STORYMIRROR

Pradeep Sahare

Abstract

3  

Pradeep Sahare

Abstract

बेच ही तो रहा हूं

बेच ही तो रहा हूं

2 mins
384


निजीकरण और केन्द्रसरकार के हो हल्ले के बिच मुझे एक बचपन का वाकया याद आया।जो समझ तो आयेगा लेकिन समझने में थोड़ा कठिन भी लगेगा बस थोड़ा पात्र के साथ इधर उधर करना पडेगा ।तो बात को ना घुमाते हुए शुरु करता हूं ..

हमारे गाँव में सोमवार को शाम में बाजार रहता था और बाजार में आ स पास के गाँव दुकान लगाने वाले आ ते थे ।उन्ही दुकानदार में एक था चांदूर फरसान वाला,वह भी घोडे पर सामान लादकर बाजार आता एवं सामान उतारकर दुकान लगाता था ।गरम भजीया,जलेभी,पापडी औरअन्य फरसान तलता था ।बात यहां तक तो ठीक थी,बस कहानी तो आगे है ।

दुकानदार ने हमारे ही गाँव का एक लड़का अपने मदद के लिए रखा था जो हमारे चड्डी गॅग का सदस्य था और हमारे साथ कच्चे ,गील्ली डंडा खेलता था ।चूंकि सोमवार को दूकान पर बैठता तो ऐठ कुछ ज्यादा रहती ।हाँ,शाम में भीड़ बढती तो फिर सामान देने के साथ कभी गल्ला भी सम्हालता सब कुछ अच्छा ..

बस एक दिन ईमली पेड़ निचे बैठकर ईमली फूल की चटनी बना रहें थे,रविवार दिन था तो चटनी खाते दिमाग चला भाई का।देखो भाईयों कल है बाजार तो मैंने आपके लिए एक योजना बनाई हैं जो अाप और मैं दोनोके लिए फायदे की हैं ।हमारी योजना सुनने समझने कीउत्सुकता बढी और हम जल्दीबताने की जल्दी करने लगे ।

वह बताने लगा," देखो भाईयों जैसे की आप जानते हैं मैं बाजार में फरसान की दूकान पर बैठता और सामान के साथ गल्ला भी कभी कभी देखता  ।"हम बोले," अबे..वह हमें पता हैं आगे बोल करना क्या ?"वह बोला,

" आपको करना कुछ नही"मतलब!

" भाई,मतलब मैं आज आप सबको अठन्नी देता हूं ।"

फिर..

आप दूकान के आस पास मंडराना ।

फिर..

भीड़ बढती देखना ।

फिर..

मैं सामान देते हुए,गल्ला सम्हालते देखना ।

फिर..

मुझे अठन्नी देना और जरा जोर से बोलना,चार आने की भजीया दो बारा आने वापस दो।

फिर...मेरी अठन्नी पहली बार में ही निकल जाएगी ।

फिर..

यह काम बार बार करना ।

फिर..

जमा पैसे मुझे सुबह देना ।

फिर हमारा क्या फायदा..

एक एक चवन्नी सबको दूंगा..और सालों..भजीया,जलेभी तो मुप्त में ही खाओंगे ।बस फिर क्या !सोमवार दोपहर..नहा _ धोकर..फरसान की दूकान पर ।सब कुछ चल रहा था बराबर।लेकिन एक दिन खटकी,दूकानदार की नज़र ।सोचा,बेच रहा हूं बराबर..गल्ला क्यों नही भर रहा बराबर।एक बार पडी हम पर नज़र ।हम भी हो गये छू मंतर ।भाई बैठ गया घर ।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract