Yogesh Suhagwati Goyal

Inspirational

5.0  

Yogesh Suhagwati Goyal

Inspirational

शिकायतें या शुक्रिया

शिकायतें या शुक्रिया

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राजस्थान राज्य के शिवदासपुर ज़िले का एक छोटा सा गाँव अलीपुर, इस कहानी के नायक श्री केशव पंडित इसी गाँव के निवासी थे। पंडितजी नकारात्मक प्रवृत्ति के इंसान थे। उनकी ज़ुबान से कभी भी किसी के लिये शुक्रिया नहीं निकलता था। हर बात में नकारात्मकता, हमेशा कोई ना कोई शिकायत और हरदम गुन गुन, गुन गुन करते रहते थे। पीठ पीछे, गाँव के लोग उन्हें गुन गुन पंडित के नाम से बुलाते थे। पंडितजी के परिवार में उनकी पत्नी श्रीमती कला देवी और आठ साल का बेटा सोनू थे। पंडितजी का अपना एक छोटा सा घर था। पंडितजी की दुकान, यानि पंडिताई, बस यूं कहो कि घिसट रही थी। यूं भी अलीपुर की कुल आबादी लगभग २,५०० की थी। गाँव में पूजा पाठ के ज्यादा मौके नहीं होते थे। इसीलिए पंडितजी को कभी कभी आसपास के गाँवों में भी जाना पड़ता था। पंडितजी को ईश्वर से हमेशा शिकायत रहती थी कि इतने पूजा पाठ के बावजूद भी वो उन पर मेहरबान क्यों नहीं है। बाकी और सम्पन्न लोगों की तरह, वो भी सम्पन्न क्यों नहीं हैं ? उन्हें अपनी रोज़मर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिये इतना क्यूँ भटकना पड़ता है ?


पंडितजी की पंडिताइन, श्रीमती कला देवी एक अच्छी गायक होने के साथ, हारमोनियम बजाने में भी प्रवीण थी। कभी कभी उनको भी भजन गायिकी और सुंदर काण्ड पाठ के कुछ कार्यक्रम मिल जाते थे। कुल मिलाकर थोड़ी मुश्किल से ही सही, पंडितजी के परिवार का गुजर बसर हो रहा था। एक दिन पंडिताइन के सीने में ज़ोर का दर्द उठा। पंडिताइन की हालत जाँचकर, गाँव के वैद्यजी ने अपने हाथ खड़े कर दिये और तुरंत किसी बड़े अस्पताल में ले जाने की सलाह दी। अलीपुर से शिवदासपुर का रास्ता तीन घंटे का था। घर से शिवदासपुर के बड़े अस्पताल पहुँचने में चार घंटे लग गये। पंडिताइन का दिल, उपचार का इतना लंबा इंतज़ार बर्दाश्त नहीं कर पाया और अस्पताल पहुँचते पहुँचते उसने धड़कना बंद कर दिया। पंडिताइन की जीवन लीला समाप्त हो गयी और पंडितजी के जीवन में अचानक ही अंधेरा छा गया।


पंडितजी का बेटा सोनू अपनी माँ का चहेता था। शायद इसी वजह से, पिता की हर संभव कोशिश के बावजूद, माँ की मौत को भुला नहीं पा रहा था। माँ की याद में वो घंटों रोता रहता था। उसकी दिनचर्या काफी बदल गयी थी। उसका स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा था। पंडिताइन को शांत हुए अभी मुश्किल से डेढ़ महीना हुआ था और सोनू ने खाट पकड़ ली। सोनू की बीमारी के कारण पंडितजी का घर से निकलना मुश्किल हो गया। इसका सीधा असर पंडितजी की आमदनी पर हुआ। उनकी आमदनी लगातार घटती चली गयी जबकि सोनू की बीमारी ने घर के खर्चे बढ़ा दिये थे। गाँव के वैद्यजी ने सोनू की बीमारी को पकड़कर रखा था, यानि बढ्ने नहीं दे रहे थे लेकिन ठीक भी नहीं कर पा रहे थे।


एक महीने के लगातार उपचार के बावजूद भी जब सोनू ठीक नहीं हुआ तो पंडितजी उसे शिवदासपुर के बड़े अस्पताल ले गये। शहर के अस्पताल का ख़र्चा भी बहुत था। फिर भी पंडितजी अपनी कोशिश में कोई कमी नहीं छोड़ रहे थे। अब जीवन में सोनू उनका एक मात्र सहारा था। बड़े अस्पताल में पहले तो डाक्टरों ने सारी जाँचें की और उसके बाद इलाज शुरू किया। अस्पताल के पास ही एक धर्मशाला थी। पंडितजी सोनू के साथ उसी में रहते थे। जैसे तैसे उन्होने एक महीना निकाला। मगर यहाँ भी उपचार से कोई खास फायदा नहीं हुआ। या फिर यूं कहूँ कि सोनू की हालत ज्यों की त्यों बनी हुई थी तो ज्यादा ठीक होगा। अब धीरे धीरे पंडितजी के सब्र का बांध टूट रहा था। ईश्वर से उनकी शिकायतें भी दिन प्रतिदिन बढ़ रही थी। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आगे और क्या करें ?


दोपहर का वक़्त था। खाना खाने के बाद सोनू की आँख लग गयी। और दिन तो पंडितजी भी थोड़ी देर के लिए लेट जाते थे लेकिन आज उनका मन ज्यादा ही अशांत था। धर्मशाला में साथ रह रहे सहयात्री को बोलकर, पंडितजी थोड़ी देर को बाहर निकल आये। पास ही एक बड़ा पंडाल लगा हुआ था और उसके अंदर एक स्वामीजी रामकथा सुना रहे थे। पंडितजी का मन तो नहीं था फिर भी ना जाने क्यों, कथा सुनने बैठ गये। वहाँ बैठे हुए भी उनका मन कथा में ना होकर, सोनू की बीमारी और अपनी आर्थिक परेशानीयों से त्रस्त था। कहीं ना कहीं, बार बार मन में एक ही बात आती थी कि ईश्वर उनसे क्यों रूठा हुआ है। वो उनको ही इतने दुख क्यों दे रहा है और उनके इन दुखों का अंत कब होगा ? थोड़ी देर में उस दिन की कथा खत्म हो गयी और लोग उठ कर जाने लगे। अचानक ही पंडितजी के दिमाग में विचार आया, क्यूँ ना स्वामीजी से अपनी परेशानीयों का समाधान पूछा जाये ? और तुरंत ही पंडितजी व्यासपीठ की ओर चल दिये। स्वामीजी अभी भी व्यासपीठ पर ही विराजमान थे। पास पहुँचकर सबसे पहले पंडितजी ने स्वामीजी को प्रणाम किया और साथ ही उनसे कुछ प्रश्न पूछने की इजाज़त मांगी। स्वामीजी ने हौले से अपनी गर्दन हिलाकर हामी भर दपंडितजी :- स्वामीजी, मैं एक ग़रीब ब्राहमण हूँ और लोगों के घरों में पूजा पाठ कर अपना घर चलाता हूँ। करीब साढ़े तीन महीने पहले मेरी पत्नी चल बसी। दो महीने पहले मेरा बेटा बीमार हो गया। पिछले एक महीने से यहाँ पर इलाज करवा रहा हूँ लेकिन उसकी हालत में अभी तक कोई सुधार नहीं है। मेरी आर्थिक स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। पिछले दो महीने में मैंने अपने ऊपर कर्जा भी चढ़ा लिया है। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि मुझ जैसे पाठ पूजन करने वाले ब्राह्मण से क्या ग़लती हो गयी ? मेरे साथ ये सब क्यों हो रहा है ? जीवन में मेरे बेटे के अलावा मेरा कोई दूसरा सहारा नहीं है लेकिन वो भी ठीक नहीं हो रहा है। स्वामीजी, अब आप ही बताएं, मैं क्या करूँ ? मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा ।


स्वामीजी : "जब तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का जीवन शांति से चल रहा था, क्या तुमने कभी भी ईश्वर का शुक्रिया अदा किया ?"

पंडितजी : "स्वामीजी, ईश्वर का पूजा पाठ करना मेरा पेशा है।"

स्वामीजी : "बिलकुल ठीक कहा, वो तुम्हारा पेशा है। यानि वो पूजा पाठ तुम धन कमाने के लिये करते हो। लेकिन जो भी धन कमाते हो, क्या उसके लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हो ? जब तुम शांति से जीवन यापन करते हो, क्या तुम ईश्वर का धन्यवाद करते हो ?

जब तुमने अपने अच्छे दिनों में कभी भी ईश्वर का शुक्रिया अदा नहीं किया तो इन बुरे दिनों में तुम्हें शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं है।" 


जो नहीं मिला, ज़िंदगी उनकी शिकायतों का नाम नहीं है

जो भी मिला है, उसके लिये शुक्र गुजार होने का नाम है


क्या तुमने कभी सोचा है कि ईश्वर ने तुम्हें कितना कुछ दिया है और प्रतिदिन देता है ? दुनिया में अनगिनत लोग है जिन्हें आज भी दो वक़्त की रोटी नसीब नहीं होती। आज भी तुम कितने लोगों से बेहतर ज़िंदगी जी रहे हो। माना तुम्हारे बेटे की बीमारी ठीक नहीं हुई है, लेकिन बढ़ी भी नहीं है, क्या तुमने इसके लिये एक बार भी ईश्वर को धन्यवाद कहा ? तुम तो सिर्फ शिकायत करते रहते हो। जीवन में कैसी भी स्थिति आये, उस परमेश्वर का शुक्रिया अदा करना कभी मत भूलना। कौन जाने उस स्थिति में भी तुम्हारा क्या भला छुपा है ? ईश्वर सब कुछ जानता है। तुम्हारी स्थिति की उसे पूरी जानकारी है। जीवन की मुश्किलें शिकायत करने से नहीं, शुक्रिया अदा करने से दूर होंगी।


पंडितजी :"स्वामीजी, आज मुझे अपनी ग़लती का एहसास हो गया है। मैं आज से बल्कि अभी से ये कोशिश करूँगा, कि आगे मुझसे ये भूल ना हो। और हाँ, स्वामीजी, मेरी आँखें खोलने के लिये, सबसे पहले आपका तहे दिल से शुक्रिया।


स्वामीजी से बात करने के बाद, पंडितजी के अशांत मन को शांति मिली। और साथ ही अब उनमें एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार हुआ। पंडितजी ने शिकायत करना बंद कर दिया। अब वो हर स्थिति के लिये, चाहे वो अच्छी हो या बुरी, ईश्वर का शुक्रिया अदा करते थे। "हे ईश्वर, सबकुछ के लिये तेरा शुक्रिया", पंडितजी ने इस कहावत का पाठ करना शुरू कर दिया। इसको अपनाने से उन्होने अपने जीवन को महसूस करने, सोचने, स्वीकार करने और देखने के तरीके में एक ज़बरदस्त बदलाव महसूस किया। इस सरल कहावत का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा, उन्हें लगने लगा कि वो कितने धन्य हैं, वो कितने खुश हैं, उनका जीवन कितना अच्छा है। और यहीं से फिर एक बार वक़्त ने पलटा खाया ।


सोनू की हालत में अप्रत्याशित रूप से सुधार हुआ। सात दिन बाद, डाक्टर ने कुछ दवाइयाँ लिखकर सोनू को गाँव वापिस ले जाने की इजाज़त दे दी।


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