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Vimla Jain

Drama Action Children

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Vimla Jain

Drama Action Children

बचपन की सुहानी होली

बचपन की सुहानी होली

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आज होली है। तो बचपन की होली की सुहानी शाम की ही बात कर लेते हैं ,

बचपन में हमारी टोली के सब बच्चे बाद में बड़े हुए थे, तब सब युवा इकट्ठे होकर के शाम के टाइम में होली जलाने के लिए सारी तैयारियां करते थे ।

रोज रोज शाम को चार-पांच दिन तक गोष्ठियों चलती थी कि इस बार ऐसे करेंगे, इस बार ऐसा करेंगे, लकड़ी यहां से लाएंगे, सब जलाने का सामान, पतंग बड़ा डंडा ऐसा करेंगे, 

कहीं-कहीं से लकड़ियां तोड़ के लाई जाती, किसी किसी के घर से पीछे से, कहीं से पतंगे आती, कहीं से पुराना पीपा आता, किसी के घर से नाश्ता आता, 

और सारी मंडली होली जलाने वाले दिन शाम से ही जलाने वाली जगह के चारों तरफ इकट्ठी हो जाती।

खूब धमाल करते खूब गाना बजाना और मस्ती और पीपे का ढोल बजाते। कोई नाश्तालाता, कोई मस्ती करता ,ऐसे रात के 9,10 बजे तक चलता रहता ।

फिर होली जलती। होली जलने के बाद भी रात को सब वहां बैठे रहते। और दूसरे दिन की सुबह की प्लानिंग करते। कि कल होली कैसे खेलेंगे, किसको बकरा बनाएंगे। किसको रंगेंगे वह दिन भी क्या दिन थे। वे सुनहरी शाम आज भी याद आती है। हमारी टोली में तो हम भाई-बहन हम साथ थे और बहुत सारे दोस्त हैं हमारे ।अब तो बच्चे वैसी होली खेलते ही नहीं। ऐसी मस्ती करते ही नहीं ।कहां गई वह मस्तियां कहां गई वह होली ।अब तो सब फॉर्मेलिटी हो गई है। आज सुबह जब मैं भाई साहब को हैप्पी होली कर रही थी तब हम यह सब याद कर रहे थे और आज होली है तो सब वापस याद आ गया



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