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Pradeep Sahare

Tragedy

4  

Pradeep Sahare

Tragedy

क्षणभंगुर

क्षणभंगुर

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दिन का एक प्रहर ,

जीवन की खुशियों का ,

एक एक पल ।

पल पल गुंजते ,

खुशियों के स्वर ।

स्वर के संग संग ,

खिलखिलाते , हँसते ,

मुस्कराते हुये चेहरे ।

फोटो - सेल्फी का दौर ,

देख इधर, देख उधर ।

चारों तरफ शोर ।

ना जाने कहां से,

आने लगा थोड़ा थोड़ा धुवां,

साथ देने लगी उसका हवा ।

धीरे धीरे फिर , भड़की आग ।

आग लगते ही,

चारों तरफ भागम भाग ।

शोर हुवा फिर, आकांत ।

आकांत हुवा ,

क्रंदन में तब्दील ।

सबके बैठने लगे दिल ।

छाती में जाकर,

बसने लगा धूर ।

सब के सब मजबुर ।

व्यवस्था चिढाती मुंह,

उनकी मजबूरी पर ।

सब रह गई धरी की धरी ।

बिछड़े फिर अपने प्यारे ,

अपनो से हमेशा हमेशा के,

एक दूसरे से दूर ,

सब जीवन हैं क्षणभंगुर ।



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