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Vaishno Khatri

Drama

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Vaishno Khatri

Drama

और वह अकेला रह गया...

और वह अकेला रह गया...

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पिताजी के पास सब बैठ कर रो रहे थे लेकिन गुड़िया के आँसू सूख चुके थे। उसकी आँखों के सामने कल का दृश्य घूम रहा था। घर खुशियों से भरा हुआ था। बारात आई सब दूल्हे को देख कर मेंरी किस्मत पर रश्क कर रहे थे। मुझे चुनरी की छाया में धीरे धीरे लाया गया। जयमाला का कार्यक्रम हुआ सबने फूलों से हमारा स्वागत किया। गुड़िया को जैसे पंख लग चुके थे। बड़ी प्रसन्न थी।


पार्टी खत्म होने के कारण सब जा चुके थे। केवल खास जान-पहचान और दोनों परिवारों के लोग थे। मण्डप की तैयारी चल रही थी। उसी समय खुशियों का शोर थम-सा गया। ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने और गिड़गिड़ाने की आवाज आ रही थी। ये आवाजें ऊँची होती जा रही थीं।


गुड़िया ने छुप कर देखा। पिता जी पगड़ी उतार कर लड़के के पिता के पैरों पर रख रहे थे। उसी समय दूल्हे के पिता ने ठोकर लगा कर पगड़ी को उछाल दिया। कारण लड़का और उसके पिता जी कार की माँग कर रहे थे। वे जोर जोर से चिल्ला रहे थे और पिता जी गिड़गिड़ा रहे थे। उनके गिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं हुआ।


पिताजी ने कहा- 'मैं आपको कार कुछ दिनों बाद दे दूँगा” पर लड़के वाले तैयार नहीं थे, दूल्हे को मण्डप में बैठाने के लिए। अपने रिश्तेदारों की मदद से पैसे जमा कर बुकिंग करवाई क्योंकि कार शोरूम वाला भी पहचान का था। तब मंडप में बैठे और फेरे शुरू हुए।


गुड़िया ने बड़े दुखी मन से फेरे लिए। वह पिताजी की गिड़गिड़ाते हुए चेहरे के अक्स को भूल नहीं पा रही थी। मण्डप में बैठने की इच्छा नहीं थी पर पिताजी के सम्मान की बात थी। सारी रस्मों-रिवाज़ से शादी हो गई। तारों की छाँव में विदाई हो गई। वहाँ उसका मन नहीं लग रहा था। ऐसे ही सोचते और उनकी रस्मों को निभाते हुए सुबह हो गई। उसी समय फोन की घण्टी ने उसका ध्यान भंग किया। पता लगा पिताजी नहीं रहे।


पिता जी के दसवें के बाद वह अपने ससुराल आई और जब बाकी बची रस्मों को निभानेका समय आया तो उसने कहा कि इनकी शादी कार से हुई है इसलिए आप सारी रस्में कार के साथ निभाइए। ससुराल वाले नाराज़ हो गए और उसे धमकाने लगे कि अगर ऐसा रहा तो हमारा लड़का कैसे रहेगा तुम्हारे साथ। तुम्हें तलाक देकर ही सुखी हो सकता है।


दिन कट रहे थे। कुछ दिन बाद अमन ने परेशान हो कर सोच लिया कि इसे तलाक देकर दूसरी शादी कर लूँगा। वह वकील से मिला और तलाकनामा तैयार करवाया। शाम को उसने एक लिफाफा गुड़िया को दिया।


गुड़िया ने पूछा “इसमें क्या है?”


उसने कहा “तलाकनामा”


गुड़िया ने कहा “तलाक तो मैं नहीं दूँगी कभी भी नहीं दूँगी, यहीं रहूँगी। न दूसरी शादी मैं करूँगी, न तुमको करने दूँगी। रही अपने खर्चे की बात तो विद्यालय में शिक्षिका हूँ अपना कमाऊँगी, अपना खाऊँगी”


उसने तलाक कभी नहीं दिया। ऐसे ही दिन कट गए और अंतिम पड़ाव तक पहुँच गए। गुड़िया ने अमन को अभी भी माफ़ नहीं किया। ये बात दूर-दूर तक फ़ैल गई। उसका असर यह हुआ कि कई साल तक शादियाँ बिना दहेज़ की हुईं। दहेज़ रुपी दानव रूप बदल-बदल कर पहले भी जिन्दा था, आज भी है, आगे भी रहेगा। ऐसा लगता है इसे जलाने के लिए कोई भी आग नहीं बनी। 


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