके परिवार में सभी मांसाहारी थे, बस उनको छोड़कर, क्योकि उन्हें खुद के लिए अच्छी सेहत चाहिए थीI बचपन में पैसे की तंगी से गुज़र रहे उनके पैतृक जीवन से भली-भाँती वाक़िफ़ थेI

मगर उनका बड़ा बेटा मुक्कुचंद पैसे को ही सबकुछ समझता थाI भोलुमल के पास पैसे इफ़रात थे, पर कन्जुसियत का पूरा प्रभाव मुक्कुचंद पर पड़ाI वैसे तो मुक्कुचंद की हर जरुरत पूरी कर देते थे, पर उसको अतिरिक्त खर्च के लिए फूटी कौड़ी भी नहीं देते थेI

मुक्कुचंद ने अपने वकालत की डिग्री पूरी की और घूस देकर नौकरी पर लग गयाI जितने पैसे कमाता उससे ज्यादा खर्च करता और अपने सेहत का कभी ख्याल नहीं रखता थाI

"सेठ जी! आपका बेटा बहुत गंभीर है परन्तु उसे कोई बीमारी नहीं हैI हालात ऐसे ही रहे तो वह तीन महीने से ज्यादा जीवित नहीं रहेगा I" चिकित्सक ने उदास लहजे में चेतावनी देते हुए भोलुमल से कहाI

"बेटा! कुछ खा लेI ऐसे उदास मत हो I कोई परेशानी हो तो मुझे बताI" भोलुमल ने प्यार से मुक्कुचंद के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा I

भोलुमल की उम्र इस वक़्त सत्तर वर्ष की हो चुकी थी और मुक्कुचंद पैंतालिस वर्ष का, लेकिन भोलुमल से बहुत कमजोर उसका बेटा दिखाई पड़ताI

"पैसा!" -मुक्कुचंद के होठ पर अनायास हीं यह शब्द निकल पड़ाI

"बेटा, तू बता तुझे कितने पैसे चाहिए?" -भोलुमल ने बेटे के आँसू भरे आँखों को पोछते हुए पूछाI

" नहीं पिताजी! मैं थक चुका हूँI और मुझे पैसों की जरुरत भी नहीं हैI आपके तिजोरी से चार गुना ज्यादा पैसा मेरे खाते में भरा पड़ा हैI कुछ दिन पहले अपने एल्बम को देख रहा थाI मैंने बहुत कुछ खो दिया पिताजी! बहुत कुछ I"

"बस इतनी सी बात! चल मेरे साथ, आज उद्यान साथ घूमेंगेI" भोलुमल ने प्यार से बेटे को कहा,

भोलुमल और मुक्कुचंद अब नित्य ही उद्यान जाया करते और धीरे-धीरे मुक्कुचंद ठीक होने लगाI पिता के प्यार ने उसके अन्दर खिलखिलाते बच्चे को जीवित कर दिया और पैसे के पीछे भागते-दौड़ते जीवन से खुशहाली की ओर खींच लाया I

" पापा! आप सच में इस दुनिया के सबसे धनी इंसान होI" मुक्कुचंद ने मुस्कुराकर कहाI

"हाँ! बेटा कंजूस हूँ पर इसलिए नहीं कि मेरी आदत है, इसलिए कि मैं पैसे से ज्यादा महत्व ख़ुशियों को देता हूँ I कम खर्च में ज्यादा ख़ुशियाँ ही मेरे खुशहाल ज़िन्दगी की पहचान है I पैसे के पीछे तुम्हें अक्सर भागते देखा, पर आज तुम्हें बचा लियाI" भोलुमल खुश था I



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