बचपन
बचपन
आज बड़े दिनों बाद अपने पापा के साथ बाजार घूमने आयी नन्ही अक्षिता की खुशी का ठिकाना नहीं है। बाजार में त्यौहार के चलते लगी आकर्षक लाईट उसे मोहित व विस्मित कर रही है।
की तभी उसकी नजरें सड़क किनारे फुटपाथ पर एक खिलौने बेचने वाली पर अटक जाती है। उसके पापा भी उसकी मंशा जान उसे उस खिलौने वाली के समीप ले जाकर। उसे गुड़िया को कोई सुंदर खिलौना देने का इशारा करते हैं।
उनका इशारा पाते ही खिलौने वाली उसे एक एक कर कई खिलौने दिखाती है पर अक्षिता को तो उसी के बच्चे की गोद में रखा, वो नन्हा हाथी ही पसंद आता है।
और वह अपने पापा से उसे ही खरीदने की जिद करने लगती है। पर उसकी मंशा जान अब वह खिलौनेवाली और स्वयं उसके पापा भी पेशोपेश में पड़ जाते है कि तभी वो अक्षिता के हमउम्र बच्चा, जो अब तक खामोश था चुपचाप अपना खिलौना अक्षिता की ओर बड़ा देता है।
जिसे पाकर अक्षिता तो खुशी से झूम उठती है पर उसके पापा आश्चर्यभरी निगाहों से उस बच्चे की ओर देखते है।
यह देख वो खिलौनेवाली अपने बच्चे के सर पर, अपना दुलार भरा हाथ फेरते हुए कहती है। "क्या देखते हो साहब, गरीब का बच्चा है ना शायद इसलिए जल्दी सयाना हो गया है।"
