बाँझ
बाँझ
उसकी माँ उसे समझा रही थी, "बेटा कब तक खुद को दोष देता रहेगा, कार भले ही तू चला रहा था, लेकिन दुर्घटना तो ईश्वर की मर्जी से हुई थी। तेरी पत्नी अगर माँ नहीं बन सकती, तो मैं क्या अपने पोते का मुंह देखे बगैर मर जाऊं? तू दूसरी शादी के लिए बस हाँ बोल दे, बाकी सब काम मैं करवा दूँगी”
उसके चेहरे की गंभीरता और अधिक बढ़ गयी, और उसने भर्राये हुए स्वर में कहा, "माँ, अगर दुर्घटना न होती तो वह बाँझ नहीं थी। उसे माँ कहने वाला आ चुका होता, अब कोई बच्चा गोद ले लेंगे”
"नहीं, कभी नहीं! वह क्या हमारे वंश का होगा? राधे-कृष्ण, राधे-कृष्ण! पता नहीं किस जात-पात का हो?" माँ व्यथित हो उठी, लेकिन अगले ही क्षण सम्भली और उसके सिर पर हाथ घुमाते हुए बहुत स्नेह से कहा, “बेटे, बिना बच्चे के तुम दोनों की निभ नहीं पाएगी”
उसने माँ की तरफ देखा और उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में लिया और उत्तर दिया,
"राधा ने क्या कृष्ण से बच्चे जने थे माँ? उन्हें भी अलग कर दो अब”