Mohanjeet Kukreja

Drama

4.6  

Mohanjeet Kukreja

Drama

“बाप, रे बाप – 2”

“बाप, रे बाप – 2”

3 mins
742


हालाँकि हमारे दोस्त, राहुल रैना, को दिल्ली में रहते कुछ साल बीत चुके थे लेकिन हिंदी के कुछ शब्दों के उच्चारण में उसे अब भी थोड़ी मुश्किल होती थी और उस पर रैना साहब का एक मन-पसंद जुमला था, 'बारी (मतलब भारी!) हाथ रखना'! बहरहाल, राहुल से बातचीत करने का अपना एक अलग मज़ा था थोड़ा-बहुत हास्य तो बिना किसी बात के उत्पन्न हो जाता था...


ऑटम-ब्रेक के बाद इस बार जब वह घर से वापिस हॉस्टल आया तो एक दिलचस्प वाक़्या लेकर!

"यार, मेरे बाप ने तो इस मर्तबा मेरे ऊपर ही बारी हाथ रख दिया!" उसने अपने विशिष्ठ अंदाज़ में बताया

"वो कैसे भाई?" पता करने को उत्सुक हम सब उसके आस-पास जम गए थे, तोड़-तोड़ कर उसके लाए बढ़िया अखरोट खाते हुए!

"जैसा कि तुम लोग जानते हो, मेरे पापा आर्मी से रिटायर्ड हैं, मतलब सोंचो (सोचो), हमारे गर पर अब बी (मतलब, घर पर अब भी) फ़ौजी-अनुशासन रहता है! ख़ैर, श्रीनगर से आने के बाद से मेरे गर वाले अब जम्मू में रहते हैं, जहाँ मैं हमेशा की तरह इस दफ़ा बी अपनी छुट्टियों में गया था"


कश्मीर के ज़िक्र से ही मेरी आँखों के सामने गुलमर्ग-पहलगाम की दूध सी बर्फ़ से लदे पहाड़ों और वादियों की ख़ूबसूरती उभरने लगती है! बाक़ियों का पता नहीं, मेरा दिल यह सोच कर हमेशा दुखी हो उठता है कि वहाँ के बाशिंदों को अपनी 'धरती पर स्वर्ग' जैसी जगह से विस्थापित होकर कहीं और रहना पड़ रहा है!


"और अगर तुम लोगों को पता न हो," राहुल ने हमारा ज्ञान बढ़ाया, "सेवा-निवृत्ति के बाद बी फ़ौजियों का एक कोटा होता है, जिससे वो आर्मी-कैंटीन से बहुत सस्ते में, दूसरी चीज़ों के अलावा, बडिया (बढ़िया) दारु ख़रीद सकते हैं"

"अच्छा, अब आगे तो बताओ!" कुलबीर बोला वह ख़ुद बठिंडा के एक संपन्न पंजाबी परिवार से था, जिनके यहाँ दारु के बिना किसी पार्टी को पार्टी ही नहीं समझा जाता!

"बता रहा हूँ ना!" रैना साहब आगे बढ़े, "पहले कबी मैंने अपने बाप के इस कोटे या स्टॉक की कोई परवाह नहीं की थी, लेकिन अब तुम सब गुनीजन (गुणीजन) की सोहबत में हालात बदल चुके हैं!"

कहता तो राहुल ठीक था हम सब अभी अंडर-ग्रेजुएट थे मगर मदिरा-पान के क्षेत्र में हर कोई पोस्ट-ग्रेजुएशन कर चुका था…!

"तो जब इस बार, मैंने गर पर अपने पापा का स्टॉक चेक किया तो मुजे ओल्ड मोंक रम की दो बोतलें दिखीं - एक बंद, और दूसरी तीन-चौथाई से थोड़ी ऊपर तक भरी हुई!"

"ओए बेटा! बाप के माल पर डाका?!" हम में किसी ने हैरान होकर टिपण्णी की!

"और एक दिन शाम को मैं जब गर पर अकेला था, मुज से और सब्र नहीं हुआ मैंने पहले से खुली बोतल में से अपने लिए एक बड़ा सा पेग बनाया और बोतल में उतना ही पानी बरके वापिस अपनी जगह रख दिया," राहुल बोला

"स्मार्ट बॉय!" कोई हिंदी फिल्मों के मश्हूर खलनायक अजीत की नक़ल करता हुआ बोला!

"आगे तो सुनो, बाई (भाई) लोग!" राहुल की बात अभी बाक़ी थी, "हुआ यह कि उसी रात को मेरे बाप ने पीने का इरादा बना लिया मैं ड्राइंग-रूम में बैठा टीo वीo पर कोई प्रोग्राम देख रहा था जब मुझे आवाज़ दी गई! मैं थोड़ा ढरते-ढरते (डरते-डरते) उस कमरे में पहुँचा जहाँ मेरा बापू एक पेग ख़त्म करके बाद दूसरा बनाने की तैयारी में था 

"जी, पापा?"

"बैठ!”

मैं उनके पास ही पड़ी एक दूसरी कुर्सी पर बैठ गया

“रम पीएगा?"

"नहीं पापा!" मैंने जवाब दिया, "आपको तो पता है, मैं पीता नहीं!"

"अच्छा, मर्ज़ी तेरी!" पापा बोले, "लेकिन अगली बार पीने का मूड बने तो मेरी रम में पानी डाल कर उसका सत्यानास मत करना!" पापा ने मुस्कुराते हुए कहा


"और मुजे...वो क्या कहते हो तुम लोग, काटो तो ख़ून नहीं!" राहुल ने बड़ी मासूमियत से अपनी कहानी पूरी की।

हम सब लोगों की हंसी थोड़ी थमी तो प्रशांत बोल उठा, "बई, यह तो तुज पर वाक़ई बारी हाथ था!"

और सब एक बार फिर से हंसने लगे!!


*****






Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama