औरत की सहनशक्ति
औरत की सहनशक्ति
आज तस्वीर कुछ दूसरी ही थी, जो झगड़े घर के भीतर होते थे।
वो आज सड़क पर हो रहे थे,रमिया के रोने चीखने की आवाज आज नही आ रही थी।
आज उसका पति खून से लथपथ सड़क पर पड़ा था। रमिया उसे गालियाँ दे रही थी और लाठी से बस मारते ही जा रही थी।
कमला काकी ने कहा, 'रुक जा मार डालेगी क्या उसे ? अरे तेरी बेटी का क्या होगा फिर ?
रमिया की आँखों में अंगारे भरे थे उसने चिल्लाकर कहा, 'तुम दूर हट जाओ कमला काकी मेरी बेटी का क्या होगा ? ऐसा बाप होने से अच्छा है कि मेरी बेटी अनाथ हो जाये मैं।', रमिया का गला भर आया।
पिछले दो सालों से इसके जुल्म बर्दाश्त करती आ रही हूँ इसी आस में कि आज नही तो कल सब ठीक हो जाएगा मगर आज इसने हद कर दी मुन्नी की दवाई के लिए रखे पैसों से अपने लिए दारू ले आया मेरी मुन्नी बुखार में तड़प रही इसे मैं छोड़ दूँ।'
रमिया फिर से उसका गला दबाने लगी।
रमिया का पति रामू तड़पते हुए बोला, 'माफ कर दे मुझे मुझे छोड़ दे।'
किसी तरह लोगो ने बीच बचाव किया और रमिया को शांत कराया कुछ देर तक रमिया रोती रही फिर आँसू पोछकर अपनी पाँच महीने की बच्ची को अपनी गोद में उठाया और गरजते हुए अपने पति से बोली मैं जा रही तुझे छोड़कर, और चल दी लोग उसे जाते हुए देख रहे थे वो एकबार भी पीछे न मुड़ी।
भीड़ में से कमला काकी बाहर आई और रमिया को जाते देखकर बोली, ' जैसे नदी में पानी ज्यादा हो जाने पर बांध टूट जाते हैं और नदी बाढ़ का रूप ले लेती है ठीक वैसे ही औरत की भी सहनशक्ति की एक सीमा होती है अक्सर नादान पुरुष समझ लेता है औरत कमजोर है।
आज रमिया की सहनशक्ति का बांध टूट गया।
