Yogesh Suhagwati Goyal

Inspirational

5.0  

Yogesh Suhagwati Goyal

Inspirational

जीवन की सार्थकता

जीवन की सार्थकता

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अचानक आँखें खुल गई, होश आ गया। यूं ही भागा जा रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे राजनीति, मंत्री पद, विधान सभा, चुनाव और वोटों के पीछे भागने में ही ज़िंदगी कट जायेगी। ज़िंदगी ने ऐसा झटका दिया कि हर एक चीज आँखों के सामने घूम गयी। और उस दिन एहसास हुआ कि ज़िंदगी भागते रहने का नाम नहीं है। अभी और भी कितना कुछ करना बाकी है। माता पिता के साथ कुछ वक़्त बिताना है। नाती पोतों के साथ आइसक्रीम खाने जाना है। पत्नी को अमेरिका और यूरोप घुमाने ले जाना है। बहू और बेटे के साथ कुछ वक़्त बिताना है। कहने का मतलब ये है कि जितनी भी ज़िंदगी बची है, अब उसे अपनों के साथ ज़िन्दादिली से जीना है। मेयो हार्ट क्लिनिक जयपुर के प्राइवेट वार्ड के बिस्तर पर, यही सोचते सोचते एमएलए साहिब की आँख लग गयी।


जब तक इंसान का मौत से सामना नहीं होता,

उसे जीवन की अहमियत का एहसास नहीं होता

और जब इसकी अहमियत का एहसास होता है,

जीवन का एक बड़ा हिस्सा गुज़र चुका होता है


इस कहानी का आगाज सन १९८४ में हुआ। श्री रणविजय सिंह (आरवी) ने राजस्थान विश्वविद्यालय के अध्यक्ष पद का पहला चुनाव लड़ा। किस्मत से उन्हें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का टिकिट मिल गया। भारी मतों से विजयी होकर आरवी ने अपने राजनीतिक जीवन का आगाज किया। आरवी का जन्म सन १९६२ में जयपुर के एक समृद्ध राजपूत परिवार में हुआ। पढ़ने लिखने में कोई खास रुचि नहीं थी। लेकिन कभी फेल होने की नौबत भी नहीं आई। बचपन और फिर यौवन मज़े में गुजरा। १९ साल की उम्र से ही आरवी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और २२ साल की उम्र में राजस्थान विश्वविद्यालय के अध्यक्ष बन गये। २५ साल की उम्र में शादी हो गयी और राजनीति के साथ साथ ग्रहस्थ जीवन भी शुरू हो गया। और साथ ही शुरू हो गया दूसरों से आगे निकलने का सफर। 


राजस्थान विश्वविद्यालय से पढ़ाई खत्म करने के बाद से ही राजनीतिक गतिविधियाँ बहुत बढ़ गयी। पार्टी के बड़े बड़े नेताओं से मिलना जुलना, चुनाव प्रचार में साथ रहना, कार्यकर्ताओं को जोड़कर रखना, और सबसे बड़ा काम अपनी पार्टी का वोट बैंक बढ़ाना। इन्हीं के साथ साथ पार्टी में आरवी का कद भी बढ़ता रहा। किस्मत ने साथ दिया और १९९१ में जयपुर नगर निगम के अध्यक्ष बनने का मौका मिला। और फिर आये १९९३ के विधान सभा चुनाव। आरवी कब से इन पर अपनी आँख गड़ाये बैठे थे। थोड़ी सी मशक्कत से पार्टी का टिकिट भी मिल गया और आरवी ने अपना पहला विधान सभा चुनाव लड़ा। भारी मतों से विजयी होकर आरवी साहब एमएलए बन गये और विधान सभा पहुँच गये। 


१९९३ से लेकर २०१३ तक, आरवी ने पाँच बार एमएलए का चुनाव लड़ा । जिनमें तीन बार जीत और दो बार हार मिली। २०१३ में तो आरवी को मंत्री बनने की पूरी उम्मीद थी लेकिन बदकिस्मत रहे, चुनाव हार गये। और फिर आये २०१८ के विधान सभा चुनाव । ऊपर वाले नेताओं की नज़र में आरवी की अच्छी धाक थी । और साथ ही अपने क्षेत्र के कार्यकर्ताओं पर भी अच्छी पकड़ थी। यूं तो वक़्त के साथ साथ चुनावों का खर्चा भी बहुत बढ़ गया था लेकिन आरवी को चुनावी खर्च की कोई चिंता नहीं थी । वो बेहद मजबूत आर्थिक स्थिति में थे। आरवी साहब अब करीब ५६ साल के हो चले थे। शारीरिक तौर पर उनको उच्च रक्त चाप और मधुमेह की शिकायत रहने लगी थी। लेकिन राजनीति का भी एक अलग ही नशा है। मन में मंत्री बनने की चाहत ने पीछा नहीं छोड़ा और फिर एक बार कमर कस ली।


श्री रणविजय सिंहजी ने अपने पूरे तन मन धन से ये चुनाव लड़ा। और फिर चुनाव नतीजों का दिन, यानि ३० अक्टूबर २०१८ की सुबह आई। आरवी अपनी सफलता को लेकर आश्वस्त थे । फिर भी सुबह से ही मन में व्याकुलता भी थी। वोटों की गिनती सुबह ८ बजे शुरू हुई। सुबह १० बजे तक, आरवी अपने निकटतम प्रतिद्वंदी से ११२२ वोटों से आगे चल रहे थे। परिणाम आशा के अनुकूल नहीं आ रहे थे। आरवी का रक्त चाप धीरे धीरे बढ़ रहा था। १२ बजे तक की गिनती में आरवी अपने निकटतम प्रतिद्वंदी से ५०८ वोटों से पीछे हो गए। कांटे की टक्कर चल रही थी। और साथ ही आरवी का रक्त चाप लगातार बढ़ रहा था। रक्त चाप गिराने की गोली भी असर नहीं कर रही थी। करीब २ बजे तक की गिनती में आरवी ४८०० वोटों से पीछे हो गए। गिनती को अब ज्यादा वोट नहीं बचे थे। आरवी को अब चुनाव में अपनी हार साफ नज़र आ रही थी। अचानक उनको दिल के पास असहनीय दर्द हुआ जो उनके बाएँ कंधे से लेकर हाथ में आ रहा था। २१ डिग्री के तापमान के कमरे में भी आरवी पसीने से लथपथ हो गये और वहीं ज़मीन पर गिर पड़े। पास खड़े एक जानकार ने बताया कि उनको दिल का दौरा पड़ा था। 


उनके साथी और कुछ कार्यकर्ता आरवी को वहीं से सीधे मेयो हार्ट क्लिनिक ले गये, जहां डाक्टरों ने तुरंत उनका उपचार शुरू कर दिया। डाक्टरों के अनुसार आरवी सही वक़्त पर अस्पताल आ गये। थोड़ी और देर हो जाती तो कुछ भी हो सकता था। ठीक से होश आने में करीब २४ घंटे लगे और जब तक आरवी अपनों से मिल पाते, बात कर पाते, करीब ४८ घंटे गुज़र गये। अस्पताल से छुट्टी मिलने में सात दिन लग गये। छुट्टी देने के साथ ही डाक्टरों ने दवाइयों और हिदायतों की एक लंबी सूची थमा दी। साथ ही ज्यादा भाग दौड़, स्ट्रैस देने वाला काम और परेशानीयों से दूर रहने की सलाह दी।


पिछले सात दिनों में, मेयो हार्ट क्लिनिक के बिस्तर पर निढाल पड़े हुए, चारों तरफ मशीनों से घिरे हुए, शरीर को तारों और नलीयों से लिपटे हुए, डाक्टर और नर्सों की दया पर जीवन, आरवी ने जब अपने बेहद करीब से मृत्यु के देवता को वापिस जाते हुए देखा, तब उसे ज़िंदगी की अहमियत का एहसास हुआ । राजनीति और अपने मौकापरस्त प्रशंसकों के कोलाहल से दूर, प्राइवेट वार्ड के शांत कमरे में आरवी को ज़िंदगी के सही आंकलन का मौका मिला। एक समय था जब वो राजनीति के क्षेत्र में तेजी से ऊपर उठ रहा था। लोगों की नजर में वो एक उभरता हुआ सितारा था, उसकी जिंदगी सफलता का एक प्रतीक था। लेकिन आज खुद को अस्पताल के इस बिस्तर पर बेजान पड़ा हुआ देखकर अजीब सा एहसास हो रहा था। वो जीवित तो था लेकिन मृत जैसा महसूस कर रहा था। उसने अपना राजनीति का केरीयर आगे बढ़ाने के लिए पूरी जिंदगी कड़ी मेहनत की, लेकिन खुद को खुश करने के लिये या खुद के लिए समय निकालना जरूरी नहीं समझा। जब उसे कामयाबी मिली तो उसने बेहद गर्वित महसूस किया, लेकिन आज मौत को सामने खड़ा देखकर सारी उपलब्धियाँ फीकी पड़ गयी। 


जीवन के इस मोड़ पर पहुँचकर आरवी ने महसूस किया, वो अपने पैसे या शक्ति से अपनी गाड़ी का ड्राइवर ख़रीद सकता है, अपनी सेवा के लिये जितने चाहे नौकर रख सकता है, एश और आराम का सामान ख़रीद सकता है। लेकिन यहाँ आने के बाद कोई दिल से उसको प्यार करे, उसकी सेवा करे, यह चीज वो पैसे से नहीं ख़रीद सकता। यूं भी सारी जिंदगी जो पैसा कमाया, कोई उसे साथ लेकर नहीं जाता। अगर कोई कुछ साथ लेकर जाता है तो वे हैं यादें । यादें और उनसे जुड़ा प्यार ही एक मात्र ऐसी चीज है जिन पर उस इंसान का हक़ होता है। ये यादें ही तो होती है जिसके सहारे वो सुकून की मौत पा सकता है।


जीवन को अंत तक खूबसूरत बनाये रखने के लिए उसे अपनों का सहारा चाहिये। अब उसे राजनीतिक महत्वाकांक्षा को छोड़कर, खुद के लिए समय निकालना चाहिये। उसे खुद की खुशी के लिये जीना शुरू करना चाहिए। उसे अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना चाहिये। हमेशा से आरवी की चाहत थी कि वो अपने राजनीति के अनुभवों को कागज़ पर उतारे। वक़्त आ गया था जब उसे अपनी पुरानीअपने बीते हुए जीवन के आंकलन के बाद, आरवी को समझ आ गया था कि बचे हुए जीवन में उसे और नहीं मरना, अब उसे जीना है। बाकी ज़िंदगी के हर पल को खुशी से जीना है।  चाहत को पूरा करना चाहिये।



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