Harshita Dawar

Inspirational

5.0  

Harshita Dawar

Inspirational

औरत की सीरत

औरत की सीरत

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सवाल ज़हर का नहीं था वो तो मैं पी गई, तकलीफ़ लोगो को तब हुए जब मैं ज़हर पी के भी जी गई। कम्बखत कहीं जीने नहीं देती दुनिया। एक के बाद एक सवालों के कठघरे में ला खड़े का देती है दुनिया। एक औरत की ज़िन्दगी जीने की मिसाल नहीं, एक अकेली माँ ही होती है जो हजारों ऊँगली उठाने वालो की हथेलियों को मरोड़ देती है, औरत भी इंसान ही होती है कोई नायाब नमूना नहीं, जिसका जोकर बनाकर मज़ाक का विषय समझकर सज़ा दिया जाए।

इंसानियत भूल कर वहशत गरदों की गर्दन काट कर खूँटी पर टांग देनी चाहिए। जिन्होंने औरत एक खिलौना समझ कर उद्योग के उपकरण बनाकर उपयोग किया। ज़रूरत ख़त्म होते ही उसको नाजायज वस्तु समझ कर फेंक दिया। क्या बदसलूकी का माहौल है, नन्ही कलियों का उपयोग है। इस समझ में बाहर ही नहीं घर के अंदर से ही हिंसा पनप रही है।

जब तक औरतों की आवाज़ में उबलते शोले को कहीं सीने में दफ़न कर दिए गए, माँ बाबा की इज़्ज़त की गठरी लाद कर, संस्कारों के नाम पर ढकोसलों में दबती रही है। बहुत हुआ शादी के नाम पर जिस्म की नीलामी। बहुत हुए औरतों की पाकीज़ा ज़िन्दगी का तिरस्कार। अब और नहीं सहूँगी। अब बुलंद आवाज़ में सीने में उबाले खाते शोलों को यूँही नहीं देहकने दूँगी। यूं ही नहीं अपनी दिखावटी हसीं दुनिया को दिखाने के लिए होगी। मेरी ज़िन्दगी मेरी होगी, कोई और उसकी जागीर नहीं। मेरी धड़कने मेरी होगी कोई उसकी सांसे नहीं। मेरा गुरुर मेरा होगा कोई उसका स्वाभिमान नहीं। मेरी आवाज़ इतनी बुलंद होगी कोई उसको दबाऊंगा नहीं। यूं ही नहीं हर्षिता से जज़्बाते हर्षिता का सफ़र तय कर लिया। यूं ही नहीं ख़ुद को पहचाने में अपनी बेटी को भी एहसास दिला दिए। शेरनी की बेटी हूं, शेरनी ही बनाउंगी, यूं ही नहीं जीना सिखाऊंगी।।  


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