बेसन के लड्डू

बेसन के लड्डू

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प्रवीण : (आँखों में आंसू भरे हुए) 'पागल हो गई हो क्या ! तुम्हारा बेटा शहीद होकर वापस आ रहा और तुम बेसन के लड्डुओं के पीछे पड़ी हुई हो| विभा समझने की कोशिश करो वो शहीद हुआ है, शहीद| अब वो लड्डू कभी नहीं खाएगा।'

विभा : 'पागल तो तुम हो गए हो| देखना, कैसे आते ही मेरा बेटा मेरे गले लग कर बेसन के लड्डुओं की थाली मेरे हाथ से ले लेगा| मेरे बेटे ने बोला था कि माँ मैं जल्द ही आऊंगा, तुम मेरे लिए बेसन के लड्डू बना कर रखना| मैंने लड्डू तैयार कर दिए हैं, देखना मेरा बेटा कैसे चाव से खाएगा|' प्रवीण समझ गये कि बेटे के प्यार में ये पागल है, अभी इसे समझाना व्यर्थ है|

घर के बाहर अड़ोसी-पड़ोसियों की काफी भीड लगी हुई थी| सभी पार्थिव शरीर का इंतज़ार कर रहे थे करीब २० मिनट बाद एक फौजी गाड़ी आ कर रुकी, उसमें से कुछ सिपाहियों द्वारा बेटे का तिरंगे में लिपटा पार्थिव शरीर उतारा गया| सभी पड़ोसी व रिश्तेदार विलाप कर रहे थे| उन सिपाहियों मे से एक अफसर ने प्रवीण जी के कंधे पर हाथ रखकर सांत्वना दी|

माँ (विभा) हाथ में लड्डुओं की थाली ले कर बेटे के पास आ गई| “बेटा देख तू कह कर गया था न की माँ मै जब आऊंगा तो बेसन के लड्डू जी भर कर खाऊंगा, ले बेटा” कह कर माँ, बेटे के सिरहाने बैठ कर थाल उसके पास रख देती है और बार-बार कहती है -- 'ले बेटा खा न, ले बेटा खा|'

सभी रिश्तेदार, पड़ोसी और अन्य लोग, जो वहां पर उपस्थित, ये दारुण द्रश्य देख कर उनका कलेजा फटा जा रहा था | कुछ महिलाओं ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन उसने गुस्से में झटक दिया उसका मन मानने को ही तैयार न था कि सूरज को कुछ हुआ है| बार-बार एक लड्डू उठा कर वह बेटे को खिलने की कोशिश करती| आखिरकार जब प्रवीण के सब्र का बाँध टूट गया तो वह विभा को जोर से झटक कर बोला विभा होश में आओ तुम्हारा बेटा अब नहीं रहा और खींच कर उसने विभा को गले से लगा लिया|

“नहीं”, कहकर विभा दहाड़ें मार कर रोने लगी|

जब सूरज का पार्थिव शरीर राजकीय सम्मान के साथ दाह-संस्कार के लिए ले जाने लगे तो माँ ने वह बेसन के लड्डू साथ ही दे दिए| प्रवीण से बोली जब मेरे बेटे को विदाई दो तो ये बेसन के लड्डू उस पर चढ़ा देना, रास्ता लम्बा है भूख लगेगी।


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