बदले से मेरे सरकार नजर आते हैं
बदले से मेरे सरकार नजर आते हैं
सब्जी वाला आया है। सब्जी लेनी है क्या ?"बालकनी में खड़े पति ने आवाज लगाई।
" नहीं रखी है ।"
कुछ देर बाद फिर से बालकनी से उन्होंने आवाज लगाई " सुधा फ्रूटस वाला खड़ा है नीचे। लेने है क्या।"
" कल ही तो लिए थे जी। रखे हैं अभी।" अच्छा ठीक है मरी सी आवाज में उन्होंने कहा।
शाम होते ही, "सामान खत्म हो गया है क्या। घर का कुछ।" "नहीं सब कुछ रखा ।"
सुबह उठते ही "दूध लाना है । बताओ कितना।"
" अरे कल ही तो इकट्ठा मंगवा लिया था 3 लीटर। रखा है आज चल जाएगा।"
" पीते नहीं हो क्या तुम सब।" " पीते हैं अब एक दिन में कितना पी ले।"
" अच्छा तुम झाड़ू लगा देना। पोछा मैं लगा देता हूं।"पतिदेव ने कहा।
यह सुन मुझे अपने कानों पर यकीन हीं ना हुआ। मैंने बड़ी हैरानी भरी नजरों से उनकी ओर देखा और कहा "आप पोछा लगाओगे।"
"तुम तो ऐसे कह रही हो, जैसे मुझे आता ही नहीं। पहले भी तो करता था ना।"
"पहले तो करते थे लेकिन........?"
"अरे यार यह लेकिन वेकिन छोड़ो। बोर होने से अच्छा है कि घर के दो काम ही करवा दिए जाए, तुम्हारे साथ। इससे एक पंथ दो काज हो जाएंगे। एक तो बैठे-बैठे तोंद निकलने का खतरा नहीं रहेगा । दूसरा हमारी श्रीमती जी की नाराजगी दूर हो जाएगी कि मैं घर के काम नहीं करवाता।"
"रहने दो जी सब समझती हूं, मैं आपकी चालाकी।"मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
आप सोच रहे होंगे कितना सहयोगी हस्बैंड है। जो आगे से आगे ही हर काम को करने के लिए पूछ रहा है। तो आप सब की गलतफहमी दूर कर दूं। जनाब यह सब अपनी लॉक डाउन में होने वाली बोरियत दूर करने के लिए कर रहे हैं। वरना इनका हाल दूसरे पुरुषों से कम नहीं।
हां, जब बच्चे छोटे थे तो हर काम में हेल्प करा देते थे। लेकिन जैसे ही बच्चे इनके कंधों तक आए। उन्होंने घर के कामों से संन्यास ले लिया। कुछ भी कहो तो बस उनका एक ही डायलॉग " सारी उम्र मैं ही करता रहूंगा क्या। बच्चे बड़े हो गए हैं। उन्हें भी सिखाओ कुछ। थक जाता हूं, पूरा दिन ऑफिस में काम करते हुए। पहले जितना काम मुझसे नहीं होता भई ।उम्र भी तो बढ़ रही है मेरी।"
"हां जी , आपकी उम्र बढ़ रही है और मैं तो जवान होती जा रही हूं । मैं भी कौन सा आराम करती हूं घर में । 24 घंटे लगी रहती हूं कोल्हू के बैल की तरह।"
"यार, बहस मत करो। समझा करो। "
ऑफिस से आने के बाद तो उनके पास वैसे ही टाइम नहीं। संडे वाले दिन अगर घर का सामान या सब्जी लाने के लिए कह दिया तो साफ-साफ मना करते हुए कहते "मैं नहीं जाऊंगा। जो रखा है वह बना लो। संडे का दिन ही तो मिलता है। आराम करने के लिए और उसमें भी। तंग मत करो। बहस मत करो।" यही सुनने को मिलता।
उनके हर बार के ड्रामा को देखकर हमने तो कहना ही छोड़ दिया था। हां, अपने दोनों सिपाही यानी बच्चों को तैयार कर लिया था। हर काम में साथ देने के लिए।
बायगॉड। लॉक डाउन ने तो फिर से हमें, हमारा वही खोया हुआ सहयोगी।
वैसे लॉक डाउन की घोषणा सुन। उन्होंने भी घर में घोषणा कर दी थी कि अब मैं खूब आराम करूंगा। कोई मुझे तंग नहीं करेगा। लेकिन आराम या सोना भी कोई कितने घंटे कर सकता है। चौबीसों घंटे तो कोई सो नहीं सकता।
जनाब सो कर, टीवी देख, फोन पर बातें कर, बालकनी के चक्कर काट, सब तरह से 2-3 दिन में ही थक गए। अब तो कभी मेरे साथ कुछ करवाते हैं। कभी बच्चों के साथ खेलते हैं । हां रामायण, महाभारत व शक्तिमान देख फिर से अपना बचपन जी रहे हैं हम सब। इस लॉकडाउन ने हमें कुछ परेशानी दी है तो कुछ खूबसूरत पल भी दिए अपनों के साथ बिताने के लिए।
दोस्तों माना वह समय सभी देशवासियों के लिए बहुत संकट भरा था। लेकिन सभी इससे अपने अपने स्तर पर लड़ रहे थे। हम सभी ने खुद को घर में बंद कर, अपनी जरूरतों को सीमित कर, साफ सफाई का ध्यान रख। इस लड़ाई को जीतने में अपना छोटा सा सहयोग दिया।