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Archana kochar Sugandha

Tragedy

3  

Archana kochar Sugandha

Tragedy

अवैध कौन

अवैध कौन

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अभी-अभी मंदिर के प्रांगण में घोषणा हुई कि शहर के माननीय न्यायधीश महोदय अपने दस वर्षीय बेटे मंयक के जन्मदिन की खुशी में सभी के लिए भोजन तथा कंबलों की व्यवस्था की है। इसलिए मंदिर के बाहर बैठे भिखारी तथा ग़रीब बड़े करीने से कतार में बैठ गए। तभी मंदिर के प्रांगण के बाहर एक बड़ी सी गाड़ी रूकती है तथा न्यायधीश महोदय सपरिवार बेटे की मंगल कामना के लिए मंदिर में पूजा अर्चना करने के पश्चात भोजन तथा कंबल बाँटने का कार्य शुरू कर देते हैं। न्यायधीश महोदय स्वयं इस पुनीत कार्य में परिवार सहित हिस्सा लेते हैं। तभी किसी अंधी वृद्धा की प्लेट में खाना डालते हुए उसके आशीर्वादों, बेटा दूधो नहाओ, पूतो फलो भगवान तुम्हें ज्यादा दें। न्यायधीश महोदय का चैन, सुकून और खुशी हर गए। उन्हें ऐसे लगा जैसे उनके कानों में किसी ने पिघलता हुआ सीसा उड़ेल दिया है।

वही चिर परिचित अंदाज़, वही माँ का वात्सल्य, इतनी कठोर यातना के पश्चात भी ममता तथा आशीषों में उनका हाथ उठाना न्यायधीश पर किसी वज्रपात से कम नहीं था। मन ही मन खून के आँसू पीता हुआ अगर माँ न होती तो आज उसका भी वजूद न होता। प्यार में धोखा खाई बिन ब्याही माँ का दर्द केवल माँ ही जानती थी, समाज के ताने-उलाहनों की परवाह करे बिना, मेरे दामन को किसी के ताप की आँच भी न छू पाए वह चट्टान की भाँति मेरे लिए अडिग खड़ी रही। बड़े-बड़े शोरूमों में मेहनत- मजदूरी कर के उसने मुझे पाला। सुंदर और होशियार तो मैं था ही, साथ में रुतबेदार भी हो गया। साथ काम करने वाली दौलतमंद तथा रुतबेदार रश्मि का साथ पाकर, माँ का कद तथा रूतबा छोटा तथा बौना लगा। जिस माँ ने उसे कभी अवैध संतान का आभास नहीं होने दिया, वह माँ उसे अवैध लगने लगी तथा उसने उसे सड़कों पर बेसहारा छोड़ दिया। बेचारे अनाथ ने अकेले अपने दम पर इस मुकाम को पाया है, सहानुभूति का मरहम उसके कद को और भी ऊँचा उठाने में काफी सहायक सिद्ध हुआ। तभी बेटे की आवाज़ से पापा क्या हुआ----? उसकी तंद्रा भंग होती है। बेचारी ग़रीब के साथ-साथ अंधी भी है, अम्मा कुछ और लोगी, कहते-कहते वह आगे बढ़ गया।



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