बचपन
बचपन
पेड़ के पास एक बालक बैठा रो रहा था। तभी वहाँ से एक बाबा भिक्षा माँगते हुये गुज़रे। वो थोड़ा रूके और पास जाकर बोलें बेटा मैं कयी दिनों से भूखा हूँ मैं भिखारी हूँ अगर तुम कुछ पैसा या भोजन दे दो ईश्वर तुम्हारा भला करेंगे।
आँसू पोछते हुयें बालक ने अपने बैग से टिफ़िन निकाली और बोला बाबा मेरे पास पैसे नहीं हैं टिफ़िन में जो भी हैं आप खा लिजिये। बाबा जी ने पेड़ के नीचे हीं बैठकर टिफ़िन कर लिया और पानी के लिये इधर उधर देखने लगे। बालक ने तुरन्त पानी की बोतल बैग से निकाला और बाबा जी को दिया।
बाबा जी ने बोतल का सारा पानी पी लिया।
फिर बाबा जी ने बालक को धन्यवाद बोला और जाने के उठ खड़े हुए।
जाते जाते बाबा जी ने बालक से पूछा तुम अकेले यहाँ बैठे रो क्यू रहें थे।तुम्हे देख कर लगता है जैसें तुम स्कूल से भाग कर आयें हो या गयें नहीं हो। आख़िर क्या बात हैं मुझे बताओं शायद में तुम्हारी मदद कर पाऊँ। भले ही मैं भिखारी हूँ पर हूँ तुम से उम्र में बहुत बड़ा।
बाबा मैं आज स्कूल नहीं गया।और अब कभी जाऊँगा भी नही।
मुझे स्कूल बहुत अच्छा लगता है।
हमारे विद्यालय के सभी शिक्षक बहुत मन से और प्यार से और मेहनत से पढ़ाते हैं। मेरे बहुत से मित्र भी हैं। बहुत अच्छा लगता हैं मुझे विद्यालय में। इतना कह कर वह बालक मुस्कुराने लगा।
बाबा ये बातें सुनकर पेड़ के नीचे बालक के पास बैठ गयें और प्यार से बोले बेटा जब विद्यालय तुम्हे अच्छा लगता हैं। सभी शिक्षक मन से मेहनत से पढ़ाते हैं,तुम्हारे कई मित्र भी है तुम्हे विद्यालय भी अच्छा लगता हैं फ़िर तुम विद्यालय के समय मे विद्यालय ना जाके यहाँ कैसें बैठे रो रहें हों।मुझे समझ नहीं आ रहा है कृपया पूरी बात बताओं।
बालक ने कहाँ मैं बहुत मेहनत करता हूँ पढ़ाई के
लियें पूरा टाइम स्कूल में पढ़ता लिखता हूँ पर ऐसा लगता है मेरी पुस्तकें मुझ से ख़फा हैं जब भी कक्षा में पढ़ने के लिये शिक्षक खड़ा करतें हैं मैं कुछ पढ़ ही नहीं पाता।
जब लिखता हूँ सब गलत हो जाता हूँ।
हमेंशा टेस्ट में जीरो नम्बर आते हैं जबकि मेरे सारे मित्र खूब शाबाशी और ईनाम पाते हैं। इसलिये मैंने सोच लिया हैं अब मैं कभी स्कूल नहीं जाऊँगा।
मैं इसलिए रो रहा था क्योकि मेंरे शिक्षक बहुत अच्छे हैं मेरे मित्र,मेरा विद्यालय,अब सब मुझ से ज़ुदा हो जायेंगे ।आज जाके घर पर भी बोल दूँगा अब मैं स्कूल कभी नहीं जाऊँगा।
बाबा जी ने बालक से पूछा घर पर पढ़ते थे कभी या नहीं।
बालक ने कहाँ नहीं।
घर पर तो सिर्फ खेलता और टीवी देखता हूँ पर बाबा जी मै विद्यालय में सिर्फ पढ़ता लिखता था।
पर मुझे लगता है मेरी सारी पुस्तकें ख़फा हैं मुझसे ये मुझे पढ़ने देना नहीं चाहतीं। मैं इतनी मेहनत करता हूँ पढ़ाई के लिये पर फिर भी पढ़ नहीं पाता।
बाबाजी ने मुस्कुराते हुयें कहाँ अच्छा बालक ये बताओं
तुम कह रहे हो पुस्तकें ख़फा हैं नाराज़ हैं।
क्या तुमने पुस्तकों को मनाया ?
क्या तुमने यें जानने की कोशिश की पुस्तकें ख़फा क्यू हैं ?
बालक ने उत्तर दिया नहीं।
मैं कैसे पता लगाऊ ये मेरी पुस्तकें बोलतीं नहीं है बस बोलना सीखाती हैं।
बाबा ने कहाँ मैं सब जान गया हूँ कि समस्या क्या हैं।
अब मैं जो पूछू उसे बताओं ।
ये बताओं बालक आप जहाँ रहते हो उसे क्या कहतें हैं ?
घर।
तुम्हारी पुस्तकें कहाँ रहती हैं ?
बैग में।
तुम्हारी पुस्तकों का घर कहाँ हैं ?
बैग।
अच्छा अब ये बताओं अगर आपकों आपका कोई परिचित मित्र आपकों आपके ही घर बन्द कर दे और दूसरें दिन या कयी दिनों के बाद अपने काम के लिये आपको रिहा करे और सोचें आप उसके काम आयें क्या ये सम्भव हैं ?
आप रिहा होंने के बाद उस मित्र का क्या करोगे ?
बालक ने उत्तर दिया पहली बात मैं बिमार हो जाऊँगा और अगर थोड़ा भी सही रहा उस मित्र से रिश्ता खत्म कर लूँगा। ये भी हो सकता हैं मै उसकी पिटाई भी कर दूँ।
बाबा जी मुस्कुराते हुए बोले बेटा बस यही वज़ह हैं जो तुमने कहाँ पुस्तकें नाराज़ हैं।
नाराज़ इसलिए है क्योकि बैंग तुम केवल स्कूल में खोलते हो। हर समय पुस्तकों को बैंग में कैद रखते हो।
घर पर भी तुम्हे लगभग कुछ घन्टे पढ़ना चाहिए।
छुट्टी होने पर भी पढ़ाई घर पर पूरी कर लेनी चाहिए पर तुम सिर्फ पुस्तको को स्कूल में ही बैग से निकालते थे जिससे पुस्तकें तुम से थोड़ी ख़फा थी पर अब तुम इन्हे मना लो अब भी ज्यादा देर नहीं हुई है स्कूल जाओ गुरूओं को प्रणाम कर देरी के लिए क्षमा मांग लेना और पुस्तकों को मित्र बनाकर मन से पढ़ना स्कूल में भी और घर पर भी फिर सब ठीक हो जाएगा।
मेहनत से मन लगाकर ख़ुशी खुशी पढ़ना तुम्हे पढ़ना आ जायेंगा।
बालक ने सर्वप्रथम बाबा जी को प्रणाम करतें हुयें आशीर्वाद लिया और स्कूल की ओर तेज गति से ख़ुशी-ख़ुशी चला गया।
