किसी की कमी
किसी की कमी
सोनी जी को वहां कोई जानता था और ना ही उनकी कोई खास पहचान थी। अगर था, तो वह बस एक संघर्ष करता हुआ शोधार्थी। पर समय के साथ कई लम्हे ऐसे आए जब उन्हें विभाग के उच्च दर्जे से निम्न दर्जे के अधिकारियों की सहायता करने का मौका मिला। उन्होंने कोई बड़ा काम नहीं किया पर जब भी मौका मिला, हर परेशानी का हल चुटकियों में निकाल लेते।
पर इस बात को लेकर कुछ बड़े अधिकारी उनके दुश्मन भी हो गये थे, क्योंकि वो सहायता करते वक़्त ना तो इन्सान को देखते और ना हीं किसी कागजी कार्यवाही का हवाला देते। अपना काम भूलकर भी दूसरों का कार्य पूर्ण करते।
समय के साथ वो अपना कार्य भी पूर्ण करने लगे।
एक शाम जब वो अपने रूम वापस लौट रहे थे तब उनके एक गुरु ने कहा -" तुम्हें ! ऐसा तो नहीं लगता ना, कि तुम्हारे बिना यहाँ काम नहीं चलेगा ?"
सोनी जी मुस्कुराए और कुछ नहीं कहा।
अगर कोई किसी की सहायता करता है और उनके चेहरे पर मुस्कराहट लाता है, तो ये ताउम्र रहता है। और उस इन्सान की जगह कोई नहीं ले सकता। हाँ ! बशर्ते वह इन्सान उस जगह रहे या नहीं पर जब भी कोई अपने साथ उसकी जरुरत महसूस करता है तो अनायास हीं चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
सोनी जी के कहानियों में सुमार कुछ सहायता के पल शायद आपको भी उस जुगाडू की याद दिला सकते हैं जिसने कभी आपका बिना किसी प्रोटोकॉल के सहायता किया हो।
ऑफिस, दोपहर का वक़्त और बहुत देर से एक लैब असिस्टेंट ऑफिस कंप्यूटर को चालू करने का प्रयास कर रहा था। फोर्मेट करते तो बरसों से पड़ी फाइलें नष्ट हो सकती थी। कंप्यूटर को बनवाने लिए नोटशीट जाती फिर महीनों लग जाते। घंटों से परेशान ऑफिस का माहौल देखते हुए सोनी जी ने देखा और पूछा -"क्या बात है महोदय! क्या हो गया ?"
पहले तो लैब असिस्टेंट सोंच में पड़ गया पर कोई युक्ति ना मिलने पर अपनी समस्या सुनाई।
सोनी जी ने ध्यान से देखा और यूट्यूब से सीखे थोड़े बहुत तरकीब लगाना प्रारंभ किया। तीन घंटे से भी ज्यादा समय लग चुका था और कंप्यूटर के डेटा रिकवर हो गये। सभी खुश हो गये और ऑफिस का काम चल पड़ा।
एक शोधार्थी को भारत का, राज्य का रिक्त नक्शा नहीं मिल रहा था। बाकी सब जगह पैसे लग रहे थे, यहाँ भी सोनी जी की सिक्का काम कर गया और उसको नक्षा मिल गया। इसी तरह एक और शोधार्थी का सबसे बड़ा समस्या ये था कि उसके नमूने को उच्च ताप पर गर्म कर राख बनाना था, मगर कोई सुविधा ना होने के कारण यह उसके लिए असंभव था। शोधार्थी सोनी के बारे में पता चलते हीं वह दौड़ी आई और आग्रह की, तो सोनी जी नमूना लेकर अपने रूम गये। एक टिफिन नमूना रख कर गैस के ऊपर चढ़ाया और उसे गर्म करना प्रारंभ किया। वो बर्तन रक्त तप्त हो गया और नमूना जल-जलकर रख हो गया। इस तरह अपने टिफिन की परवाह किये बगैर सोनी जी ने असंभव को संभव बना दिया।
इसी तरह कई वाकये हैं जो सोनी जी को हमेशा प्रेरित करते थे बेरोक सबको ख़ुशी देने की। पर ये सवाल कि "किसी की कमी कोई पूरी कर सकता है क्या ?" क्या कोई फर्क नहीं पड़ता किसी के जाने से? इन्ही चन्द सवालों को दिल में समेटे सोनी जी विभाग से दबे पाँव रुख्सत हो गये और आगे लोगों ने याद किया या नहीं भगवान जाने।