STORYMIRROR

Swyambhara Buxi

Abstract

4.2  

Swyambhara Buxi

Abstract

बाँझ

बाँझ

3 mins
29.3K


राजकुमारी के पाँव आज जमीन पर धरे नहीं धरा रहे थे । क्या करे ...किधर जाए ।..कभी सोहर गानेवालियों पर रूपए न्योछावर कर रही थी। कभी महाराज जी को नमक, हरदी दे रही थी। इधर से मुहबोली छोटकी ननदिया उससे हँसी कर रही थी तो उधर बगल की अम्मा जी अछ्वानी बनाने के लिए गुड़ मांग रही थी ।

.

और बीच-बीच में राजकुमारी की नज़रे ‘उनपर’ भी टिक जाती। ...आज कितने वर्षों बाद उन्हें खुश देखा। ...एकदम निश्चिंत।कनपट्टी की सफ़ेद रेखाएं भी आज नहीं दिख रही थी। असमय उग आयी झुर्रियां अचानक से कम हो गयी थी। आखिर विवाह के बीस साल बाद दोनों को औलाद का सुख मिला और जैसे जीवन ही बदल गया।सोच रही थी राजकुमारी ।सोलह साल की उम्र में उसका विवाह छोटन से हुआ था ।छोटा परिवार था छोटन का ।दो भाईयोंवाला।बड़े भाई की शादी हो चुकी थी ।उसके तीन बेटे थे। छोटन का विवाह भी धूमधाम से हुआ। राजकुमारी घर में आयी ।.शुरू के साल तो भाप जैसे उड़ गए।पर जैसे-जैसे दिन बीतने लगे, बाते होने लगी ।पहले दबी जुबान से, फिर एकदम सामने से । निरबंस...बाँझिन...कोख खानेवाली जैसे ताने से शुरुआत होती, मार-पीट पर ख़त्म होती । गालियाँ तो एकदम आम थी। छोटन सब देखता...शुरू में एकाध बार विरोध भी किया पर बड़े भाई , भौजाई के सामने खुद को बेबस पाता।

और एक दिन बड़े भाई का बेटा बीमार पड़ गया ।माना गया कि सारी करतूत राजकुमारी की है। इसी ने किसी से ‘डाइन’ करवाया है । डाह जो है। बस, फिर क्या था उसे मारने में दरिन्दगी की हद पार कर दी गयी। दीवार से सर लड़ा दिया। चईला से दागा गया।नाखून खींच लिए गए ।छोटन की भी पिटाई हुई और दोनों को घर से बाहर पटक दिया गयएक सिसकी सी आयी ।आंसू ठुड्डी तक बह आये था।चौंक गयी वो...ना...बिलकुल ना।आज इन बीते दिनों का क्या काम । गुनगुनाने लगी राजकुमारी-

‘‘ललना कवना बने फुलेला मजीठिया

त चुनरी रंगाईब हो ‘’...

तभी फिर से एक सिसकी सुनाई दी ..."धुत ई मन न ‘’...

वह जोर जोर से गाने लगी-

‘’झनर-झनर बाजे बजनवा

रुनु झुनू बाबू खेले अंगनवा’’

पर सिसकी की आवाज़ तेज़ हो गयी।अब वह रुदन में बदल गयी थी ।राजकुमारी ने ध्यान दिया।वह आवाज़ बगल के पट्टा से आ रही थी‘‘अरे ई तो जीजी है ! का हुआ?... कही...?’’

राजकुमारी भागी बाहर की ओर।उधर, जिधर छोटन के भाई-भौजाई रहते थे।दो साल हुआ बड़े भाई गुज़र गए ।दोनो छोटे बेटो को शहर की हवा लग गयी थी ।बड़ा बेटा पढ़ नहीं पाया तो अपनी पत्नी के साथ यही रहता था ।कुछ दिनों से बेटा-बहु और उनमे खटपट चल रही थी ।आज उनको मार पीट कर घर से बाहर निकाल दियापडी थी वो रास्ते पर । धूल-धूसरित । राजकुमारी ने यह दृश्य देखा तो काँप उठी । रोब देखा था ।...क्रूरता देखी थी इस चेहरे की। ...और आज इतनी बेबसी ? इतनी निरीहता ? 

उसने भाग कर जेठानी को सम्भाला। उनके आंसू पोंछने लगी । उन्हें चुप कराने लगी ।

तभी उसने देखा कि जीजी की रुलाई हंसी में बदलने लगी है ।हंसी ठहाको में बदल गयी। ठहाके बढ़ते गए । उनका स्वर ऊँचा होता गया । और अचानक उन्होंने राजकुमारी का हाथ झटक दिया। उसे धकेल दिया ।उठकर खड़ी हुई। आसमान की ओर देखा और चल पडी ।लोग कहते है कि वो पागल हो गयी है ।

गाँव में भटकती रहती है । रजकुमरिया, रजकुमरिया बड़बड़ाती रहती है । उनकी देखभाल राजकुमारी ही करती है । पर जीजी की आँखे उसे पहचानती तक नहीं ।हां, राजकुमारी के बच्चे से इस तरह हुलस कर मिलती है, कलेजे से लगाती है कि जैसे वह उसकी ही कोखजाया हो । उसकी अपनी संतान।


ଏହି ବିଷୟବସ୍ତୁକୁ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରନ୍ତୁ
ଲଗ୍ ଇନ୍

Similar hindi story from Abstract