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पश्चताप

पश्चताप

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माँ को दोनो भाई जान से बढ़कर प्यार करते थे। माँ ने दोनो भाइयों को अच्छे संस्कार दिए लेकिन आगे चलकर पैसे कमाने की इच्छा दोनो भाइयों की अलग-अलग थी। बड़ा ईमानदारी से धीरे-धीरे सब पाना चाहता था और छोटा जल्दी पैसे कमाने का इच्छुक था, चाहे इसके लिए बेईमानी, रिश्वतखोरी ही क्यों न करनी पड़े। माँ और बड़े ने खूब समझाया पर छोटे को समझ न आया तो माँ ने बड़े बेटे से कहा, "छोड़ बेटा, हो सकता है जिंदगी सीखा दे।"

एक दिन माँ ने दोनों बेटों को बुलाया और कहा, "बड़े, तुम 18 साल के हो गए हो और छोटे तुम 16 साल के, तुम्हारे पापा तो है नहीं। मैं चाहती हूँ तुम दोनों अपने पैरों पर खड़े हो जाओ ताकि मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाऊँ। ये लो अब तक मैंने जो पूँजी बचाई थी तुम दोनों में बाँट रही हूँ। जाओ जाकर कोई काम कर लो।"

माँ ने दोनों को 20- 20 हज़ार रुपए दे दिए।

बड़े वाले ने तो एकाउंट में माँ के नाम से जमा कर दिया और छोटे ने घर से कुछ दूर सड़क पर एक पंचर की दुकान कर ली।

दिन गुजरते गए। बड़ा बेटा नौकरी कर रहा था और छोटे की दुकान भी ठीक चल रही थी लेकिन जल्दी बड़ा आदमी बनने का फितूर उसके दिमाग से अभी निकला नहीं था। एक दिन अचानक एक खुराफात उसके दिमाग में आई। उसने दुकान से कुछ दूरी पर रास्ते में कीलें बिछा दीं। अब जो गाड़ी पंचर हो वो उसी के पास आई। अन्य दिनों के मुकाबले उस दिन कमाई अच्छी हुई। अब हर रोज़ वो यही करता था।

एक दिन दोपहर के समय बड़ा दफ्तर से घर खाना खाने आया हुआ था कि माँ को अचानक हार्टअटैक आया। छोटा उस समय दुकान पर था। बड़े ने माँ को हॉस्पिटल ले जाने के लिए टैक्सी की और सोचा, "छोटे को हम रास्ते से ले लेंगे।"

छोटे की दुकान पर पहुँचते ही टेक्सी पंचर। माँ की हालत देख कर छोटा बहुत घबराया ओर जल्दी-जल्दी टायर खोलने लगा, लेकिन देर हो चुकी थी जब वो पंचर लगाता, माँ चल बसी।

दहाड़ें मारकर रोता रहा वह, माँ को बुलाता रहा लेकिन माँ जा चुकी थी। बड़े के सामने उसने अपना जुर्म कुबूला। दोनो भाई लिपटकर रोते रहे लेकिन माँ छोटे को ईमानदारी का सबक सिखा गई।

सच कह रही थी माँ इसे ज़िन्दगी ही सबक सिखायेगी।।


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