साहसी नारी

साहसी नारी

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बात उन दिनों की है, जब मेरी शादी को साल भर हुआ होगा | पति-देव बड़े सीधे स्वभाव के थे और मै उतने ही तेज-तर्रार | वह तो मेरे साथ बाज़ार जाने में भी डरते थे, क्योंकि मै कभी दुकानदार से मोल-भाव पर, कभी क्वालिटी पर तो मूल्य पर झगड़ने लगती थी, हारकर - झखमार कर दुकानदार को मेरी बात ही माननी पडती थी | कभी रास्ते में कोई गलत बात देखती तो झगड़ने लगती, लेकिन पति-देव को मुझ पर ये विश्वास था कि यह कभी गलत बात पर किसी से नहीं उलझती |

एक दिन की बात है कि पड़ोस की एक भाभी के साथ मैं बाज़ार से खरीददारी कर के वापस आ रही थी | कुछ दूर कुत्ते आलिंगन-बद्ध थे | अक्सर होता है कि लोग भीड़ लगाकर तमाशा देखने लगते हैं | ऊट-पटांग फब्तिओं और सीटिओं के बीच से लडकियों व महिलाओं का गुज़रना मुश्किल हो जाता है | न उन्हें कहीं देखते बनता है, न किसी से कुछ कहते | वे सिर्फ सर झुकाकर आगे बढ़ जाती हैं |

यही मेरे साथ भी हुआ, मै भाभी से बात करते हुए जा रही थी की एक मनचले ने मेरा और भाभी का ध्यान उस और खींचने के लिए हमारी ओर सीटी मारी और फब्ती कसी, “अरे क्या मस्त फिल्म चल रही है | आओ तुम भी देखो” |

भाभी की नजर जैसे ही कुत्तों पर पड़ी, उन्होंने सर झुका लिया और आगे चल दी और मुझे खींचने लगीं, लेकिन मैं तो सीधी उस मनचले की तरफ बढ़ गई और कसकर दो तमाचे रसीद कर दिए |

कहा, “बोल क्या दिखाना चाहता है ? ये ! ये दिखाना चाहता है तू मुझे ! हाँ क्या है ये | ये तो संतोत्पत्ति के लिए रत हैं और तुम सब की अक्ल घास चरने गई है, इनको देखकर तुम लोग सीटी और फब्तियां कस रहे हो | तुम्हारे मां-बाप ने भी ऐसा ही किया होगा तो तुम लोग इस दुनिया में आये हो |” शर्म आनी चाहिये तुम लोगों को | सुन कर सब लोगों का सर शर्म से झुक गया |

भीड़ से मैंने पूछा, “बताओ तुम लोग किसका मजाक बना रहे हो, उस कुदरत (प्रकृति) का, जिसने सब कुछ बनाया, अपने माँ-बाप का, जिन्होंने तुम जैसे कमीनों को बनाया या इन जीवों का जिन्हें कुछ ज्ञान नहीं है | तुम्हारे पूर्वज भी ऐसे ही थे तुम उनका मजाक उड़ा रहे हो” |

तब तक वहां पर काफी लोग इकठा हो गई थी, जिनमे महिलाएँ और लडकियां भी थीं |

मैंने महिलाओं से पूछा, “तुम लोग क्यों सर झुका कर निकल जाती हो, इसीलिए इन जैसे छिछोरों को इतनी शह मिलती है |” सुनते ही वहां पर उपस्थित महिलाओं ने उसकी और उसके अन्य लफंगे दोस्तों की चप्पल उतार कर पिटाई कर दी और भीड़ भी उन पर टूट पड़ी | सही धुनाई हो गई उन छिछोरों की | वह लफंगा मुझसे माफ़ी मांग रहा था | उसे पुलिस ले गई और मेरे पति जी मेरी बड़ाइयाँ किए जा रहे थे, और मुझे छेड़ने के लिए कह रहे थे, “मुझे पता था की फिर कोई बवाल करके आओगी !"


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