बच्चे आँखों देखा सीखते है
बच्चे आँखों देखा सीखते है
हमारा परिवार मूर्ति पूजा में विश्वास करता है। ये विश्वास पीढ़ियों से चला आ रहा है। बचपन में, मैं अपनी दादी और कभी अपने पिताजी के साथ मंदिर जाता था। बड़ा होने के बाद अकेला और शादी के बाद पत्नी के साथ जाता था। पूजा के पैदा होने के बाद, वो भी हमारे साथ घर के पास हनुमान मंदिर में जाने लगी। वो भी हमारी तरह ही वहां फर्श पर आँखें बंद कर बैठ जाती थी। उसके लिये हनुमानजी यानि कोई लाल या केसरिया रंग में रंगा हुआ इंसान था।
पेशे से मैं एक मरीन इंजीनियर हूँ। उन दिनों मैं भारतीय नौवहन निगम मुंबई के साथ कार्यरत था। घर पर छुट्टियाँ बिताने के बाद फरवरी १९८५ के आखिरी सप्ताह में मुझे बम्बई रिपोर्ट करना था। इस बार मेरे साथ मेरी पत्नी मंजू और बेटी पूजा भी ज्वाइन करने वाले थे। हम तीनों २५ फरवरी को जयपुर से रवाना होकर २६ फरवरी की सुबह बम्बई पहुंचे। जैसे ही हमारी गाड़ी बम्बई सेंट्रल रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहुंची, पूजा जोर जोर से चिल्लाने लगी।
"मम्मी उधर देखो, एक साथ कितने सारे हनुमानजी दौड़ रहे है"
उसने इतने सारे कुली, वो भी सभी लाल कपड़ों में पहली बार देखे थे।
मैंने कलकत्ता में २ मार्च १९८५ को अपना जहाज “विश्व आशा” बतौर सेकंड इंजीनियर ऑफिसर ज्वाइन किया। कलकत्ता से कोचीन और फिर ४ महीने का रसिया का ट्रिप, वापस कलकत्ता आने में करीब ६ महीने लग गये। कलकत्ता में मंजू और पूजा ने साईन ऑफ कर दिया और वापिस जयपुर आ गये। मुझे छुट्टी मिलने में २ महीने और लग गये।
जब मैं जयपुर पहुंचा, उन दिनों वहां पर पूजा की नानीजी भी आयी हुई थी। पूजा उनके साथ बहुत खुश रहती थी। नानीजी भी पास वाले मंदिर में प्रतिदिन अपनी पूजा अर्चना के लिए जाती थी। शुरू में पूजा भी ख़ुशी ख़ुशी उनके साथ भाग जाती थी। धीरे धीरे नानीजी के साथ नियम से रोज मंदिर जाना पूजा की दिनचर्या में शामिल हो गया। अब वो सिर्फ मंदिर ही नहीं जाती थी बल्कि उनकी तरह ही बैठना, जल चढ़ाना, ढोक लगाना आदि सब सीख गई थी। कुछ दिनों के बाद नानीजी वापिस अपने गाँव चली गई।
ये घटना नानीजी के जाने के २ दिन बाद घटी। एक दिन पूजा घर से गायब थी। सभी ने हर जगह ढूंढ लिया, मगर पूजा कहीं नहीं मिली। इतने में ना जाने कैसे, लता मौसी को ख्याल आया। लता बोली,
"सब लोग ठहरो, मुझे अंदाजा है पूजा कहाँ हो सकती है"
वो दौड़ती हुई उसी मंदिर में पहुंची, जहाँ पूजा नानीजी के साथ प्रतिदिन जाती थी। पूजा ने अपना सर चुन्नी से ढक रखा था और दोनों हाथ जोड़कर आँखें बंद किये ठाकुरजी के सामने बैठी थी। लता उसको लेकर घर आयी | मंजू ने पूजा से पूछा, "मंदिर में अकेली क्यों गयी थी ?"
पूजा बोली, "नानीजी भी तो वहां हर रोज जाती थी, फिर मैं क्यों नहीं?"
मुझे भी अपनी रोज की पूजा करनी थी। पूजा के उत्तर ने घर के सभी सदस्यों को निरुत्तर कर दिया था।