कवि हरि शंकर गोयल

Abstract Comedy Fantasy

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कवि हरि शंकर गोयल

Abstract Comedy Fantasy

बेचारे जानवर

बेचारे जानवर

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मैं सुबह सुबह घूमने जा ही रहा था कि अचानक देखा सड़क पर बहुत सारे जानवर जा रहे हैं। अजी जा क्या रहे हैं , दौड़ रहे हैं। सभी जानवर एक ही नस्ल के हैं। सब जानवर "मैं मैं" करते हुए बेतहाशा भाग रहे हैं। ऐसा लग रहा था कि वे किसी से डरकर भाग रहे हैं। मैंने सोचा कि कहीं कोश शेर या चीता तो जंगल की बोरियत से बचने के लिए कहीं "राज कुंद्रा" की चर्चित फिल्म देखने तो नहीं आ रहा है ? क्योंकि हो सकता है कि उन्होंने कभी जंगल में उन फिल्मों की चर्चा सुन ली हो। लेकिन अगर शेर या चीता शहर में आ गया तो वह पहले इंसान को खायेगा या जानवरों को ? 

मेरे मन ने कहा "नहीं , वह पहले इंसान को नहीं खा सकता है क्योंकि इंसान इतना जहरीला है कि यदि शेर उसे खा गया तो उसका जीवन भी दांव पर लग जाएगा। इंसान ऊपर से तो मीठा दिखता है लेकिन अंदर से करेले से भी कड़वा है। ऐसे कड़वे और जहरीले आदमी को खाये, शेर इतना मूर्ख भी नहीं होता है। 


हमने एक जानवर को रोककर पूछा "कहां भागे जा रहे हो" ? 

वह बोला "देखते नहीं , अपनी जान बचाने के लिए हम सब भाग रहे हैं किसी सुरक्षित स्थान पे जाकर सुरक्षित महसूस करने के लिए।" एक ही सांस में इतना बताकर आगे बढ़ गया। 

"किससे खतरा है जान का ? कौन मारना चाहता है तुम्हें ? कोई शेर , चीता या तेंदुआ" ? 

"बड़े भोले हो। इतना भी नहीं पता ? अरे, शेर और चीता शान से शिकार करते हैं। धर्म और आस्था के नाम पर यूं जानवरों की "कुर्बानी" नहीं देते ?" 

"कौन देता है कुर्बानी, तुम्हारी ? "

"तुम्हें इंसान किसने बना दिया ? तुम तो भैंसे से भी गये गुजरे हो। इतना तो वह भी समझता है। वही लोग जो अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने के नाम पर हमें काट देते हैं और बाद में पकाकर खा जाते हैं ? "

"ओह ! फिर तुम कहां जा रहे हो ? "

"प्रियंका चोपड़ा के पास ? "

"पर क्यूं ?" 

"अरे, तुम्हें नहीं पता ? वह बहुत बड़ी पशु प्रेमी है। जब जब भी दीवाली आती है , हर बार लोगों से हाथ जोड़ कर विनती करती है कि दीवाली पर पटाखे मत चलाना। जानवर डर जाते हैं। कितना प्यार करतीं हैं वे हम जानवरों से।" कहते कहते उत्साह से आंखें चमकने लगी थी उसकी। 

"बिल्कुल सही कहा आपने। वाकई बहुत प्यार करतीं हैं जानवरों से वे। इतना प्यार करतीं हैं कि अपनी शादी में लाखों रुपए के पटाखे चलातीं हैं। उन पटाखों से जानवरों को कष्ट नहीं होता है बल्कि उन पटाखों से "प्राणवायु" निकलती है जिससे जानवरों की उम्र लंबी हो जाती है और पटाखों से जो "संगीत" निकलता है उससे सारे जानवर जी भरकर भांगड़ा करते हैं। वैसे वह भारत के जानवरों को अजर अमर करके अब "हॉलीवुड" चली गई है। इसलिए उससे मिलने के लिए तुम्हें न्यूयॉर्क जाना पड़ेगा"। 


मेरी बातें सुनकर उन बेबस जानवरों का चेहरा उतर गया। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह इतनी दोगली निकलेगी। लेकिन हकीकत से मुंह तो नहीं मोड़ा जा सकता है ना। लेकिन अगले ही पल उनके चेहरे पर फिर से रौनक आ गयी। कहने लगे 

"प्रियंका चोपड़ा नहीं है तो कोई बात नहीं, हम अनुष्का शर्मा के घर चले जाएंगे। वह भी बहुत बड़ी पशु प्रेमी है। वह भी हर दीवाली पर पटाखे नहीं छोड़ने की प्रार्थना करती है सबसे। बहुत ध्यान रखती है हमारा"। 

"वाकई , बहुत ध्यान रखती है आप लोगों का। इसीलिए तो वह दीवाली पर अपील करके लोगों को पटाखे चलाने से रोकती है। इससे कितना सुकून मिलता है ना आप लोगों को। वैसे अच्छा ही है कि तुम लोग खुद उसके घर जा रहे हो। वह तो खुद चिकन , मटन के लिए तुम्हें ढूंढ रही थी। अच्छा है। इतनी सारी वैरायटी मिल जायेगी तो वह कितनी खुश होगी। अगर उसने आप लोगों को खुश होने का अवसर दिया है तो आपका भी फर्ज बनता है ना उनको खुश करने का। जाओ , जल्दी जाओ। देर ना हो जाए कहीं देर ना हो जाए।" 

"क्या वह भी ये सब खाती है" ? 

"ये तो पता नहीं , मगर सोशल मीडिया पर उन्होंने चिकन, मटन खाते हुए अपनी फोटो शेयर करते हुए लिखा था 'सो यम्मी'। इसलिए आप खुद अंदाजा कर लो।" 

अब गुस्से से नसें तन गई थी जानवरों की। मगर धैर्यपूर्वक कहा "ये भी दोगली निकली। अब क्या करें? चलो , दैनिक भास्कर के ऑफिस चलते हैं। हर त्यौहार पर पूरा ज्ञान बघारता है। होली पर पानी मत फैलाओ। दीवाली पर पटाखे मत चलाओ। मिठाई मत खाओ। जन्माष्टमी पर मटकी मत फोड़ों। मकर संक्रांति पर पतंगें मत उड़ाओ। अब, इससे बड़ा पशु प्रेमी और कौन होगा " ? 


"बिल्कुल सत्य कह रहे हो भैया। हम भी दैनिक भास्कर के पर्यावरण और पशु पक्षी प्रेम को देखकर अभिभूत हैं। मगर एक बात तो बताओ। आपने कभी दैनिक भास्कर में बकरीद पर यह अपील देखी है क्या कि 'जानवरों की बलि मत दो। और सब त्यौहारों पर अपील करेंगे लेकिन आज के त्यौहार के दिन आंख नाक कान मुंह सब बंद करके कहीं दडबे में घुस जाते हैं। इतने सारे जानवरों की हत्या पर एक शब्द भी नहीं बोलते। वस्तुत: ये वामपंथी अखबार है। और तुम जानते ही हो कि दुनिया में अगर सबसे अधिक कोई धूर्त, मक्कार , रंगा सियार है तो वह 'वामपंथी' ही है। जाओ भाई , शौक से जाओ"। 


यह सुनकर सारे जानवर सकते में आ गये। जिनको मसीहा समझा , वे सब कातिल निकले। मैंने उन्हें कहा " चिंता मत करो। अभी तो मेनका गांधी हैं ना आपके लिए। वहां चले जाओ " 


उन्होंने हथियार डालते हुए कहा "भैय्या जी , हमने तो सब लिब्रांडू , सेक्युलर, बुद्धिजीवी सबको देख लिया है। PETA वालों को भी देख लिया और जो हर मामले में "ऑर्डर ऑर्डर" करके अपनी चौधराहट चलाने की कोशिश करते हैं , उन सबको भी देख लिया। सबके सब डरपोक हैं। दोगले हैं। मुंह में राम बगल में छुरी रखते हैं ये सब। अब तो 'खुदा' ही हमारा खेवनहार है। अगर कटना ही लिखा है तो कटेंगे ही। ठीक है भैयाजी। अगले जनम में फिर मिलेंगे। तब तक राम राम। "



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