जीवन सुंदर हैं
जीवन सुंदर हैं
अक्सर शादी के बाद के दो तीन साल बहुत ही सुखमय होते है ।इन लम्हो का हर एक पल,सुखद अनूभुति दे जाता है।रात रात भर बाते करना,हाथ में हाथ डालकर घुमना,भविंश्य के सपने देखना और बहुत कुछ।
लेकिन कुछ ही दिनो में यह दिन खतम हो जाते है,और घुमने फिरने और मौज मजा में कुछ बैंक बॅलेन्स भी कम हो जाता है।
जीवन के इस सुंदर सफ़र में,भविष्य के योजना के अनुसार कुछ ही दिनो मे एक नये मेहमान के आने की हलचल लगती है,और साल भर बाद एक नये मेहमान का आगमन होता है।
बस,उसके बाद क्या सब समय सब ध्यान उस नये मेहमान पर केंद्रित हो जाता है।उंसके के साथ खेलना,उठना,बैठना,उसके कपडे,शी शु। उसको प्यार करते,और उसके तुतलाते बोंल सुनते सुनते समय कैसे निकल जाता पता ही नही चलता।
इस बीच श्रीमती का हाथ कब छुट जाता है पता ही नही चलता और,रात भर बाते करना ,घुमना फिरना यह तो कब का बंद हो चुका होता है।लेकिन यह बाते दोनो के ध्यान में कभी आती ही नही।
इस तरह उम्र के तीस वे पडाव पर पहुंच जाते है।
बच्चे धीरे धीरे बडे होते है,श्रीमती उसकी देखभाल में व्यस्त,हम अपनें काम में व्यस्त किसी को किसी से शिकवा करने की फुरसत कहाँ ?
घर का लोन,गाडी का लोन उसका ईएमआई,बच्चे की जिमेंदारी,उसकी पढाई,और उसका भविष्य अपना बैक बॅलेन्स बढाने के चक्कर में अपने आप को काम में पूर्णतः झोक देते है।
बच्चे का स्कूल में अॅडमिशन होता हैं,वह धीरे धीरे बढा होने लगता हैऔर श्रीमती का समय उसका खाना,पीना पढाई स्कूल लाना ले जाना इसमें निकल जाता है।
अब तक उम्र के पैतीस वे पड़ाव पर पहुंच गए होते है,बोलने के लिए खुद का मकान गाडी और थोडा बैक बॅलेन्स भी रहता है।लेकिन फिर भी कुछ कमी महसूस होती रहती है,वह क्या समझ में नही आती,और उसे समझने के चक्कर में मन अशांत रहता है।
चिड़चिङ़ाहट़ बढ़ जाती है,जबरदस्ती घर में ऑफिस में चिल्लाना ना जाने क्या क्या...
परिनाम स्वरूप विकेंड पर एक पॅग की शुरुवात और दोनो के बिच बात चित की दरमियॉ बढ़ जाती है।
इसी तरह दिन निकलते जाते है,बच्चा बडा होता है,उसका अपना एक विश्व तैयार होता है।वह दसवी में पहुंच जाता है,और दोनों की उम्र चालीस पार।साथ बढ़ता है थोडा बैक बॅलेन्स।
एक दिन फुरसत के क्षण में पुराने दिनों को याद करते हुए वह उसे प्यार से बुलाता है।
"अरे,आ न जरा बात करते है,साथ बैठ हाथ में हाथ डालके,चलो कही बाहर चलते,घुमते बाते करते।"
उसे आश्चर्य होता है,विस्मित नज़र से देखती हैं और कहती है,"अजी,आपको भी मजाक सुझता है । अब हम चालीस पार कर .चुके है।घर में बहुत काम पडे है,वह कौन करेगा।यह कहकर वह साडी का पल्लू कमर में कसकर किचन की ओर निकल जाती है।
अब उम्र के पैतालीस वे पडाव पर पहुच चुके होते है,आँख पर चश्मा,चेहरे पर कुछ झुरिया दिखने लगती है।सफेद बाल अपना विस्तार करते है।बच्चा कॉलेज्ञ में,और बैक बॅलेन्स बढ़ता रहता है।
बच्चे की सुख समृधि के लिए उसका मंदिर जाना और इसका विक में दो बार पीना चालू रहता है।
अब बच्चे की पढाई खतम और वह अपने पैर पर खड़ा होता है,उसका अपना एक विश्व निर्माण होता है।उसे पंख निकल आते है,और एक दिन वह विदेश चला जाता है।
समय अपनी गति नही छोड़ता,अब सफेद रंग के बाल साथ छोड़ने लगते है,व़ह उसे बुदिया लग रही हो कहता है,क्योंकि अब खुद बुढा हो जाता है।
उम्र का पड़ाव पचपण से साठ की तरफ बढ़ने लगता है,अब बँक में कितना बॅलेन्स है याद नही रहता,याद रहता है दवा,दारू का टाईम,डॉक्टर की अपाईमेंट।विकेंड का कार्यक्रम कब का बंद हो चुका होता है।
लड़का बडा होकर घर में रहेगा,इस उद्देश से लिया चार पाच कमरे का घर अब बेकार लिया ऐसा लगता हैं।
"अब वह घर कब आएगा इसका इंतजार करना ही उसके बस में रहता है।"
एक दिन शाम का समय,वह अपने घंर के झुले में बैठे बैठे कुछ सोचते रहता है।श्रीमती भगवान के पास दियाबत्ती करती रहती है।अचानक फोन की घंटी बजती है,वह फोन उठाता हैं,फोन लड़के का रहता है। उधर से आवाज आती हैं,लडका कहता हैँ,"पापा मैंने शादी कर ली हैं और अब मै यही पर रहने वांला हूं,माँ को समझा देना।"
वह कहता है,अरे बेटा सुन तो मैने तेरे लिए इतना बङा मकान लेके रखा हैं,बँक में कुछ पैसा भी है।उसका मैं क्या करुंगा।लडका कहता है,पापा यह अब मेरे लिए शून्य है।मेरी मानो तो उसे वृंद्धाश्रम को दान कर दो और आप दोनो भी चले जाओ,अच्छा भी लगेगा और टाईम भी कटेंगा।इतना कहकर फोन काट देता है।उसे क्या करे समझ नही आता,वह सोचने लगता है।झुला मंद गती से झुलता?; रहता है।
वह फिर झुले पर आके बैठता है,उसकी भी दिया बत्ती खतम होती है,वह आवाज़ देता है,,
,,अरे,आ न थोडा साथ बैठते,बात क़रते,हाथ में हाथ डालके।"
वह कहती है,बस एक मिनट में आयी।यह सुनकर उसका चेंहरा आश्चयचकित हो जाता है।
उसके हृदय की स्पंदन बढ़ जाती हैं,दबे अाँसु बाहर आते है,उसमे से एक गाल पर आकर रुक जाता है,औंर आँख का तेज कम होते होते निस्तेज हो जाता हैं ।
अब वह अपना काम खतम करके,उसके पास आकर बैठती हैं औंर कहती हैं,बोलीये क्या कहना चाहते थे आप!कहाँ जाना है,क्या बात करनी है।ऐंसा हुए उसका हाथ अपने हाथ में लेती है।ठंडे हाथ का स्पर्श होता है,वह एक क्षण के लिए सुन्न हो जाती है।फिर सम्हल जाती है।उठकर भगवान के पास जाती है,अगरबती लगाकर फिर झुले पर आकर उसके पास बैठती है और कहती हैं,"बोलिये,कब कहाँ कैसे जाना है।चलो जल्दी वहा चलकर खुब बाते करेंगे हाथ में हाथ डालकर।ऐसा कहते हुए उसके भी हृदय की स्पंदन बढ़ जाती है और गर्दन झुक जाती हैl
इसलिए कहता हूँ,बँक बॅलेन्स में शून्य मत बढाओ नही तो जीवन शून्य हो जाएगा।
क्योकि,
"जीवन बहुत सुंदर है।"
