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Madhu Vashishta

Inspirational Others

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Madhu Vashishta

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बदलाव

बदलाव

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गायत्री जब गांव से जब नौवीं क्लास में हमारे कॉन्वेंट स्कूल में आई थी , तो काली सी और लंबे दांतों वाली लड़की जिसके कि कोई पास भी नहीं बैठना चाहता था। हम सब शहरों में रहने वाले स्वत: ही उस ग्रामीण लड़की को हेय नजर से देखते थे। लंच टाइम में जब सब अपना टिफिन खोलते थे तो उस ऐ.सी कमरे में उसकी रोटी अचार और सब्जी की महक हम सबको उससे और दूर कर देती थी। हम सब के टिफिन में सैंडविच मैगी या कुछ और ही रखा होता था यूं रोटी सब्जी खाना हमारी आदत नहीं थी। घुटनों से नीचे तक इतनी लंबी स्कर्ट पहन के आना, लंबे बालों में तेल लगाना यह सब कुछ हमको उससे बहुत अलग कर देता था। उस कान्वेंट स्कूल में जहां कि टीचर्स भी बहुत अप टू डेट रहते थे, और जहां इंग्लिश में बात करना अनिवार्य ही था तो वहां वह हिंदी भी ढंग से नहीं बोल पाती थी। । उस स्कूल में 4 साल उसने हीनता और सब की उपेक्षा झेलते हुए कैसे बिताई ना हमें और ना किसी टीचर्स को उस के बारे में जानने की इच्छा थी। वह अपनी बुआ के घर रह कर पढ़ाई कर रही थी।


उस दिन मेट्रो में बाई चांस जब मेरी नजर पास में बैठी एक श्यामल सी सुंदरी, लंबे बाल वाली लड़की पर पड़ी तो मैं गायत्री के इस रूप को देखकर हैरान रह गई। हम दोनों ने मुस्कुराते हुए एक दूसरे को हेलो किया। हम दोनों ही नोएडा की एक कंपनी में वॉक इन देने के लिए जा रहे थे। यूं ही बातें चली तो उसने बताया कि उसका स्कूल का अनुभव इतना बुरा रहा कि वह कॉलेज में भी किसी के साथ एडजस्ट नहीं हो पाई और सारा खाली समय अपनी कंप्यूटर लैब में ही बैठकर बिताती थी। हालांकि कॉलेज में किसी ने भी उसकी उपेक्षा तो नहीं की थी लेकिन वह सहज रूप से किसी की दोस्त भी नहीं बन पाई थी। एक बार कंप्यूटर में एक कंपटीशन था जिसके लिए कि सब फॉर्म भर रहे थे। गायत्री ने यह सोच कर कि वह जब इसमें सिलेक्ट नहीं होगी तो बिना वजह ही लोगों की हंसी का कारण बनेगी, उसने यह फॉर्म नहीं भरा। तभी एक लड़का राहुल जो अक्सर कंप्यूटर लैब में ही बैठकर पढ़ता रहता था उसने गायत्री के पास आकर कहा कि अगर तुम कोई कंपटीशन दे ही नहीं सकती तो सारा दिन लैब में करती क्या हो? यूं ही उसके मुंह से निकल गया मैं इतनी होशियार नहीं हूं अगर क्लियर ना करूं तो लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे? राहुल ने हंसते हुए कहा मैं बी.टेक करना चाहता था और कम नंबरों की वजह से अच्छे कॉलेज में एडमिशन नहीं पा सका। अगले साल मैं फिर कोशिश करूंगा। तब तक समय बर्बाद ना हो सिर्फ इसलिए ही मैं इस कॉलेज में आया हूं। मुझे समझ नहीं आता हम हमेशा क्यों कोशिश करते हैं कि हर काम में लोग हमारी तारीफ ही करें । तुम क्या पूरी जिंदगी यही सोचकर पीछे हटती रहोगी कि कहीं मैं फेल ना हो जाऊं? अगर हार ही माननी है तो कोशिश करके तो मानो। मालूम नहीं उसके कहने में ऐसा क्या असर था कि गायत्री ने कंप्यूटर्स के उस कंपटीशन में हिस्सा भी लिया और टॉप भी कर दिखाया। उसके बाद में उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा अच्छे नंबरों से बी.सी.ए करने के बाद शाम के कॉलेज से एम.बी.ए करने का फैसला किया और यूं ही वह नौकरी के लिए इंटरव्यू देती रहती थी। आज भी इसी सिलसिले में ही वह नोएडा जा रही थी। गायत्री ने बताया कि राहुल के कहने के बाद जब उसने आत्ममंथन किया और सिर्फ अपने पर ही ध्यान देना शुरू किया। जब से उसने लोगों के हंसने की परवाह करनी छोड़ दी तो वास्तव में उसने पाया कि लोगों ने भी उसको कुछ कहने की परवाह छोड़ दी थी। कॉलेज में कुछ उसके दोस्त भी बने और राहुल को दूसरे साल एनआईटी कुरुक्षेत्र में एडमिशन भी मिल गया था। अब राहुल बहुत खुश था। वह कॉलेज तो छोड़ कर चला गया था लेकिन शायद उसे व्यवहार करना सिखा गया था। धीरे-धीरे उसने खुद ही अपने आप में बदलाव लाकर हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की कोशिश करी। आज उसके चेहरे पर बेहद आत्मविश्वास झलक रहा था।


पाठकगण गायत्री आज भी मेरी बेस्ट फ्रेंड है उसका आत्मविश्वास देखकर मुझे बहुत खुशी होती है लेकिन यह भी सच है कि स्कूल में उससे किए गए व्यवहार के प्रति कई बार मुझे आत्मग्लानि भी होती है। 


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